| Specifications |
| Publisher: Indian Institute Of Advanced Study, Shimla | |
| Author Richard Sorabji | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 44 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 70 gm | |
| Edition: 2000 | |
| ISBN: 8185952841 | |
| HBH811 |
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रिचॉर्ड सोराबजी प्राचीन यूनानी दर्शन के सुप्रसिद्ध विद्वान् हैं, सम्प्रति वुल्फ्सन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड के फैलो, और किंग्ज़ कॉलेज लन्दन में प्राचीन दर्शन के प्रोफेसर हैं। वे अरिस्टोटल ऑन् मेमरी; नसैस्टि कॉज़ एण्ड ब्लेम; मैटर, स्पेस एण्ड मोशन पुस्तकों के लेखक और फिलीपोन्स एण्ड रिजेक्शन ऑव् अरिस्टोटेलियन साइन्स, और अरिस्टोटल ट्रांसफोर्ड नामक पुस्तकों के संपादक हैं। वे डकवर्थ द्वारा प्रकाशित एशियन्ट कॉमेन्टेटर्ज़ ऑन अरिस्टोटल नामक श्रृंखला के प्रधान संपादक हैं।
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के वर्ष 1996 और 1997 के राधाकृष्णन् स्मृति व्याख्यान आपके समक्ष प्रस्तुत किए जा रहे हैं
राधाकृष्णन् स्मृति व्याख्यान, संस्थान का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शैक्षिक कार्यक्रम है। इस व्याख्यानमाला का शुभारम्भ डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् की स्मृति को बनाये रखने एवं उनके द्वारा इस संस्थान के रूप में हमें प्रदत्त उपहार के लिए कृतज्ञता ज्ञापन करने की दृष्टि से किया गया था। प्रतिवर्ष डा. राधाकृष्णन् के जन्म सप्ताह में किसी दिन अपने इष्ट विषय पर व्याख्यान देने के लिए देश या विदेश के किसी लब्ध प्रतिष्ठ विद्वान को निमंत्रित किया जाता है। वर्ष 1996 का व्याख्यान 'स्टोइक मनीषी को दर्शनशास्त्र कैसे सन्तुष्ट करता है' विषय पर किग्ज़ कॉलेज, लन्दन के प्रोफेसर रिचार्ड सोराबजी द्वारा दिया गया। प्रोफेसर सोरावजी ने संस्थान में हमारे विद्वानों के साथ भाषण में उठाए गए मुद्दों और अन्य सामान्य शैक्षिक एवं पाण्डित्यपूर्ण विषयों पर चर्चा करते हुए स्मरणीय सप्ताह बिताया। प्राफेसर सोराबजी ने पहले से ही तैयार मूल-पाठ को नहीं पड़ा। रेकार्ड किये गए व्याख्यान को थोड़ा बहुत संपादित करके यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
वर्ष 1997 का व्याख्यान दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आआंद्रे बेत्ते ने दिया। उनके व्याख्यान का विषय 'समाजशास्त्रीय जिज्ञासा में परंपरा का स्थान' था। प्रोफेसर बेते भी हमारे फेलोज़, ऐसोशिएट्स और आमंत्रित विद्वानों के साथ अपने भाषण पर चर्चा करने के लिए संस्थान में रुके रहे। व्याख्यान और उस पर हुई चर्चा संस्थान की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है।





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