प्रो. एम. एम. सेमवाल हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर, उत्तराखण्ड में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं। प्रो. सेमवाल सुशासन, भारतीय सरकार और राजनीति, क्षेत्रीय अध्ययन और हिमालय की पर्यावरणीय राजनीति में विशेषज्ञ हैं। वर्तमान तक 7 संदर्भ पुस्तकें, 98 शोध पत्र और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में 164 लोकप्रिय लेख प्रो. सेमवाल द्वारा प्रकाशित किए गए हैं। प्रो. सेमवाल अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय जर्नल के संपादकीय बोर्ड के विशिष्ट सदस्य हैं, और प्रतिष्ठित राज्य एवं केंद्रीय विश्वविद्यालयों के बोर्ड ऑफ स्ट्डीज के सदस्य हैं। अकादमिक भूमिका के अलावा, विश्वविद्यालय में डॉ. अंबेडकर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के समन्वयक हैं। प्रो. सेमवाल उत्तराखण्ड पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन और इंटरनेशनल गुडविल सोसाइटी ऑफ इंडिया, गढ़वाल चौप्टर के अध्यक्ष और इंडियन पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन के कार्यकारी सदस्य हैं। शिक्षा और सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पण ने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए हैं। राज्य सरकार द्वारा ""2021 के शिक्षक"" सम्मान और पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान के लिए 2001 में राष्ट्रीय सम्मान 'कलम के सिपाही' एवं शिक्षा के क्षेत्र में 2002 में ""आराधक श्री"" से सम्मानित किए गए हैं।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय, उत्तराखण्ड के गोपेश्वर परिसर में असि. प्रो. राजनीति विज्ञान के पद पर कार्यरत हैं। राजनीति सिद्धांत, भारतीय राजनीति एवं शोध विधि डॉ. मिश्रा के अध्ययन क्षेत्र हैं। डॉ. मिश्रा ने 2011 में नेट जे.आर.एफ. प्राप्त 2015 में शोधकार्य किया और 20 से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन एवं पुस्तकों में अध्याय लेखन भी किया है। डॉ. मिश्रा भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद् एवं उत्तराखण्ड राजनीति विज्ञान के सदस्य हैं।
डॉ. निभा राठी महिला विद्यालय डिग्री कॉलेज सतीकुण्ड, कनखल, हरिद्वार में राजनीति विज्ञान में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। डॉ. राठी राजनीति विज्ञान परिषद तथा उत्तराखण्ड राजनीति विज्ञान परिषद की सदस्य हैं। डॉ. राठी ने वर्ष 2011 में हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक के साथ स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। वर्ष 2012 में इन्होंने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET) उत्तीर्ण की। डॉ. राठी के विभिन्न शोध पत्रिकाओं में 17 से अधिक शोध पत्र और 15 से अधिक अध्याय विभिन्न सम्पादित पुस्तकों में प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ. मनीष कुमार मिश्रा श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय, उत्तराखण्ड के गोपेश्वर परिसर में असि. प्रो. राजनीति विज्ञान के पद पर कार्यरत हैं। राजनीति सिद्धांत, भारतीय राजनीति एवं शोध विधि डॉ. मिश्रा के अध्ययन क्षेत्र हैं। डॉ. मिश्रा ने 2011 में नेट जे.आर.एफ. प्राप्त 2015 में शोधकार्य किया और 20 से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन एवं पुस्तकों में अध्याय लेखन भी किया है। डॉ. मिश्रा भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद् एवं उत्तराखण्ड राजनीति विज्ञान के सदस्य हैं।
डॉ. निभा राठी महिला विद्यालय डिग्री कॉलेज सतीकुण्ड, कनखल, हरिद्वार में राजनीति विज्ञान में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। डॉ. राठी राजनीति विज्ञान परिषद तथा उत्तराखण्ड राजनीति विज्ञान परिषद की सदस्य हैं। डॉ. राठी ने वर्ष 2011 में हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक के साथ स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। वर्ष 2012 में इन्होंने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET) उत्तीर्ण की। डॉ. राठी के विभिन्न शोध पत्रिकाओं में 17 से अधिक शोध पत्र और 15 से अधिक अध्याय विभिन्न सम्पादित पुस्तकों में प्रकाशित हो चुके हैं।
भारतीय शासन और राजनीति की गहन जानकारी राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों और प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थियों के लिए आवश्यक है। विद्यार्थियों को भारतीय शासन की आधारभूत जानकारी होना तो आवश्यक है ही, साथ ही राजनीतिक चर्चाओं में 'जागरूक नागरिक भागीदारी भी आवश्यक है।
किसी राष्ट्र की प्रकृति को समझने के लिए राष्ट्र द्वारा स्वीकृत एवं विकसित राजनीतिक प्रक्रियाओं का ज्ञान आवश्यक है। विकास प्रक्रियाएँ भी राजनीतिक व्यवस्था द्वारा निर्देशित होती हैं। यह अध्ययन का विषय है कि भारतीय शासन की संरचना और प्रकार्य क्या हैं? शासन किन उद्देश्यों एवम नीतियों को लेकर गतिशील बना रहता है? भारत में नागरिकों और राज्य का संबंध किस प्रकार का है? राज्य की प्रकृति किस प्रकार की है? सबसे अधिक गणराज्य की प्रकृति का मूल्यांकन और संविधान के उद्देश्यों के अनुरूप नागरिक कल्याण की जाँच भी आवश्यक है। भारत में केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य संबंध किस प्रकार से संघवाद की अवधारणा को नए आयाम देते हैं? इन प्रश्नों और विषयों को स्पष्ट करना पुस्तक का एक विनम्र प्रयास है। राजनीति में साम्प्रदायिकता और धर्म एक गंभीर संवेदनशील विषय है और इसकी भारतीय व्याख्या आवश्यक है। प्रधानमंत्री पद की गरिमा, संसद की कार्य पद्धति एवं शक्तियाँ और न्यायपालिका की हस्तक्षेपकारी भूमिका का अध्ययन वर्तमान में अनिवार्य है। महिला, किसान, श्रमिक और पर्यावरण के विषय, व्यावहारिक राजनीति में केंद्रीय स्थान रखते हैं। आजादी के बाद विकास रणनीति और भारत को विकसित बनाने के निर्धारित लक्ष्यों एवं प्रयासों की जानकारी होना भी आवश्यक है। यह पुस्तक उपरोक्त पृच्छाओं के समाधान का प्रयास है।
पुस्तक का प्रारंभिक अध्याय, भारतीय राजनीति के उपागम और भारतीय राज्य की प्रकृति के विषय में है। तदंतर, मौलिक (मूल) अधिकार, निदेशक सिद्धांत की आधारभूत संवैधानिक व्यवस्थाओं का विवेचन किया गया है और शासन के महत्त्वपूर्ण अंग कार्यपालिका के अंतर्गत प्रधानमंत्री पद की बदलती भूमिका की चर्चा है। संसद की शक्तियाँ और कार्य प्रणाली की समकालीन स्थिति को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। न्यायपालिका में न्यायमूर्ति की नियुक्ति के विषय की स्पष्टता और न्यायालय की सक्रियता की समीक्षा पुस्तक में है। 'न्यायिक संयम' के महत्त्व को रेखांकित करते हुए न्यायिक सक्रियता के साथ संतुलन बनाए रखने के सुझाव भी दिए गए हैं। भारतीय राजनीति में शक्ति की जाँच जाति, वर्ग और जेंडर की कसौटी पर की गई है। शक्ति का असमान बँटवारा राष्ट्रीय विमर्श का विषय होना चाहिए क्योंकि इससे ही सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय की गारंटी हो सकती है। सत्ता प्राप्ति की चुनावी राजनीति में मुख्य अभिनेता राजनीतिक दल होते हैं। वे अपनी निश्चित विचारधारा और कार्यक्रम का प्रसार कर जनता को लुभाने का प्रयास करते हैं। अतः राष्ट्रीय दलों की विचारधारा और चुनावी प्रदर्शन का अध्ययन दलों की नीति और भविष्य के आंकलन में सहायक है। पुस्तक धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के जटिल विषय की चर्चा को समाहित करती है। भारतीय संदर्भ में इसे पुनर्परिभाषित किए जाने की आवश्यकता भी अनुभूत की जा रही है। भारतीय गणराज्य के प्रगति की समीक्षा विकास की उपलब्धियों से होती है, इसलिए राज्य द्वारा किए जा रहे प्रयासों की जाँच आवश्यक है। अंततः राजनीति को आकार देने में किसान, श्रमिक, महिला और पर्यावरणीय आंदोलन महत्त्वपूर्ण रहे हैं। उपरोक्त मुद्दों को भी पुस्तक इंगित करती है।
भारतीय शासन एवं राजनीति की यह पुस्तक भारतीय राजनीति के सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक पक्ष को स्पष्ट करने का विनम्र प्रयास है। भारतीय राजनीति के विविध आयामों को प्रचलित पाठ्यक्रम के अनुरूप पुस्तक समाहित करती है। यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्य के दृष्टिगत तैयार की गई है। वरिष्ठ प्रोफेसर के अनुभव और उत्साही युवा प्राध्यापकों के योगदान से पुस्तक अधिक ग्रहणीय बनी है, ऐसी आशा है। राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी ही नहीं, अपितु भारतीय राजनीति के जिज्ञासु भी पुस्तक से लाभान्वित होंगे, ऐसा हमारा विश्वास है। पुस्तक के प्रकाशन के लिए किताब महल पब्लिशर्स के प्रति हम हृदय से आभारी हैं। पुस्तक के विचार को साकार करने में लेखकजनों के प्रति भी हम आभार जताते हैं। विशेषकर वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. राजीव कुमार जी का, जिन्होंने व्यस्तता से समय निकालकर धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को सरलता से प्रकट किया है।
पुस्तक में प्रत्येक इकाई का परिचय देने का प्रयास किया गया है। इससे अध्यायों के अध्ययन से पूर्व एक समझ विकसित हो सकेगी। पाठक में विषय के प्रति रुचि पैदा हो, यह भी परिचय का उद्देश्य है। अंत में, पाठकवर्ग से विनम्र आग्रह है कि आप पुस्तक का समग्रता से अध्ययन कर भविष्य में इसे और बेहतर बनाने के लिए सुझाव देंगे।
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