| Specifications |
| Publisher: Brahma Kumaris Ishwariya Vishwa Vidyalaya, Delhi | |
| Author B. K. Jagdish Chander | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 435 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x7 inch | |
| Weight 550 gm | |
| HBJ722 |
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जब मैं पाँचवीं या छहवीं कक्षा का विद्यार्थी था तब से ही मुझे महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भागवत् सुनने का अवसर मिला करता था। मैं जब इन्हें सुनता या पढ़ता था तब एक ओर तो मन परमात्मा से मिलन मनाने के लिए आकुल हो उठता था परन्तु दूसरी ओर मुझे भगवान के स्वरूप का विषय एक उलझी हुई-सी गुत्थी मालूम होता था। इन ग्रन्थों को सुनने और पढ़ने से मन में अनेक प्रकार के प्रश्न भी उठते थे परन्तु अनेक प्रयास करने पर भी मुझे उनका सन्तोषजनक हल नहीं मिला। उनमें से कुछेक प्रश्न निम्नलिखित हैं :-
कुछेक प्रश्न
१. महाभारत में कौरवों, पाण्डवों, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, जरासन्ध, व्यास इत्यादि के जैसे अस्वाभाविक अथवा चमत्कारपूर्ण जन्म का वर्णन है, क्या वैसे जन्म होना सम्भव है? अतः क्या कौरव, पाण्डव, जरासन्ध आदि किन्हीं ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम हैं या ये किसी रूपक में प्रयुक्त 'सूचक नाम' हैं?
२. क्या शान्ति के दाता, प्रेम के सागर, पतित-पावन परमात्मा ने पाण्डवों को हिंसा वाले युद्ध (महाभारत युद्ध) के लिए स्वीकृति दी होगी? क्या गीता-जैसा सूक्ष्म और दिव्य ज्ञान उस युद्ध के कोलाहल में दिया जा सका होगा?
३. गीता में जो श्लोक लिखे हैं क्या ये संख्या में उतने ही हैं और अक्षरशः वही हैं जो स्वयं भगवान के मुख से निकले थे या लिखने वाले ने बाद में अपनी भाषा में भगवान के उपदेश के भाव को व्यक्त करने की कोशिश की? यदि ये श्लोक हूबहू वही हैं, जिनका भगवान ने स्वयं उच्चारण किया तो इनमें से कई श्लोक उपनिषदों के वाक्यों से मिलते क्यों हैं? यदि यह संख्या में भी उतने ही हैं तो इसके क्या प्रमाण हैं?
४. क्या अर्जुन ने भगवान का साक्षात्कार करने के बाद भी उनसे रथ हाँकने का कार्य लिया होगा और गीता-जैसे शान्तिप्रद एवं योग-युक्त बनाने वाले उपदेश को सुनने के बाद भी हिंसा वाला युद्ध किया होगा?
५. क्या इतने बड़े घमासान युद्ध में अर्जुन के रथ के घोड़े हताहत नहीं होते थे?
६. भगवान द्वारा इतने बड़े युद्ध कराने के बाद भारत देश का हाल क्या हुआ और पाण्डवों को क्या मिला और गीता-जैसे महान उपदेश को सुनने के बाद अर्जुन में आध्यात्मिक महानता कितनी आई और वह कहाँ तक योग-युक्त, स्थितप्रज्ञ, गुणातीत और दैवी सम्पदा सम्पन्न हुआ?
७. क्या 'भगवान' का इस रीति जन्म और देहावसान हो सकता है जिस रीति का उल्लेख श्रीमद्भागवत् में है?
८. क्या सचमुच श्री कृष्ण की १६१०८ पटरानियाँ थीं?
९. क्या यह सही है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों के वस्त्र चुराये थे? इसी प्रकार, क्या पूतना तथा अकासुर-बकासुर इत्यादि से सम्बन्धित आख्यानों को शब्दार्थ में सत्य मानना ठीक होगा?
१०. श्रीमद्भगवद्गीता पर अनेकानेक विद्वानों ने जो अनेक भाष्य लिखे हैं अथवा विभिन्न टीकायें की हैं, उनमें से सही कौनसी है? क्या उनमें वह भाव यथा-सत्य रीति से आया है जिसका भगवान ने रहस्योद्घाटन किया था? इस बात का निर्णय करने का साधन या तरीका क्या है?
इस प्रकार और भी बहुत-से प्रश्न मन में उठते थे। मैंने उनके समाधान के लिए इस विषय से सम्बन्धित अनेकानेक पुस्तकें भी पढ़ीं परन्तु वे प्रश्न प्रायः बने ही रहे। कुछेक विवेकसम्मत बातें अंश रूप में अलग-अलग पुस्तकों में बिखरी हुई मिलीं परन्तु उन सबको जोड़कर, सत्य का एक सुलझा हुआ स्वरूप और एक अन्तःविरोध-रहित, सम्पूर्ण ईश्वरीय उपदेश मेरे सामने नहीं आया।
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