भूमिका
"आप वास्तु-शास्त्र पर एक पुस्तक क्यों नहीं लिखते?" यह प्रश्न अनायास ही मेरे जिज्ञासु मुवक्किल, मेरे विद्यार्थी और मेरी निःशुल्क वास्तु-कार्यशाला में भाग लेनेवाले विशाल जन-समूह मुझसे पूछते थे। वे मुझे परामर्श देते हुए यह कहते थे-"आपके सरल, सुबोध, स्पष्ट, व्यावहारिक एवं प्रायोगिक ज्ञान ने हमारे मन में वास्तु के प्रति अभिरूचि पैदा की है। अतः हम यह चाहते हैं कि आप इस बहुमूल्य प्राच्य-विद्या के समग्र ज्ञान को एक पुस्तक में निबद्ध कर दें ताकि इस विषय के सामान्य ज्ञान के मार्गदर्शन से जन-जन लाभान्वित हो सके।" अपने जिज्ञासु मुवक्किल, प्रिय विद्यार्थी-गण एवं अनुसरण-कर्ताओं के समुचित अनुरोध को मैं नजर अंदाज नहीं कर सका। अतः आपकी चिर-प्रतीक्षित पुस्तक अब आपके हाथ में है। मुझे हृदय में इस बात की अपार खुशी है कि मैं आपके अनुरोध पर आपके लिए एक विनम्र प्रयास कर सका। मेरी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पूज्य गुरू एवं मार्गदर्शक स्व. डॉ. द्रोणम राजू पूर्णचंद्र राव के सबल अनुशासन में हुई। आदरणीय गुरूदेव ने मुझे अत्यन्त दुर्लभ ज्ञान प्रदान किया जिसे मैंने सावधानी पूर्वक अपने अन्तस में उतारा और उसे आगे फैलाने का प्रयास किया। प्रायोगिक धरातल पर उनका वर्षों का सफल अभ्यास इसे सच एवं विश्वसनीय सिद्ध करता है मैं अनेक पुस्तक विक्रेताओं के पास गया। वहाँ मैंने देखा कि 'वास्तु' की पुस्तकों की बाढ़ आई हुई है। किन्तु वास्तु का संपूर्ण प्रायोगिक ज्ञान प्रदान करने वाली 'जमीन से जुड़ी' वह पुस्तक जो आम आदमी की प्रत्येक जिज्ञासा को पूर्ण कर सके, ढूँढ़ पाने में मैं असफल रहा। अनेक पुस्तकों में विशिष्ट शब्दावलियाँ हैं जिससे विषय-वस्तु नीरम शुष्क एवं बोझिल हो गई है। ऐसी पुस्तकें अव्यावहारिक एवं आम आदमी की समझ से दूर होती हैं। मेरे पूज्य एवं महान गुरुदेव के आशीर्वाद एवं वर्षों तक विषय पर किए हुए अध्ययन एवं शोध ने मुझे वास्तु के ज्ञान के गहरे महासागर में डुबकी लगाने का अवसर प्रदान किया जिसके परिणामस्वरूप में कुछ अनमोल दुर्लभ रत्न निकालकर आपके सामने रख पाने में सफल हो सका। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक में निबद्ध किए हुए ये दुर्लभरत्न अवश्य ही आपके जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि प्रदान करेंगे। विद्यार्थियों, मुवक्किलों एवं अनुसरण-कर्ताओं की निरंतर बढ़ती हुई संख्या वास्तु के क्षेत्र में निरन्तर प्रगतिशीलता एवं विकास की साक्षी है। वास्तु-शास्त्र के अनेक परामर्शदाता आपको प्रायः हर स्थान पर मिल जाएँगे परन्तु उनमें से खरे, विश्वस्त एवं प्रामाणिक गिने-चुने हैं। अधिकतर वास्तु-परामर्शदाता अपने आधे-अधूरे ज्ञान से लोगों को दिग्भ्रमित करते हैं। आम जनता को इस प्रकार के अल्प ज्ञान वाले झूठे परामर्श दाताओं से दूर रहना चाहिए | मुझे अभी भी निम्न पंक्तियाँ याद हैं- "लोगों की तीन श्रेणियाँ होती हैं-
1. जो लोग अज्ञानी हैं और जिन्हें यह जानकारी नहीं है कि उनके पास ज्ञान नहीं है, वे मूर्ख हैं।
2. जो लोग अज्ञानी हैं और जिन्हें इस बात की जानकारी है कि उनके पास ज्ञान नहीं है, वे सामान्य मनुष्य हैं और उन्हें आसानी से ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।
3. जो लोग ज्ञानी हैं और जिन्हें इस बात की जानकारी है कि उनके पास ज्ञान है, वे बुद्धिमान हैं और उनका अनुकरण करना चाहिए।" कौन किस श्रेणी में है,
पुस्तक परिचय
आज का जीवन तनाव और अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। आज ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो जीवन में सुख, शांति और सौहार्द प्राप्त करना नहीं चाहेगा? जीवन में आनेवाले संघर्षों से आज सभी चितित है। सभी स्वस्थ एवं सुखमय जीवन की अभिलाषा रखते हैं। वास्तु वह विज्ञान है जो हमें शाति से परिचित कराता है और सुखों की ओर उन्मुख करता है। वास्तु के उपचारों से लोगों ने जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त की है। अतः वास्तु के सिद्धान्त आज विश्वजनीन एवं सर्वमान्य है। यह पुस्तक वास्तु के वास्तविक ज्ञान से जन-जन को अवगत कराएगी। यह पुस्तक सरल, रोचक एवं सारगर्भित है। प्रखर प्रतिभाशाली विद्वान लेखक ने वास्तु के गढ़ सिद्धान्तों को अत्यन्त सहजता से प्रस्तुत किया है। आज वास्तु को लेकर लोगों में कई भ्रम हैं जैसे-दक्षिण मुखी घर अशुभ फलदायक होता है। इसी प्रकार अधुरे ज्ञान के कारण वास्तु को लेकर कई और भ्रम हैं।
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