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वाह ! क्या बात है ...?: Waah ! Kya Baat Hai ...?

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Specifications
Publisher: GEETA PRAKASHAN, HYDERABAD
Author Ravindra Bansode
Language: Hindi
Pages: 139
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 Inch
Weight 150 gm
Edition: 2011
ISBN: 8189035297
HBJ820
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Book Description
लेखक परिचय

डॉ रविन्द्र एस बनसोडे

जन्म स्थान

जमगा (क), ता आलन्द, जि. पुलबर्गा (कर्नाटक)

जिला

वी.ए.

सरकारी फर्स्ट ग्रेड पदवी महाविद्यालय, गुलबर्गा एम.ए. (हिन्दी)

गुलबर्गा विश्वविद्यालय, गुलबर्गा

शाथ कार्य

पीएच.डी.

प्रकाशन

अनुभव

वाह! क्या बात है...? (कविता संग्रह)

तथा विविध संगोष्ठियों में भाग लेना

हिन्दी अध्यापन कार्य का कुल ६-७ वर्ष।

पठन-पाठन, समीक्षात्मक लेखन

तथा गीत गायन

अतिथि प्राध्यापक, नूतन पदवी-पूर्व महाविद्यालय, गुलबर्गा गुलवगा विश्वविद्यालय मदर तेरेसा विज्ञान पदवी पूर्व विद्यालय, गुलबर्गा

वसंता बी. एड. कॉलेज,

नेशनल बी.एड. कॉलेज, गुलबर्गा

अब सरकारी प्रथम दर्जा महाविद्यालय, सेडम्, गुलबर्गा.

प्राक्कथन

भारतीय साहित्य में हिन्दी साहित्य का आरम्भ अपभ्रंश से है, जो प्राकृतभाषा से ही अपभ्रंश का विकास हुआ। इसी भाषा की अंतिम अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का प्रादुर्भाव माना जाता है। उस समय प्राकृत में 'गाथा' का बोध 'दोहा', दूहा कहने से.-अपभ्रंश तथा प्रचलित भाषा में काव्य भाषा का पद्य समझा जाता था। इस तरह १०-११वी शताब्दी के अपभ्रंश काल के बाद हिन्दी साहित्यिक स्वरूप तेरहवीं शताब्दी के 'रासो' काव्यों से हिन्दी भाषा का आरम्भ होने लगा। आज हिन्दी का अंतराष्ट्रय स्तर पर द्वितीय एवं तृतीय दर्जा का स्थान पाया जा रहा है।

हमारे भारत देश में सामाजिक-राजनीतिक, जीवन की सुख-शांति के लिए सर्वधर्म समन्वय की संकल्पना अत्यन्त महत्वपूर्ण रही है। स्वतंत्र भारत के भाग्यविधाताओं का पवित्र संकल्प यह था कि इस देश में किसी भी प्रकार के जातीय-प्रजातीय एवं सांप्रदायिक भेद-भाव के लिए स्थान नही देना चाहिए। यहाँ समता की भूमिका है जो मंदिर, मस्जिद, काबा, कैलाश आदि में एक ही अलौकिक विभूति के विस्तार की व्यंजना की जाती है। बीसवीं शताब्दी से मानवतावाद यानी वर्ण, वर्ग आदि से मुक्त मानव के प्रति आत्मीय भाव। वैचारिक और व्यवहारिक, सहिष्णुता लाने तथा सभी धर्मों की संकीर्ण बाह्याचार-विषयक रूढियों का विरोध साहित्यकारों, लेखकों एवं कवियोंद्वारा होता रहा है। बनसोडे की कविताओं की यही पृष्ठभूमि है जो इस काव्य-परम्परा की तात्विक खूबियाँ, उस काव्य का सौंदर्य तथा उसकी शक्ति एक नए अंदाज से मुखरित की है। जिसमें समसामायिक जीवन की जटिल समस्याएँ, विषमता की समस्या, सामाजिक समस्या, धार्मिक समस्याएँ, प्रेम समस्याएँ, नैतिक समस्या आदि

। डॉ. रवीन्द्र बनसोडे हिन्दी साहित्य के नई पीढी का एक ऐसा सशक्त हस्ताक्षर करने में सक्षम नहीं ऐसा कहा नहीं जा सकता, क्योंकि 'बाह ! क्या बात है?' इस कविता संग्रह से वे कवि होने का प्रमाण देते हैं। इनकी कविताएँ मानव मन को रीति-नीति का नैतिक सच्चा एवं ईमानदार इन्सान बनने का समर्थन करती हैं। इनका काव्य संग्रह निश्चय ही उत्कृष्ट बन सकता है ऐसी प्रतिभा इनकी कविताओं में अवश्य पाई जाती है। प्रस्तुत कविताएँ पढने से जीवन की किसी घटनाओं, कार्यो, वार्तालापों तथा विचार तत्वों को अपने बुध्दि से वक़्त और जीवन की बातें सामान्य पाठक भी आसानी से समझ सकता है।

बनसोडे की अच्छी कविता महज कविता ही नहीं बल्कि एक जीवन संदेश है, उसमें सभी की जिन्दगी बनी रहने का एक मिसाईल है। जिसमें - (वक़्त किसी का नहीं ।)

न करने दो अत्याचार हर वक्त किसीको, हृदय का भार हटाके बहलाओं हर किसीको । विषमता का विष पीने न दो हर किसीको, जन-हित जीने का संदेश दो हर किसीको ।

(जीवन की बातें)

जिसमें न विद्वत्ता, न धर्म, न साधक, न वह शील न गुण-दान, ऐसा अधर्मी मनुष्य, मनुष्य नहीं वह तो एक पशु समान। जहाँ दिन-रात कलह और नाना क्लेश हो वह कुटीयाँ तो नरक समान । गंदगी से नहीं, उसके गुण कार्य से मनुष्य बड़ा है, रूप रंग से नहीं। एक बार एक ही चीज मिलती है खो जानेपर हाथ लगती नहीं, अन्न, जल, प्रिय, वचन से बढकर मूल्यवान रत्न और कोई नहीं।

कितनी बीत गई आयु अब कितनी रह गयी, माया और मोह में फँसकर पछताने में खो गयी। नगाड़ा बज सकता है आठो पहर दुनिया में कुछ कर लेना, सौदा करना है कुछ दुनिया की हाट में गफलत से काम न बनाना।

(सामना)

आँसूओं की नदी बहाना नहीं, दिन-रात रो के सोना नहीं। हर मुसीबतों से डरना नहीं, हिम्मत कभी हरना नहीं।

कायरों की तरह ड़र के मरना नहीं, फिजुल बातों से क्षण ढालना नहीं। अपने कर्मो में गौण होना नहीं, दूसरों को दोष देना नहीं।

भूमिका

डॉ. रबिन्द्र बनसोडे काव्य लिखने की अभिरूचि रखनेवाला एक क्रियाशील व्यक्ति रहा है। इन्होंने एम.ए. की शिक्षा के साथ-साथ कविता करने का अंदाज भी प्राप्त कर लिये थे। अब इनका यह पहला 'बाह ! क्या बात है?' (काव्य संग्रह) प्रकाशित हुआ है। इनके काव्य में नैतिकता का अनैतिकता पर सत्य का असत्यपर ईमान का बेईमान पर प्रहार कर वास्तविकता के सच्चे राह को अपनाने का सहज सरल चित्रण चित्रित किया गया है। दुःखीत, असहायों का दर्दभरा जीवन व्यक्त करने का गुण इनमें हैं। डॉ. बनसोडे कविताओं के जरिए उन दुःख दर्द एवं ठोकर की आवाज है, जो झूठे, मिथ्यावादी, छली कपटीयों के विरूध्द उभरकर सामने आती है। व्यक्तियों में स्थित विविध मानसिक पहलुओं तथा प्रीति-प्रेम गीत, देशीय भाषा एवं बोलचाल का चिन्तन बहुमुखी आयामों से मुखरित किया गया है।

इन्होंने मानव एवं धर्म नीति के अंतर्दृष्टि पर नजर ड़ाली है। तथा काव्य का कार्य सौन्दर्य, सृष्टि, तीव्रानुभूति अनागत भविष्य के अन्तराल की झाँकी उपस्थित की है। विचार कल्पना शक्ति एवं बिम्ब योजना से ये 'जहाँ न जाय रवि वहाँ जाय कवि' की उक्ति को सार्थक बनाते हैं। भाषा, छन्द एवं शिल्प विधान के परिप्रेक्ष्य में कलात्मक सौन्दर्य का आत्मसात इस कृति के मर्म में प्रविष्ट होता है। कवि रविन्द्र बनसोडे मानव मन को यह सचेत करते हैं कि, हमारे पीछे कोई हमदर्द है या चोर या घूसखोर। क्योंकि मनुष्य का मन कभी-कभी जानकर भी अनजान बन जाता है। इन्होंने उन मानवीय मन की संवदेनाओंपर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं। जो रूढी-परम्परा के खण्डन का कोई नया मूल्य है तो उस मूल्य को कैसा मिथ्या कहकर झुठलाया जाता है। इस काव्य संग्रह के तहत् मनुष्य के अस्तित्व को एक योग्य दिशा एवं शैली देने का प्रयत्न किया गया है। यह कृति निश्चित स्तुत्य एवं अमूल्य मानी जा सकती है।

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