जैसा कि मैं कहती आयी हूँ कि काव्य रचना मेरे वश की बात नहीं है, पर २००९ में जब मेरा कविता-संग्रह "एहसास" एवं "द सेंसनल मिरर" प्रकाशित हुई तो मुझे विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई। कुछ पाठकों ने मेरे साहित्य सृजन की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए मेरा उत्साहवर्धन किया तो वहीं कुछ पाठकों ने अपनी नापसंदगी भी जाहिर की। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति माननीय प्रो. धीरेन्द्रपाल सिंह जी ने तो मुझे "संवेदनाओं की प्रांजल कवियत्री" तक कह डाला। उनके उक्त प्रेरणादायी उत्साहवर्धन हेतु मैं उनकी ऋणी हूँ और उनका आभार प्रकट करती हूँ कि उन्होंने मुझे इस योग्य समझा।
इसी बीच प्रकाशक डॉ० संतोष कुमार जी ने मुझसे सम्पर्क कर द्वितीय संस्करण प्रकाशित करने की अनुमति चाही। इन तमाम नाराज़गी, प्रसंशा, तनफ्फुर एवं प्यार के बीच मुझे एवं मेरी पुस्तकों की "एडल्ट ऑथर ऑफ इलिनॉय" २०११ तथा २०१२ में सम्मिलित किया गया। इससे प्रेरित हो मैंने निश्चय किया कि एक बार पुनः अपनी चिंतनधाराओं को उकेर कर एक पुस्तक के रूप में पाठकों के सम्मुख पेश करूँ... और "एक और आकाशगंगा" फिर उभरने लगी। इन उनसठ कविताओं को आकाश गंगा के सितारों के पुंज में पिरोकर पाठकों को देने में मुझे करीब छः वर्ष का समय लग गया।
श्री रमाकान्त मिश्र, सुनील मिश्र, ब्रह्मदेव शर्मा, शशिकान्त तथा वी.एस. राम जी ने मेरी काफी सहायता की। प्रसंगवश मैंने अपनी रचनाओं में उर्दू तथा फ़ारसी लब्जों का प्रयोग किया है। आशा है कि प्रिय पाठक अपना स्नेह बनाए रखेंगे। पर बनारस भूलता नहीं इसीलिए वहाँ के पाठकों हेतु मैंने "हम बनारस छोड़ आये हैं" तथा "मणिकर्णिका घाट" शीर्षक से भी कविता संलग्न किया है, जिसे भेजने के बाद मैं बहुत रोयी थी।
मैं करीब छः वर्ष से अपने भारत गयी नहीं बिगत् बारह साल से प्रवास मे हूँ, अतः भारतीय काव्य रचना पाठ करने का मौका नहीं मिला, परंतु फ़िर भी कहीं अगर कोई समानता मिलती है तो मेरे पाठक इसे महज़ इत्तिफ़ाक़ समझ कर मेरे रचनाओं का इब्तिसाम करेंः मुझे अत्यंत खुशी होगी।
अपने अमेरिकी जीवन की कई खुशियों को समेट कर भी मैंने कुछ रचनाएँ की हैं। आशा करती हूँ यह भी पाठकों को रुचिकर लगेगा एवं मार्मिक अनुभूति प्रदान करेगा। ईश्वर में मेरी अगाध श्रद्धा है, मैंने अपने तरीके से उनकी महिमा का भरपूर बखान किया है और आशा करती हूँ प्रभु मुझे अपनी शरण में रखेंगे।
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