P प्रस्तावना
भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने तथाकथित कोर क्षेत्र (शक्ति, इस्पात, एल्यूमीनियम, तांबा, खनन, भारी मशीनरी, कागज इत्यादि) में भारी निवेश किया। ये ऐसे उद्योग थे जिनमें भारी निवेश की आवश्यकता थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् के काल में इन उद्योगों में निवेश करने की निजी क्षेत्र में सामर्थ्य नहीं था, ऐसे समय में जब सापेक्षतया अल्पपूँजी निवेश से अल्प समय में अधिक लाभकमाने के अवसर उपस्थित हों, तब ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र इन दीर्घावधि परियोजनाओं में निवेश करने का इच्छुक नहीं था। सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश के लिए सरकार को उस काल में अल्प व्याज दर पर दीर्घावधि द्विपक्षीय ऋण एवं अनुदान सुविधापूर्वक उपलब्ध थे। इन ऋण एवं अनुदानों से प्राप्त राशि को व्यापारिक तर्कसंगतता पर विचार किये बिना सार्वजनिक क्षेत्र को अर्थव्यवस्था पर उच्च आधिपत्य स्थापित कराने के उद्देश्य से विस्तारित किया गया। इसके परिणामस्वरूप देश में उच्च लागत वाली औद्योगिक संरचना उभरकर सामने आई । सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा उत्पादित इस्पात, विद्युत, कोयला, उर्वरक, कागज इत्यादि उत्पादों की कीमतें सामाजिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर निर्धारित की गयी थीं, जिससे ये उत्पाद आमजन को उचित कीमत पर प्राप्त हो सकें । सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा कम कीमत पर उत्पादों की विक्री से हुये घाटों की पूर्ति बिक्री बजटीय आवंटन द्वारा पूरी की गयी। सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा उत्पादित उत्पादों से निजी क्षेत्र सस्ते कच्चे माल द्वारा लाभान्वित हुआ और निजी क्षेत्र ने उच्च लाभकमाया। इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का एक बड़ा या परियोजना के अवस्थान का चयन करना हो, इन चीजों पर वाणिज्यिक आधार पर मनन नहीं किया गया, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की दीर्घकालिक जीवन क्षमता और विदेशी बाजारों में उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम (विशेषकर भारी मशीनरी से सम्बद्ध) न तो ऊर्जा का उत्पादकीय उपयोग कर पाने में समर्थ थे और न ही अन्य आगतों का। सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक परियोजनाओं की लागत एवं परियोजना काल में वृद्धि हुई है, जिससे उनकी जीवन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है और वे लगभग रुग्णता को अवस्था में है। सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति एवं व्यक्तियों के रोजगार संरक्षण के लिए कई घाटे में चल रही निजी क्षेत्र की कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया। निजी क्षेत्र की कम्पनियों को सार्वजनिक क्षेत्र के दायरे में लाने से पूर्व वृहत् प्रबन्धकीय एवं वित्तीय बोझ पर मनन नहीं किया गया। साथ ही निजी क्षेत्र की ये कम्पनियाँ पुनः जीवन प्राप्त कर पाने में असफल रहीं । पिछले कुछ वर्षों में सरकारी विकास व्यय में निरन्तर कमी आई है जिसके कारण कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के उत्पादों के लिए माँग में कमी का संकट उत्पन्न हुआ है। इसमें वे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम आते हैं जो विकास हेतु आवश्यक उत्पादों का उत्पादन कर रहे है, जैसे- रेलवे कोच, बैगन एवं रेल के इंजन की निर्माण इकाइयों। ये इकाइयाँ माँग के लिए सरकारी विकास व्यय पर अत्यधिक निर्भर है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पर्याप्त स्वायत्तता का अभाव है
लेखक परिचय
नाम डॉ० राकेश कुमार तिवारी श्रीमती मुक्तेश्वरी देवी पिता का नाम श्री दीनदयाल तिवारी जन्म तिथि :०५ अगस्त, १९७९ ई० जन्म स्थान : ग्राम-सरेयों, पोस्ट कोचस जिला-रोहतास (बिहार), पिन कोड ८२१११२ शैक्षिक योग्यता एम.ए., पी-एच.डी. (महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ-वाराणसी) प्रन्य प्रकाशन विनिवेश का भारतीय औद्योगिक विकास पर प्रभाव १. महाभारतकालीन अर्थचिन्तन की परम्परा अप्रकाशित पुस्तकें २. भारत में विदेशी व्यापार एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन प्रकाशित शोध-पंत्र : विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में पंचाधिक शोध-पत्र प्रस्तुत शोध-पत्र विभिन्न राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रस्तुत अनेक शोध-पत्र वित्त सचिव अखिल भारतीय नवोदित साहित्यकार परिषद आजीवन सदस्यता अभिरुचियाँ १. इण्डियन इकोनोमिक एसोसियेशन (LE.A) २. उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड इकोनोमिक एसोसियेशन (U.P.U.E.A) स्थायी पता : अध्यापन, लेखन एवं शारीरिक प्रशिक्षण
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