हिन्दू फलित ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण अंग है निमित्त। निमित्त का अर्थ है किसी घटना के घटने से पहले घटी सांकेतिक घटनाएँ जो उस घटना के घटने की व उसके शुभ-अशुभ की सूचना देती है। इन घटनाओं के बारे में कई बार स्वयं प्रकृति विभिन्न आकाशीय या वातावरणीय चिन्हों द्वारा संकेत करती है या व्यक्ति विशेष के स्वप्न, अंग लक्षण इत्यादि।
निमित्त शास्त्र भारत जैसे कृषि प्रधान देश में सदियों से चला आ रहा है। यह विद्या अत्यन्त लोकप्रिय भी है क्योंकि अधिकांश ग्रामीण लोग वातावरण के प्रति संवेदनशील रहते हैं। आज भी बुर्जुग लोग ज्योतिष जाने बिना भी इस कला में निपुण हैं।
फलित ज्योतिष के इस भाग पर अभी तक कोई विश्वसनीय शोध नहीं हुआ है। परन्तु आज भी घटी अनेक सांकेतिक घटनाएँ हैरत में डाल देती हैं। 21 मई 1991 दिल्ली में अचानक अंधेरा छा गया, वातावरण अत्यन्त भयावह बन गया तेज वर्षा व ओले गिरे। ऐसा लग रहा था जैसे कुछ अप्रिय होने वाला है। अप्रिय घटना घटी देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी मारे गए। ठीक इसी तरह और घटना घटी जब प्रधानमंत्री नरसिंह राव चुनावी भाषण हेतु हवाई जहाज से गए। उतरने पर तेज तूफान वर्षा आरम्भ हो गई। नरसिंह राव को हवाई जहाज के पंख के नीचे छुपना पड़ा। वहां से आकर उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। 2005 के बिहार के चुनाव प्रचार के दौरान लालू प्रसाद यादव का भाषण देते हुए स्टेज धंस गया। क्या यह उनके हारने का संकेत मात्र था? इस प्रकार अनेक घटनाएँ भविष्य के शुभ अशुभ का संकेत देती है।
इस विद्या का पूर्ण विकास पौराणिक काल में हुआ। कोई धर्मग्रन्थ ऐसा नहीं जिसमें इसका उल्लेख नहीं किया गया हो। पुराण, रामायण, महाभारत, संस्कृत के ग्रंथों में निमित्त शास्त्र का उल्लेख विस्तारपूर्वक किया गया है। परन्तु इसका पूर्ण रूप से संकलन संहिता के रूप में हुआ है। संहिता शास्त्र का सर्वप्रमुख ग्रन्थ वराहमीहिर का बृहतसंहिता नामक ग्रन्थ था। नारद संहिता, रावण संहिता, वसिष्ठ संहिता, वसन्तराज शाकुन, अद्भुत सागर आदि अनेक ग्रंथों की रचना हुई। संहिता की अन्य एक महत्वपूर्ण पुस्तक भद्रबाहु संहिता है। इसे निमित्त शास्त्र के महान ज्ञाता भद्रबाहु ने लिखा। इस ग्रन्थ में उल्कापात, विद्युत, अभ्र, संध्या, मेघ, वायु प्रवाह, गर्भ लक्षण, उत्पात, यात्रा संबंधी शकुन, ग्रहाचार, ग्रहयुद्ध, स्वप्न, मुहूर्त, तिथि, करण शकुन आदि के आधार पर व्यक्ति, समाज या राष्ट्र की भावी घटनाओं व उनके शुभाशुभ होने के बारे में बताया गया है। इसमें निमित्त के मुख्यतः आठ भेद किए गए हैं व उन्हें अष्टांग निमित्त नाम दिया गया है।
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