हिन्दी और प्रादेशिक भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने के लिए यह आवश्यक है कि इनमें उच्चकोटि के प्रामाणिक ग्रन्थ अधिक से अधिक संख्या में तैयार किये जायें। भारत सरकार ने यह कार्य वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के हाथ में सौंपा है और उसने इसे बड़े पैमाने पर करने की योजना बनायी है। इस योजना के अन्तर्गत अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के प्रामाणिक ग्रंथों का अनुवाद किया जा रहा है तथा मौलिक ग्रन्य भी लिखाये जा रहे हैं। यह काम अधिकतर राज्य सरकारों, विश्व विद्यालयों तथा प्रकाशकों की सहायता से प्रारम्भकिया गया है। कुछ अनुवाद और प्रकाशन-कार्य आयोग स्वयं अपने अधीन भी करवा रहा है। प्रसिद्ध विद्वान् और अध्यापक हमें इस योजना में सहयोग दे रहे हैं। अनूदित और नये साहित्य में भारत सरकार द्वारा स्वीकृत शब्दावली का ही प्रयोग किया जा रहा है ताकि भारत की सभी शिक्षा संस्थाओं में एक ही पारिभाषिक शब्दा-बली के आधार पर शिक्षा का आयोजन किया जा सके ।
तत्त्वमीमांसा नामक पुस्तक हिन्दी समिति, सूचना विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रस्तुत की जा रही है। इसके मूल लेखक श्री ए० ई० टेलर और अनुवादक श्री सुबीन्द्र बर्मा है। आशा है कि भारत सरकार द्वारा मानक ग्रन्थों के प्रकाशन सम्बन्धी इस प्रयास का सभी क्षेत्रों में स्वागत किया जायगा ।
सत्य और आभास की पहचान करानेवाली वैज्ञानिक परीक्षा को तत्त्वमीमांसा की संजा दी गयी है। तत्त्वमीमांसा यह जानना चाहती है कि वास्तविक अस्तित्व अथवा सत्य का अभिप्राय क्या है। वह यह भी जानना चाहती है कि विश्व-प्रपंच से सम्वन्धित विविध वैज्ञानिक अबवा अवैज्ञानिक सिद्धान्त किस सीमा तक सत्य के सामान्य उक्षणों के अनुकूल हैं। जहाँ तक सत्य की खोज का सम्बन्ध है, धर्म और कल्पना-साहित्य दोनों का लक्ष्य आभास से परे जाकर उसमें निहित सत्य से परिचित होना है। तत्त्व-मीमांसा का भी यही लक्ष्य है। किन्तु भावना और पद्धति के विचार से वह धर्म और कल्पना-साहित्य दोनों से भिन्न है क्योंकि वह अस्तित्व अथवा सत्य का विवेचन शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से करती है। इस विवेचन से बौद्धिक संतोष प्राप्त होता है।
प्रसिद्ध पाश्चात्य दार्शनिक ए० ई० टेलर ने अपनी दार्शनिक कृति "एली-मेण्ट्स ऑव मैटाफिजिक्स" में वास्तविक सत्य और आभास के बीच भेद करनेवाली तत्त्वमीमांसीय पद्धति का सुन्दर विवेचन किया है। उसकी यह कृति अंग्रेजी बाऊनय में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसके हिन्दी रूपांतर में मूल पुस्तक की दार्शनिक विवेचना पद्धति को सरल और सुबोध भाषा में ज्यों का त्यों रखने का सफल प्रयास किया गया है। आशा है कि दर्शनशास्त्र के छात्र तथा पाश्चात्य दर्शन की वैज्ञानिक प्रणाली से परिचित होने के इच्छुक सभी लोगों के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी ।
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