मनुष्य की शिक्षा जीवन प्रयन्त चलते रहने वाली एक प्रक्रिया है। शिक्षा का मुख्य मदद उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीन विकास है। इस की मुख्य दिशाएं है- शारीरिक, मानसिक बौद्धिक संबोगनात्मक, सामाजिक, चारित्रिक एवं आध्यात्मिक विकास। इन दिशाओं में निरन्तर व्यक्ति को बढ़ने में केवल शिक्षा ही सहायक होती है। परन्तु इस विकास में एक मुख्य बिन्दु है कि वे मूल्य क्या है जिन को संजोये हुए व्यक्ति अपना जीवन यापन कर रहा है। अतः मूल्य शिक्षा का प्रमुख आधार है।
शिक्षण चाहे विद्यालय स्तर पर हो, या विश्वविद्यालय में या किसी और औपचारिक अथवा अनौपचारिक भूमिका में हो, मूल्य अभिमुख कार्य है।
शिक्षण की प्रक्रिया में किसी न किसी प्रकार के मूल्य की झलक होना अनिवार्य है। शिक्षक के सभी क्रिया कलापी में मूल्यों का दिग्दर्शन होता है। उस का वक्तव्य प्रश्न पूछना, छात्रओं को निर्देश देना कक्षा में चलना, गृह कार्य देना, परीक्षा के लिए शिक्षार्थियों को तैयार करना परीक्षा कार्य संचालित करना, यहां तक कि बैठना उठना और व्यक्तिगत जीवन भी किसी न किसी मूल्य का सन्देश देते हैं। स्वयं के स्तर पर शिक्षा पाना भी मूल्यों पर आधारित है तथा मूल्यों की उत्पत्ति का स्त्रोत है। इस के लिए सही मूल्य के विकास से ही उचित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव है।
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