श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा लोकप्रिय शास्त्र है जिसे शताब्दियों से लोग नित्य प्रति श्रद्धा भाव से पढ़ते, पढ़ाते और सुनते तथा सुनाते आये हैं। बहुत-से लोग तो प्रतिदिन प्रातः जब तक उसके कुछ श्लोकों का पाठ नहीं कर लेते तब तक न तो वे कुछ खाते-पीते हैं और न ही अपने सांसारिक कर्मों को प्रारम्भ करते हैं। चिरातीत काल से लोग गीता को 'भगवान की वाणी' मानते चले आ रहे हैं और इस भावना से वे अपने घर में गीता को रखना एक महान धार्मिकता मानते आये हैं। भारत में अब तक भी लाखों-करोड़ों लोगों के यहाँ इस प्रथा का पालन किया जाता है कि जब कोई मनुष्य मृत्यु शय्या पर होता है तब भी वे उसे गीता ही सुनाते हैं क्योंकि उनका यह मन्तव्य है कि गीता-ज्ञान से मनुष्य की सद्गति होती है। बहुत लोगों में यह भी मान्यता रही है कि जिस घर में गीता का पाठ होता है उस घर में कलह-क्लेश मिट जाते हैं और वहाँ से भूत-प्रेत भाग जाते हैं। अब तक भी कोटि-कोटि मनुष्यों का यह निश्चय है कि इसके पठन-पाठन से मनुष्य पापों और सन्तापों से मुक्त हो जाता है।
गीता का अध्ययन करने पर भी कष्ट और क्लेश क्यों?
परन्तु प्रश्न उठता है कि आज घर-घर में ऐसी महिमा वाला शास्त्र होने पर भी भारत में अपार दुःख क्यों है? घर-घर में कष्ट और क्लेश क्यों है? मनुष्य काम-क्रोधादि 'भूतों' से छुटकारा क्यों नहीं पाता ? अवश्य ही गीता से सम्बन्धित कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण बात है जिसको लोग समयान्तर में भूल गए हैं। इस विषय में हमारा यह मन्तव्य है कि लोगों को गीता के भगवान का यथा सत्य परिचय नहीं है। इसलिये ही उस द्वारा उन्हें श्रेष्ठ तथा पूर्ण प्राप्ति नहीं हो रही। यह बात इस पुस्तक को पढ़ने से स्पष्ट हो जायेगी।
इसे विश्व-भर के लोग भगवान के महावाक्यों का ग्रंथ क्यों नहीं मानते ?
निस्सन्देह, गीता का प्रचार चिरकाल से ही बहुत अधिक रहा है। आज तो स्थिति यह है कि विश्व में शायद ही कोई ऐसी प्रमुख भाषा होगी जिसमें गीता का अनुवाद न हुआ हो।
परन्तु प्रश्न उठता है कि संसार के विभिन्न मतावलम्बियों द्वारा श्रेष्ठ ग्रन्थ माने जाने पर भी और इसका नाम 'श्रीमद्भगवद्गीता' होने पर भी तथा इसमें 'भगवानुवाच' शब्दों का प्रयोग होने पर भी संसार में इसे करोड़ों लोग स्वयं भगवान की वाणी क्यों नहीं मानते ? अवश्य ही लोगों को गीता के 'भगवानुवाच' शब्द का सही बोध नहीं है तथा उन्हें 'कृष्ण' और 'भगवान' – इन दोनों के स्वरूप का सही ज्ञान नहीं है।
दूसरे शब्दों में आज गीता के भगवान अथवा आदि वक्ता के बारे में लोगों में निश्चयात्मक ज्ञान और मतैक्य नहीं है। डा० राधाकृष्णन ने भी श्रीमद्भगवद्गीता पर अपनी पुस्तक में एक जगह लिखा है-"हमें गीता के रचयिता का नाम मालूम नहीं है। भारत में प्रारम्भिक साहित्य की लगभग सभी पुस्तकों के लेखकों के नाम अज्ञात हैं.....
आज जो लोग यह मानते हैं कि गीता-ज्ञाम युद्ध-क्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था, उनकी इस मान्यता का मूल आधार महाभारत में वर्णित कौरवों और पाण्डवों का युद्ध है। परन्तु आज महाभारत ग्रन्थ जिस रूप में मिलता है उसको पढ़ने वाला कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति यह सिद्ध नहीं कर सकता कि उसमें पाण्डवों और कौरवों के जन्म की जो कहानी दी है, वह ऐतिहासिक सत्य है क्योंकि वह तो अस्वाभाविक है।
पुनश्च, आज सभी निष्पक्ष शोधक इस सत्यता को मानते हैं कि महाभारत पहले इस रूप में नहीं था। प्रारम्भ में इसका नाम 'जय' था और इसमें केवल आठ हज़ार श्लोक थे। बाद में इसका नाम 'भारत' पड़ा, तत्पश्चात् 'महाभारत'। बढ़ते-बढ़ते आज इसके श्लोकों की संख्या लगभग एक लाख है। गोया जहाँ पहले एक श्लोक था, आज वहाँ तेरह हैं।
ऐसी परिस्थिति में कौन है जो सत्य की गुत्थी को सुलझा सके ?
एक गीता के भगवान के सिवाय अन्य कोई भी इस रहस्य को यथार्थ रूप से नहीं खोल सकता। अतः हम बतायेंगे कि वर्तमान समय स्वयं भगवान ने पुनः अवतरित होकर इस बारे में क्या रहस्य उद्घाटित किये हैं। गीता के सार को समझने के लिये इन रहस्यों को जानना जरूरी है।
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