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तीर्थंकर महावीर (भगवान् महावीर के चरित्र का यथारूप चित्रण): Tirthankara Mahavira (Accurate Depiction of the Character of Lord Mahavira)

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Specifications
Publisher: Shri All India Swetamber Sthanakwasi Jain Conference, Delhi
Language: Hindi
Pages: 281
Cover: HARDCOVER
10.00x6.5 inch
Weight 650 gm
Edition: 2023
HBM722
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Book Description
प्राक्कथन

(प्रथम आवृत्ति से)

तोर्थकर श्रमण भगवान महावीर एक व्यक्ति नहीं, विश्वात्मा है, विश्वपुरुष है। व्यक्ति क्षुद्र है. वह देश और काल की सीमाओं में विच्छिन्न है अतः यह अनन्त नहीं हो सकता। महावीर अनन्त हैं, उनका प्रकाश शाश्वत है। वह काल की सीमाओं को धकेलता हुआ अनन्त की ओर सतत गतिशील रहेगा।

भगवान महावीर का प्रबोध उभयमुखी है। वह जहां एक ओर अन्तर्जगत् की सुप्त चेतना को प्रबुद्ध करता है, वहां दूसरी ओर समाज की मोह निद्रा को भी भंग करता है। महावीर ने साधक की अन्तरात्मा को जागृत करने के लिए यह आध्यात्मिक चिन्तन दिया है, जिसकी ज्योति कभी धूमिल नहीं होगी। यह यह ज्योति है, जो जाति, कुल, पंथ और देश आदि के किसी भी वर्ग विशेष में आबद्ध नहीं है। चिन्तन के वह संकरे गलियारों में न घूमकर सोधे आत्मतत्त्व को स्पर्श करती है। यह महावीर का ही मुक्त उ‌द्घोष है कि हर आत्मा मूलतः परमात्मा है। क्षुद्र-से-क्षुद्र प्राणी में भी अनन्त चैतन्य ज्योति विद्यमान है। अपेक्षा है ऊपर के अज्ञान, मोह, राग-द्वेष आदि कर्मावरणों को तोड़ देने की। इस प्रकार महावीर का ईश्वरत्व प्राणि मात्र का है, किसी एक व्यक्ति विशेष का नहीं। महावीर का प्रबोध केवल धर्म-परम्पराओं के आध्यात्मिक तत्त्वबोध तक ही परिसीमित नहीं है। उनका दर्शन जीवन के विभाजन का दर्शन नहीं है। वह एक अखण्ड एवं अविभक्त जीवन दर्शन है। अतः उनका प्रबोध आध्यात्मिक धर्मक्रान्ति के साथ सामाजिक क्रान्ति को भी तथ्य की गहराई तक छूता है। भगवान महावीर का सामाजिक क्रान्ति का उ‌द्घोष चिर अतीत से बन्धनों में जकड़ी मातृ जाति को मुक्ति दिलाता है, उसके लिए कब के अवरुद्ध विकास पथ को खोल देता है। उस युग की महावीर का प्रबोध केवल धर्म-परम्पराओं के आध्यात्मिक तत्त्वबोध तक ही परिसीमित नहीं है। उनका दर्शन जीवन के विभाजन का दर्शन नहीं है। वह एक अखण्ड एवं अविभक्त जीवन दर्शन है। अतः उनका प्रबोध आध्यात्मिक धर्मक्रान्ति के साथ सामाजिक क्रान्ति को भी तथ्य की गहराई तक छूता है। भगवान महावीर का सामाजिक क्रान्ति का उ‌द्घोष चिर अतीत से बन्धनों में जकड़ी मातृ जाति को मुक्ति दिलाता है, उसके लिए कब के अवरुद्ध विकास पथ को खोल देता है। उस युग की दास प्रथा कितनी भयंकर थी? दासों के साथ पशु से भी निम्न स्तर का व्यवहार किया जाता था। मानवता के नाम पर उनका धार्मिक, नैतिक या सामाजिक कोई भी तो मूल्य नहीं था। महावीर का क्रान्ति स्वर दास-प्रथा के विरोध में भी मुखरित होता है। वे अनेक बार सामाजिक परम्पराओं के विरोध में जाकर पद-दलित एवं प्रताड़ित दासियों के हाथ का भोजन भी लेते हैं। जाति और कुल के जन्मना श्रेष्ठत्व के दावे को भी उन्होंने चुनौती दी। जन्म की अपेक्षा कर्म की श्रेष्ठता को ही उन्होंने सर्वोपरि स्थान दिया है। उनके संघ में हरिकेश जैसे अनेक चाण्डाल आदि निम्न जाति के शिष्य थे, जिनके सम्बन्ध में उनका नहीं है, विशेषता है सद्‌गुणों की, जिसके फलस्वरूप देवता भी चरणों में नतमस्तक हो जाते हैं। महावीर ने लोक और परलोक के सम्बन्ध में फैले हुए अनेक अन्धविश्वासों को तोड़ा और उनके नीचे दबे यथार्थता के सत्य को उजागर किया। हम देखते हैं, कि भगवान महावीर ने वर्ग-विहीन तथा शोषण मुक्त समाज की स्थापना के रूप में जो यथाप्रसंग पारिवारिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि दी है, आज विश्व उसी की ओर गतिशील है। भविष्य बताएगा कि महावीर तेरे मेरे की सभी विभाजक रेखाओं से परे विश्वजनीन मंगल-कल्याण के कितने अधिक निकट हैं।

भगवान् महावीर के परिनर्वािण को 2500 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। अपनी-अपनी दृष्टि से सब ओर अनेक आयोजनों की संरचनाएँ हो रही हैं। साहित्यिक दिशा में भी महावीर के जीवन, तत्त्वज्ञान और उपदेश आदि पर अनेक छोटी-बड़ी पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, लिखी जा रही है, प्रकाशित हो चुकी हैं, प्रकाशित होने की तैयारी में हैं। यह भी प्रभु चरणों में श्रद्धांजलि समर्पित करने का एक प्रसंगोचित कर्म है। प्रस्तुत पुस्तक भी इसी दिशा में है।

तीर्थंकर महावीर' का लेखन व्यापक दृष्टि से हुआ है। अनेक पूर्व जन्मों से गतिशील होती आती धर्मयात्रा से लेकर महावीर के जन्म, बाल्य, साधना और तीर्थकर जीवन से सम्बन्धित प्रायः सभी घटनाओं को, कहीं विस्तार से तो कहीं संक्षेप से, काफी परिमाण में समेटा गया है। जीवन प्रवाह कहीं विशृंखलित नहीं हुआ है। यत्र तत्र दिगम्बर-श्वेताम्बर परम्पराओं में मतभेदों को भी स्पष्ट कर दिया गया है। मैं समझता हूं यदि ऐतिहासिक सूक्ष्मताओं की गहराई में न उतरा जाए, तो भगवान महावीर के विराट जीवन के सम्बन्ध में जो भी ज्ञातव्य जैसा आवश्यक है, वह प्रस्तुत पुस्तक में मिल जाता है।

पुस्तक का कल्याण-यात्रा खंड तो कई दृष्टियों से बहुत उपयोगी बन गया है। भगवान महावीर के जीवन के अनेक प्रेरक उज्ज्वल प्रसंग अच्छे चिन्तन के साथ प्रस्तुत हुए हैं।

धार्मिक, नैतिक एवं सामाजिक आदि दिव्य आदर्श किसी भी साहित्यिक रचना के प्राण तत्व होते हैं, जिनसे सर्व साधारण जन जीवन-निर्माण की प्रेरणा पाते हैं और भाषा तथा शैली उसके शब्द शरीर होते हैं, जो पाठक की मनश्चेतना को सहसा आकृष्ट करते हैं, उसे ऊबने नहीं देते हैं। प्रस्तुत 'तीर्थकर महावीर' दोनों ही दृष्टियों से सफल कृति प्रमाणित होती है। मेरे निकट के स्नेही श्रीचन्द्र जी सुराना 'सरस' के सम्पादन ने तो पुस्तक को सरसता से इतना आप्लावित कर दिया है कि देखते ही बनता है।

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