इतिहास साक्षी है कि मानव जीवन में काव्य का अपना विशेष महत्व रहा है। वैदिक काल से आज तक काव्य के रूपों में परिवर्तन आया किन्तु यह मानवीय अभिव्यक्ति का अभिन्न अंग रहा। प्रत्येक काल में कवियों ने युगानुरूप काव्य-सृजन किया। इन कवियों के काव्य के केन्द्र में स्त्री रही जिस पर इन्होंने बढ़-चढ़कर काव्य लिखा। आदिकाल से आधुनिक काल के पूर्व तक स्त्रियों द्वारा काव्य-सृजन नगण्य ही रहा, स्त्री केवल पुरुष मानसिकता की आधीन कविता का विषय बनी रही।
आधुनिक काल से पुरुषों की मानसिकता में भी परिवर्तन आया और तुलसीदास, कबीर आदि की सीमित मानसिक परिपाटी से निकल उन्होंने 'स्त्री' के अस्तित्व को पूर्ण रूप से तो नहीं किन्तु कुछ सीमा तक स्वीकार किया और कविताएँ लिखीं। इस काल में स्त्रियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की और केवल स्त्री-पीड़ा को ही अभिव्यक्ति नहीं दी अपितु समाज और विश्व में हो रही गतिविधियों पर भी अपनी विचारशक्ति का परिचय दिया है।
21 वीं सदी में अनेक कवयित्रियाँ काव्य-सृजन में संलग्न हैं और सबकी अपनी अनूठी शैली है लेकिन मुझे कुछ कवयित्रियों ने अधिक प्रभावित किया है उनमें से मैंने दस कवयित्रियों अनामिका, कात्यायनी, गगन गिल, सविता सिंह, सुशीला टाकभौरे, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल, वर्तिका नंदा, मृदुल जोशी और रंजना जायसवाल का चयन करके उनकी कविताओं को अपने शोध का विषय बनाया है और प्रस्तुत शोध में इनकी कविताओं में वर्णित सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं के साथ-साथ भ्रष्टाचार, भूमण्डलीकरण, भय-आतंक, अराजकता और साम्प्रदायिकता जैसे विचारणीय विषयों पर भी प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
प्रस्तुत अध्ययन में कविता के अर्थ एवं स्वरूप की स्पष्ट व्याख्या करते हुए 21 वीं सदी से पूर्व एवं 21 वीं सदी की कविता का गहन अध्ययन विश्लेषण करते हुए वैदिक काल से अब तक की कविता में स्त्री की बदलती स्थिति और काव्य-जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती कविता करती स्त्री के अवदान को कवयित्रियों की कविताओं द्वारा प्रस्तुत करना ही इस शोध का प्रमुख उद्देश्य है।
प्रस्तुत शोध विषय पर इससे पूर्व कोई कार्य नहीं किया गया जिसमें अनेक कवयित्रियों को साझा कर साहित्य-जगत में उनके अवदान पर चिन्तन-मनन किया गया हो, इसीलिए मैंने इसे अपने अध्ययन का विषय चुना।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध '21वीं सदी की प्रमुख कवयित्रियों का हिन्दी कविता में अवदान' को पाँच अध्यायों में विभक्त किया गया है।
प्रथम अध्याय का शीर्षक 'कविता सैद्धान्तिक विवेचन' है। जिसमें दो उपशीर्षक क्रमशः 'कविता: अर्थ एवं तात्पर्य' तथा 'कविता का इतिहास' है। इनके अन्तर्गत विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं द्वारा कविता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए '21वीं सदी से पूर्व' एवं '21वीं सदी की कविता में आदिकाल से लेकर आज तक के कविता लेखन में स्त्री के प्रति पुरुष कवियों के बदलते दृष्टिकोण के साथ-साथ कविता में स्त्री-लेखन की बढ़ती भागीदारी पर प्रकाश डाला गया है।
द्वितीय अध्याय का शीर्षक '21वीं सदी की प्रमुख कवयित्रियाँ : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' है। इसके अन्तर्गत चयनित 10 कवयित्रियों (अनामिका, कात्यायनी, गगन गिल, सविता सिंह, रंजना जायसवाल, निर्मला पुतुल, मृदुल जोशी, नीलेश रघुवंशी, वर्तिका नंदा एवं सुशीला टाकभौरे) की जीवन-सम्बन्धी घटनाओं एवं इनकी कृतियों की साहित्य जगत में महत्ता और साहित्य के क्षेत्र में अर्जित उपलब्धियों पर प्राप्त सम्मान की चर्चा की गयी है।
21 वीं सदी की इन कवयित्रियों का स्वयं का जो अनुभव साहित्य में विशेषतः कविता-लेखन में स्त्री की कलम और स्त्री-वर्ग के प्रति पुरुष-मानसिकता क्या है? इस पर मैंने उनसे लिए साक्षात्कार द्वारा प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
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