संस्कृत वाङ्मय वैश्विक ज्ञान का भण्डार है। संस्कृत वाङ्मय के दो भाग हैं (१) वैदिक एवं (२) लौकिक। वैदिक वाङ्मय मानव-जीवन के आध्यात्मिक एवं प्राथमिक पक्षों से सीधे जुड़ा हुआ है। जन्म से लेकर मोक्ष पर्यन्त मानव की यात्रा कहीं न कहीं वैदिक वाङ्मय के बिना अधूरी है। गर्भाधान संस्कार से लेकर जन्म से मृत्यु पर्यन्त अन्त्येष्टि एवं पितृपक्ष में श्राद्धसंस्कार तक मानव जीवन जन्म जन्मातर तक वैदिक वाङ्मय से ओत-प्रोत है।
मानव जीवन में जो भी समस्यायें आती हैं उन सबका समाधान अध्यात्म, तर्क, अनुमान, विश्वास, कर्मकाण्ड, आयुर्वेद, दर्शन, योग, मीमांसा, सांसारिक जीवन, मानवाधिकारवाद, कार्यकारणवाद एवं मनोविज्ञान से लेकर धर्मसूत्रों एवं स्मृतियों के आचरणगत उपदेशों के द्वारा अवश्य हो जाता है।
वैदिक वाङ्मय मानव को वह मार्ग दिखाता है जो लौकिक वाङ्मय से संभव नहीं है। वैदिक वाङ्मय के एक-एक शब्द, मंत्र, संहिता, ऋषि, सूक्त, देवता, छन्द, ब्राह्मण ग्रन्थों में, यज्ञों में उनके विनियोग, यज्ञ का अपूर्व एवं अदृष्टफल, उपनिषदों का लोकसम्बन्ध, धर्मगत आचरण तथा करणीय एवं अकरणीय का उपदेश कर मानव को परिष्कृत करते हैं। भारतीय संस्कृति स्पष्टतः वैदिक वाङ्मय में ही प्रतिबिम्बित होती है।
प्रस्तु ग्रन्थ ""वैदिक अनुसंधान के विविध आयाम"" ईश्वर की अहेतुकी कृपा, आचरणगत विद्याभ्यासी गुरुजनों के आशीर्वाद तथा 'लोकशास्त्र काव्याद्यवेक्षणात्' से उत्पन्न विविध पक्षों के प्रति संग्रहित अनुसन्धेय ज्ञान का परिणाम है। गुरुजनों के आशीर्वाद से समय-समय पर उत्पन्न एवं निबन्धात्मक कलेवर में निबद्ध वैदिक वाङ्मय के विविध पक्षों पर विचार आते रहे और शोध निबन्ध के रूप में संग्रहीत होते रहे। इसमें बहुत से ऐसे गूढ़ एवं शास्त्रीय शोध निबन्ध हैं जिन पर सामान्यतया दृष्टि नहीं पहुँच पाती। अभी वैदिक वाङ्मय के बहुत से अनछुए पक्षों पर कार्य किया जाना शेष है। वैदिक वाङ्मय के क्षेत्र में यह लघु प्रयास मानव मात्र के लिए यदि किञ्चित मात्र भी उपयोगी सिद्ध हुआ तो मैं अपने प्रयास को सार्थक समझेंगा।
हमारी भारतीय संस्कृति में किसी भी उपलब्धि पर देवों एवं गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन एवं उनसे आशीर्वाद लेने की परम्परा चली आ रही ह। 'तहमुनि राम, दण्डवत् कीन्हा, आशीर्वाद महामुनि दीन्हा, अजर अमर गुननिधि सुत होऊ, करहु बहुत रघुनायक छोहू।। इन लौकिक उदाहरणों से तथा त्वं नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव, सचस्वा नः स्वस्तये। इन वैदिक उदाहरणों से कृतज्ञता ज्ञापन की समृद्धपरम्परा सुस्पष्ट है। इस क्रम में सर्वप्रथम गोलोकवासी व्याकरणशास्त्र के अधिकृत विद्वान् स्वर्गीय पं० केदारनाथ दीक्षित जो मेरे पिता भी रहे के प्रति कृताञ्जलिपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ जिनसे दीपावली के अवसर पर ""नत्वासरस्वतीं देवीं से प्रारम्भ कर यदा-कदा अनुवाद, रूप एवं अन्त में कारक-प्रकरण तक कुछ अंशों का शास्त्रीय अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ। तदनु श्रीरामानन्द दीक्षित, श्री भरत सिंह, श्री तारकेश्वर लाल, श्री महँगू प्रसाद, श्री रमाशंकर तिवारी, श्री व्यास पाण्डेय, एवं श्री आद्या प्रसाद मिश्र प्राचार्य, जो कि मेरे व्यावहारिक जीवन के गुरू आज भी हैं के प्रति मैं प्रारम्भिक रूप में नतमस्तक हूँ। उच्चशिक्षा जगत में गोलोकवासी मेरे प्रारम्भिक गुरु एवं निर्देशक स्व० विश्वम्भरनाथ त्रिपाठी, तदनु मेरे कृतकार्य निर्देशक स्व० उमेश चन्द्र पाण्डेय के प्रति मैं श्रद्धांजलि निवेदित करता हूँ। गोरक्षपुर विश्वविद्यालय मेरा कर्म क्षेत्र रहा है अतः गोरक्षपुर विश्वविद्यालय में पहुँचते ही प्रथमतः अभिभावक एवं पितृतुल्य स्नेही विभागाध्यक्ष संस्कृत विभाग, पूज्यगुरु प्रोफेसर बनारसी त्रिपाठी के प्रति ऋणी हूँ और रहूँगा जिनकी कृपा के बिना यहाँ तक की शैक्षिक यात्रा संभव नहीं थी। संस्कृत विभाग के उन सभी गुरुजनां के प्रति मैं आभारी हूँ जिनसे मैंने विद्याग्रहण की है एवं किसी न किसी रूप में सहायता प्राप्त की है। संस्कृत विभाग में ही विगत वर्षों में उज्जैन से समागत आदरणीय बन्धु प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक के प्रति इसलिए कृतज्ञ हूँ कि जब कभी भी किसी तरह की शास्त्रीय शंका समाधान की बात होती है वे हमेशा मेरे लिए सुलभ रहते हैं। काशी से बाहर के गुरुजनों में प्रो० राजेन्द्र मिश्र (पूर्व कुलपति सं०सं०वि०वि० वाराणसी) शिमला, प्रो० वीरेन्द्र कुमार मिश्रा शिमला, प्रो० वाचस्पति उपाध्याय, कुलपति लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली, प्रो० वेम्पटि कुटुम्ब शास्त्री, कुलपति सं०सं०वि०वि० वाराणसी, प्रो० मानसिंह, कुरुक्षेत्र, प्रो० हरिदत्त शर्मा, प्रो० मृदुला त्रिपाठी, प्रो० राज लक्ष्मी वर्मा, इलाहाबाद, प्रो० रहस बिहारी द्विवेदी-जबलपुर, प्रो० विक्रम कुमार विवेकी-चंडीगढ़, वैदिक क्षेत्र के पितामह विश्वविश्रुत अधिकारी विद्वान, प्रो० व्रज विहारी चौबे, होशियारपुर पंजाब, अहमदाबाद गुजरात के प्रो० बसन्त कुमार भट्ट, प्रो० श्रीधर वसिष्ठ, नई दिल्ली, प्रो० सत्य प्रकाश शर्मा, अलीगढ़, प्रो० महावीर अग्रवाल, प्रो० ज्ञान प्रकाश शास्त्री-हरिद्वार, प्रो० मिथिला प्रसाद त्रिपाठी-निदेशक, कालीदास संस्कृत अकादमी-उज्जैन, प्रो० गोपालकृष्ण दास-भुवनेश्वर, प्रो० मदन मोहन अग्रवाल विभागाध्यक्ष, संस्कृत, नई दिल्ली, प्रो० राधावल्लभत्रिपाठी-विभागाध्यक्ष-संस्कृत विभाग, डॉ० हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म०प्र०), प्रो० श्रीमती सरोजा भाटे-सचिव, पूणे, पो० सत्यदेव कौशिक अलीगढ़ एवं प्रो० श्री किशोर मिश्र सचिव/निदेशक महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन, प्रो० राम प्रताप तिवारी, गढ़वाल; प्रो० दामोदर राम त्रिपाठी, नैनीताल, डॉ० जीतराम भट्ट, उपसचिव, दिल्ली संस्कृत अकादमी नई दिल्ली के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिनका आचार्यगत स्नेह एवं सहयोग हमेशा बना रहता है।
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