'वेद-विमर्श' आज से लगभग सोलह वर्ष पूर्व प्रकाशित मेरे वेदविषयक बृहद् व्याख्याग्रन्थ की विस्तृत भूमिका है।
इसे वेद के विद्यार्थियों एवं जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी समझ कर पृथक् पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है।
इसमें वेद-सम्बन्धी प्रायः सभी विषयों पर आकर-ग्रन्थों के उद्धरणों सहित विवेचन किया गया है। केवल वैदिक स्वर-प्रक्रिया, वैदिक व्याकरण, वैदिक छन्दःशास्त्र और वेदाधिकार जैसे विषयों पर विमर्श नहीं किया गया क्योंकि ये विषय अधिक विस्तार की अपेक्षा रखते हैं; सीमित कलेवरवाले इस ग्रन्थ में इन विषयों पर यथायथ विवेचन सम्भव नहीं था। फिर भी, वेद से-सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण विषयों- 'वेदनित्यत्व', 'वेदापौरुषेयत्व' एवं मन्त्रों के 'अर्थवत्व' को लेकर इसमें प्रामाणिक तथा विशद विचार किया गया है जिससे अनुसन्धित्सु और सामान्य पाठक दोनों ही लाभान्वित हो सकेंगे।
इस लघु पुस्तक का शीघ्र और सुरुचिपूर्ण प्रकाशन करने हेतु प्रकाशक श्रीमान् सुभाष जैन और उनके सुयोग्य पुत्र श्रीदीपक जैन शुभाशंसा के पात्र हैं।
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