सौराष्ट्र युनिवर्सिटी से सम्बद्ध देवमणी कोलेज, विसावदर (गुजरात) में अध्यापन कार्य करते-करते 'श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण और रामचरित मानस के चरित्रों का तुलनात्मक अध्ययन' विषय पर पी-एच० डी० करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जन्म से साधु का पुत्र होने से आराध्य श्रीराम की विष्णु रूप की ही छबि मन पर विद्यमान थी परंतु महर्षि वाल्मीकि द्वारा चित्रित राम के चरित्र का जब अध्ययन किया तब उनके मानवीय रूप को देख मन हर्षित हो गया।
महर्षि ने श्रीराम का मानव के रूप में चित्रण करते हुये उनमें मानवीय संवेदनाओं को भरपूर मात्रा में भरा है। रामायण में राम महाराज दशरथ तथा कैकेयी से हुये अन्याय की समीक्षा करते हैं। इतना ही नहीं, सीताहरण के पश्चात् राम सामान्य नायक की भाँति वियोग में तड़पते हुये पागलों सा व्यवहार भी करने लगते हैं। संक्षेप में महर्षि वाल्मीकि ने श्रीराम का मानव के रूप में चित्रण किया और वे भगवान बन गये जबकि तुलसीदास ने श्रीराम का भगवान के रूप में चित्रण किया और वे मानव बन गये। अतः पी-एच०डी० के महानिबंध में वाल्मीकि के मानव राम का विस्तृत चित्रण निबंध के विस्तार के भय से नहीं कर सका परंतु मन में निश्चय कर लिया कि पी-एच०डी० के समाप्त होते ही महाकवि वाल्मीकि द्वारा चित्रित मानव राम को समझने का सादर प्रयास करूँगा और इष्टदेव ने मेरी इच्छा को मूर्तिमान कर दिया।
प्रभु श्रीरघुनाथ की सागर समान चारित्रिक विशेषताओं की कुछ बूँदों को आपके समक्ष रख रहा हूँ, यदि इसमें कोई त्रुटि रह गई हो तो मुझे अपना समझकर क्षमा कर दीजिएगा। श्रीराम का चरित्र इतना विशाल है कि उनको समझना मेरे जैसे नासमझ के लिये दुष्कर है परंतु आप जैसे पहुँचे हुये ज्ञानीजन पाठक ही श्रीराम के चरित्र को समझ सकते हैं। जैसे 'मानस' में तुलसीदास ने लिखा है कि "अति बिचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान। जे मतिमंद बिमोह बस हृदय धरहिं कछु आन।।" फिर भी महाकवि वाल्मीकि के द्वारा चित्रित श्रीराम के चरित्र को अपनी मति के अनुसार समझकर मैं प्रसादी के रूप में आपके समक्ष रखता हूँ, विश्वास है आप इसको अवश्य स्वीकार करेंगे।
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