योग के करने की क्रियाओं व आसनों को योगासन कहते हैं। संसार की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है।
योग परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है। हालाँकि इसका इतिहास दफन हो गया है, अफगानिस्तान और हिमालय की गुफाओं में और तमिलनाडु तथा असम सहित बर्मा के जंगलों की कंदराओं में।
जिस तरह राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे पड़े है, उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते हैं। बस जरूरत है भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को खोज निकालने की जिस पर हमें गर्व है।
माना जाता है कि योग का जन्म भारत में ही हुआ, मगर दुखद यह रहा कि आधुनिक कहे जाने वाले समय में अपनी दौड़ती-भागती जिंदगी से लोगों ने योग को अपनी दिनचर्या से हटा लिया, जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर हुआ। मगर आज भारत में ही नहीं विश्व भर में योग का बोलबाला है और निःसंदेह उसका श्रेय भारत के ही योग गुरूओं को जाता है जिन्होंने योग को फिर से पुनर्जीवित किया। श्री तिरुमलाई कृष्णामचार्य, बीकेएस अयंगर, रामदेव कुछ ऐसे ही नाम है जिन्होंने योग को फिर से ऊँचाईयों पर पहुँचाया है।
योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभहै। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन सामग्री की आवश्यकता होती है।
पुस्तक में कई लिखित व अलिखित स्रोतों से मदद ली गई है। मैं उन सभी विज्ञ लेखकों के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ। और साथ ही आशा करता हूँ की पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी होगी।
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