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जनजातीय मुकुट रोहतासगढ़: Tribal Crown Rohtasgarh

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Specifications
Publisher: KISHOR VIDYA NIKETAN, VARANASI
Author Shyam Sundar Tiwari
Language: Hindi
Pages: 74
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 100 gm
Edition: 2014
ISBN: 8186101780
HCA244
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Book Description
भूमिका

विंध्य पर्वत श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी के पूर्वी दक्षिणी उत्तुंग शीर्ष पर आदिकाल से मुकुट के समान शोभायमान रहा है-रोहतासगढ़। इसकी मणि-रश्मियाँ हमेशा आकर्षण का केंद्र रहीं और राजे-महाराजे, बादशाह तथा नवाब इसे पाने को लालायित रहे। इसी कारण मध्यकालीन इतिहासकार मुल्ला मुहम्मद कासिम शाह 'फरिश्ता' ने अपने 1606 ई0 से 1611 ई0 के बीच लिखे 'तारीखे फरिश्ता' में शेरशाह के प्रसंग में लिखा है-'रोहतास के संबंध में यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि यह दुर्ग अत्यंत सुदृढ़ तथा अद्वितीय है। हमने अन्य बहुत से किलों को देखा है, किंतु रोहतासगढ़ का दूसरों से मुकाबला नहीं है। यह दुर्ग ऊँचे पहाड़ पर लंबाई और चौड़ाई में पाँच कोस से अधिक है। पर्वत की उपत्यका से लेकर किले के द्वार तक का एक कोस से अधिक का रास्ता है। किले के अंदर मीठे पानी के झरने हैं। दुर्ग में जहाँ कहीं भी कुँआ खोदा जाता है, अधिक से अधिक दो गज के फासले पर मीठा पानी निकल आता है। जिसने भी किले को देखा है, उसने विधाता की शक्ति और कुशलता की प्रशंसा की।' ऐसा अद्भुत रहा है प्राचीन रोहतासगढ़ ।

रोहतासगढ़ का संबंध सतयुगी सत्यवादी सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व से जुड़ता है। यह किला प्राचीन समय से ही विभिन्न आदिवासी राजाओं के हाथों में रहा। यही कारण है कि पूर्वी-मध्य भारत की कई जनजातियाँ, जैसे-मुंडा, संताल, उराँव, खरवार आदि अपना संबंध रुइदासगढ़ (रोहतासगढ़) से जोड़ती हैं। आज भी इन जनजातीय लोगों के दिलों में रोहतासगढ़ रचा-बसा है। उनके मिथकों में ऐसे ही रोहतासगढ़ की चर्चा नहीं है, बल्कि वास्तविक इतिहास में भी वे उसके अधिकारी रहे हैं।

सातवीं सदी में गौड़ (बंगाल) के महासामंत शशांक देव के कुछ वर्षों के काल को छोड़ दें तो पाते हैं कि रोहतासगढ़ पर हजारों वर्षों तक जनजातीय राजाओं का अधिकार निर्बाध रूप से बना रहा। लेकिन शेर खाँ ने छल से रोहतास गढ़ को खरवार राजा हरिकृष्ण से 1538 ई० में छीन लिया। फरिश्ता लिखता है कि शेर ख़ाँ से पूर्व किसी बादशाह ने आँख उठाकर इधर देखने का साहस नहीं जुटा पाया था, किंतु शेर ख़ाँ इस संबंध में बड़ा सौभाग्यशाली रहा कि अत्यंत सफलतापूर्वक इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया। उसे यहाँ वर्षों से संचित अतुल धनराशि प्राप्त हुई, जो आगे उसे भारत का बादशाह बनने में काम आई। इसी कारण शेरशाह ने रोहतास किले को मुलाया नहीं और साम्राज्य की उत्तरी-पूर्वी सीमा पर जो गढ़ बनवाया उसका नामकरण 'रोहतासगढ़' किया। यह अभी भी पाकिस्तान में मौजूद है।

अकबर के शासनकाल में 1585 ई0 में जब राजा मानसिंह को बिहार-बंगाल की संयुक्त सूबेदारी प्रदान की गयी तो उन्होंने इस किले को *अपने शासन संचालन का केन्द्र बनाया। इस प्रकार रोहतासगढ़ को पूर्वी भारत की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हुआ। रोहतासगढ़ के नाम पर इस क्षेत्र का नामकरण कालक्रम से रोहतास सरकार या रोहतास होता रहा।

24°37' उत्तरी अक्षांश से 24°40′20″ उत्तरी अक्षांश तक और 83°51′20″ पूर्वी देशांतर से 83°57'55" पूर्वी देशांतर के बीच अवस्थित रोहतासगढ़, मुगलसराय-गया रेलखंड पर डेहरी ऑन सोन रेलवे स्टेशन से 45 कि०मी० दक्षिण-पश्चिम में अकबरपुर के समीप रोहतास पहाड़ी पर स्थित है। यह पहाड़ी समुद्रतल से लगभग 1490 फीट ऊँची है। इस पहाड़ी को सोन नद जहाँ दक्षिण और पूरब से कुछ दूरी पर घेरता है, वहीं पूर्वी अउसाने नदी इसे पश्चिम तथा उत्तर में अन्य पहाड़ियों से अलग करती है। रोहतास पहाड़ी के पश्चिम में जहाँ अउसाने नदी प्रसिद्ध गुलेरिया खोह बनाती हुई बहती है वहीं उत्तर में इसकी सहायक बरुआ नदी कौरियारी खोह बनाती है। ये दोनों जहाँ रोहतास पहाड़ी की सुंदरता में चार चाँद लगाती हैं, वहीं प्राकृतिक रूप से इसे सुरक्षित बनाती हैं। यह पहाड़ी उत्तर से दक्षिण की ओर लगभग 5 मील लंबी है जबकि पूरब से पश्चिम की ओर लगभग 4 मील चौड़ी, लगभग 28 मील की परिधि में फैली हुई है। दक्षिण, पूरब और उत्तर में यह पहाड़ी बिल्कुल खड़ी है, जबकि पश्चिम में यह एक छोटे से स्थल डमरूमध्य से रेहल की पहाड़ी से जुड़ी है। इस कारण यह पहाड़ी, किले के लिए बहुत ही उपयुक्त है।

पहाड़ी का कुछ भाग समतल और खेती योग्य है। यहाँ किलेदार की इच्छानुसार खेती हुआ करती थी। खेती करने वाले लोग अब बभनतलाब, भूलनाटोला, बरमदेवता, नागाटोली, रानीटोला आदि गाँव बसा चुके हैं, जो अब अभाव की जिंदगी जी रहे हैं। भारतीय पुरातत्त्व संरक्षण विभाग से संरक्षित होने के बावजूद किले की न तो सही देख-रेख है और न ही ऊपर तक जाने के लिये अभी तक सड़क बनी है। यही दुर्भाग्य की बात है।

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