भारत की राजभाषा हिन्दी के संस्कार की जड़ें सुदीर्घ अतीत की संरचना भाषा से जुड़ी है। अपनी विकास यात्रा में उससे सिंचित होते हुए उसने अनेक विदेशी शब्दों से स्वयं को समृद्ध किया तथा अपनी सांस्कृतिक पहचान और अस्मिता की रक्षा की है। आजादी के समय हिन्दी ने भारत की बहुलतावादी एवं विविधवर्णी पहचान को एकसूत्र में बाँधकर अपनी शक्ति व समावेशी प्रवृत्ति का परिचय दिया। वर्तमान विश्वग्राम की संकल्पना और प्रौद्योगीकरण के दौर में भी हिन्दी ज्ञान, विज्ञान, कम्प्यूटर व अन्य क्षेत्रों में भी सार्थक हस्तक्षेप कर सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही है। भारत की संस्कृति व आत्मा से परिचय का माध्यम हिन्दी को जानकर ही अनेक अन्तर्राष्ट्रीय मंच हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन को महत्वपूर्ण स्थान दे रहे हैं। हिन्दी की यह वैश्विक उपस्थिति उसकी क्षमता का परिचायक है। इसी क्षमता के विकास का उत्तरदायित्व हमारे शिक्षा जगत् पर है।
कतिपय भाषा सर्वेक्षण जब गत् पचास वर्षों में देश की दो सौ पचास भाषाओं के क्लुिप्त होने की ओर संकेत कर रहे हों, तब शिक्षा से जुड़े वर्ग का यह महती कर्तव्य है कि वे हिन्दी माध्यम में कला, विज्ञान, मानविकी व तकनीकी क्षेत्रों में सार्थक लेखन कर हिन्दी को युगानुकूलन बानने में संकल्पपूर्वक योगदान करें। वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा इस उद्देश्य पूर्ति हेतु लाखों शब्दों का निर्माण किया जाना महत्वपूर्ण है। हिन्दी माध्यम से उच्च शिक्षा प्राप्त कर निश्चित ही ग्रामीण क्षेत्रों में आने वाले सैकड़ों विद्यार्थी लाभान्वित होंगे तथा देश की भावी पीढ़ी मातृभाषा में अध्ययन कर अपनी संस्कृति व अस्मिता से भी अटूट संबंध अनुभूत करेगी।
मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी ने अपनी स्थापना वर्ष से ही इस कार्य को प्राथमिकता से पूर्ण करने का संकल्प निभाया है। मुझे आशा है कि उच्च शिक्षा से जुड़ा वर्ग हिन्दी में पुस्तक लेखन व उसके प्रचार-प्रसार में दृढ़ता व संकल्पपूर्वक सहयोग कर इस संस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में अपना अमूल्य योगदान देगा।
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