नीतिशास्त्र आम तौर पर मार्गदर्शक व्यवहार को एक सुत्र करने के विचार को संदर्भित करता है। आदमी और आदमी, आदमी और समाज तथा व्यवहार मानदंडों के मानव और प्राकृतिक उपचार के बीच संबंध न केवल शामिल है जो नैतिक व्यवहार की अवधारणा के दृष्टि से दार्शनिक सोच है।
नैतिक आचरण की अनिवार्यता के आधार भी अनेक रूपों में कल्पित हुए हैं। मनुष्य के इतिहास में नैतिकता का सबसे महत्वपूर्ण नियामक धर्म रहा है। हमें नैतिक नियमों का पालन करना चाहिए, क्योंकि वैसा ईश्वर या धर्म व्यवस्था का इष्ट है।
सदाचार की दूसरी नियामक शक्ति राज्य है। लोगों को अनैतिक कार्यों से विरत करने में राजाज्ञा एक महत्वपूर्ण हेतु होती है। इसी प्रकार समाज का भय भी नैतिक नियामों को शक्ति देता है।
वैसे तो हिन्दी में अनेक पाठ्य-पुस्तके छात्रो को सुलभ है किन्तु नीतिशास्त्र की भाषा की क्लिष्टता तथा विचारों की जटिलता के स्थान पर सरल भाषा में पुस्तक प्रस्तुत किया है। महान नीतिशास्त्रीय विचारको के विचारो और सिद्धांतो को अवगत कराने व उनकी प्रारम्भिक समझ उत्पन्न करवाने की दिशा में एक कदम है। वे दार्शनिक जिनके विचार अत्यन्त महत्वपूर्ण तो है किन्तु कम चर्चित रहे है। उन पर विस्तार से चर्चा की गयी है। नीतिशास्त्र के विभिन्न आयामा से विद्यार्थियों को अवगत कराना इस पुस्तक का ध्येय है।
प्रस्तुत पुस्तक को उपयोगी व बोधगम्य बनाने के लिए कुछ लिखित व अलिखित स्रोतों से सहायता ली गई है जिनके लेखकों व प्रकाशकों के प्रति में विनम्र आभार प्रकट करता हूं। आशा है पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी सावित होगी।
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