इतिहास लेखन का मूल उद्देश्य घटनाओं का क्रमबद्ध इतिहास लिखना नहीं है, अपितु उसके स्थान पर उसके मूल सिद्धांतों का विवरण प्रस्तुत करना होता है। इसी तरह किसी भी स्थान की आज़ादी का इतिहास लिखना आसान नहीं है। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। मुझे विदिशा जिले के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास लिखने, उसका शोध करने का दायित्व सौंपा गया जो कि एक श्रमसाध्य कार्य था।
1857 की महान क्रांति भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है। इस क्रांति की मूल धारा से विदिशा भी अनुप्राणित होता रहा। विदिशा, बासौदा, कुरवाई, हैदरगढ़, पठारी, मोहम्मदगढ़ और भोपाल रियासतों में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष सतत् रूप से होता रहा, जो आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन, देश की आज़ादी और रियासतों के भारत में विलीनीकरण से पूर्ण हुआ।
वस्तुतः मैं श्रीधर पराडकर जी के इस मत से सहमत हूँ कि 1857 में भारत में जो महान क्रांति हुई, उसका वास्तविक इतिहास किसी भी स्वदेशी अथवा विदेशी इतिहासकार ने लिखने का यत्न नहीं किया। विदिशा जिले के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास लेखन करते समय मैंने कई स्थानों पर पहुँचकर 1857 की क्रांति के विषय में जानकारी ली और खोज की। यदि अंबापानी के जागीरदार वीर शिरोमणी आदिल मोहम्मद विदिशा से सिरोंज या राहतगढ़ नहीं पहुँचते, तो वहाँ अंग्रेजों का मुकाबला करने वाला कोई नहीं था। जब आदिल मोहम्मद और फाजिल मोहम्मद ने सीहोर, भोपाल और रायसेन जिले में जाकर स्वतंत्रता की मशाल जलाते हुए विदिशा जिले में प्रवेश किया तो वहाँ भी सिरोंज, बासोदा, कुरवाई, आदि स्थानों पर क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित हो उठी। फाजिल मोहम्मद के बलिदान के बाद आदिल मोहम्मद ने तात्याटोपे के मार्गदर्शन में सिरोंज में अपना दबदबा बनाए रखा और नाना साहब पेशवा की कमान में बरेड के जंगल में अंग्रेजों की सेना से युद्ध करके क्रांति की अलख जगाए रखी। ऐसा कहा जाता है कि जब नाना साहब, तात्याटोपे ने अज्ञातवास ले लिया, तो आदिल मोहम्मद भी दरवेश बनकर फकीर के रूप में अजमेर शरीफ चले गए।
शोध के दौरान गढ़ी अंबापानी के वर्तमान जागीरदार जनाब इशरत मोहम्मद साहब, जो स्वयं फाजिल मोहम्मद के वंशज हैं, ने हैदरगढ़ और मोहम्मदगढ़ में नबाव साहब के परिवार से मिलवाया तथा फाजिल मोहम्मद और आदिल मोहम्मद की पूरी वंशावली से मुझे परिचित कराया इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। मोहम्मदगढ़ बासौदा स्टेट के नवाब सिद्दीकी कुली खाँ साहब के भाई मकसूद कुली खाँ के सपूत मसरूर कुली खाँ को भी सहयोग देने के लिए धन्यवाद।
इस शोध कार्य को वर्तमान रूप में प्रस्तुत करने में जिन विद्वानों, सहयोगी बंधुओं से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से सहयोग मिला हैं, उनका आभार व्यक्त करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ।
सर्वप्रथम मैं डॉ. श्रीमती ममता चंसौरिया जी का आभारी हूँ, जिन्होंने मेरे साथ गढ़ी अंबापानी, राहतगढ़, बेगमगंज, रायसेन, सिलवानी, उदयपुरा, बरेली, देवरी, तथा मोहम्मदगढ़, कुरवाई, बासौदा, सिरोंज, विदिशा का सर्वेक्षण किया तथा उक्त शोध कार्य में सहयोग प्रदान किया।
सिरोंज क्षेत्र में सहयोग प्रदान करने हेतु वीरनारायण शर्मा एडव्होकेट, रमेश सक्सेना, शिक्षक तथा कुरवाई में सहयोग करने हेतु सूरज प्रसाद श्रीवास्तव, भूपेन्द्र भार्गव, सुरेश शर्माजी का सहयोग हेतु आभारी हूँ। इस शोध कार्य के टंकण के लिए सरदार सिंह यादव (सीहोर) व वीरेन्द्र सिंह उर्फ मौनू चौहान (सीहोर) तथा शोध कार्य का संकलन करने व मूर्तरूप देने में मेरे ज्येष्ठ पुत्र मनोज सक्सेना एवं कनिष्ठ पुत्र राजीव सक्सेना को आर्शीवाद। इतिहास के शोध छात्र पाटीदार को भी आशीर्वाद।
अंततः स्वराज संस्थान संचालनालय का मैं हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने इस महत्वपूर्ण कार्य का दायित्व मुझे प्रदान किया।
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