प्रस्तावना
आयुर्वेदीय पदार्थ विज्ञान एवं आयुर्वेद इतिहास के लेखन का मूल उद्देश्य यही रहा है कि विद्यार्थियों को उनके पातून विषय पाठ्यक्रमानुसार एक जगह पढ़ने को मिल सके तथा आयुर्वेदों एवं आयुर्वेद प्रेमियों को इतिहास विषयक इन्धित जानकारी सुविधा से प्राप्त हो सके।
विद्यार्थियों की सुविधा के लिए जब-जब पाठ्यक्रम में परितर्वन एवं परिवर्धन की आवश्यकता होती हैं उसे प्रत्येक संस्करण में ध्यान रखा जाता है। प्रस्तुत संस्करण में भी नवीन पाठ्य विषयों को यथा स्थान सम्मिलित किया गया है। यद्यपि कुछ विषय इतिहास पाठ्यक्रम से हटा दिये गये है तथापि विद्यार्थियों के ज्ञानार्थ उन्हें रख दिया है।
इतिहास के विषयों को पाठ्यक्रम के साथ पृष्ठ संख्या देकर प्रस्तुत किया गया है।
पुस्तक के प्रस्तुत संस्करण का आमुख प्रो० वैद्य अभिमन्यु कुमार जी ने अपने अत्यन्त व्यस्त समय में से कुछ समय निकालकर लिखी है एतदर्थ उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
पुस्तक के विषय वयन एवं प्रूफ रीडिंग में डा० भारत वत्स, डा० अनूप जैन, वैद्य मनोज कुमार, डा० नन्दिनी ने विशेष सहयोग प्रदान किया एतदर्थ सभी धन्यवाद के पात्र है।
यद्यपि पुस्तक में पाठ्य विषयों के सभी बिन्दुओं पर प्रकाश डाला है तथापि यदि कोई विषय लेखन में रह गया है अथवा कोई त्रुटि हो तो पाठक अपने सुझाव अवश्य भेजें।
श्री जितेन्द्र पी. विज (ग्रुप चेयरमैन), श्री अंकित विज (ग्रुप प्रेसीडेंट), सुश्री रोतु शर्मा (डायरेक्टर कन्टेन्ट स्ट्रेटजी), श्रीमती सुनीता काटला (पी.ए. ग्रुप चेयरमैन एवं प्रकाशन प्रबंधक), डॉ. पिंकी चौहान (डिविलप्मन्ट एडीटर), श्रीमती सीमा डोगरा, श्री राजेश शर्मा, श्री सुमित कुमार, श्री दीप डोगरा और अन्य स्टाफ मैसर्स जे.पी. ब्रदर्स मेडिकल पब्लिसर्स, नई दिल्ली। इस पुस्तक को इनकी प्रेरणा, सहयोग, धैर्य एवं अथक परिश्रम के लिए मैं हृदय से धन्यवाद देता हूं।
लेखक परिचय
आधार्य वैध साराचन्द शर्मा एमडी स्व. पं. रामबत वी शर्मा के सुपुत्र एवं मूल निवासी बिसात बिता सुन्तु (राजस्थान) अपना प्रारम्भिक अध्धयन समापा कर १९६० में जयपुर आ गए। इन्होंने स्व. वैद्य मुरारि मित्र एवं वैद्य रामकृष्ण शर्मा दण्ड के सानिध्य में कर्माभ्यास के साथ आयुर्वेद अध्ययन करते हुए आयुर्वेदाचार्य उत्तीर्ण किया। १९६७ से श्री जगदम्या आयुर्वेद कालेज, जयपुर में अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया एवं १९७९ तक हरियाणा के विभिन्न महाविद्यालयों में आचार्य पद पर रहे। १९८० में पंचाची विश्वविद्यालय, पटियाला, में एम. ही उपाधि प्राप्त कर मूलचन्द हास्पिटल, नई दिल्ली, में वरिष्ठ अनुसंधन अधिकारी के पद पर नियुक्त हुए। पं. हरिदत्त शमी एवं वैद्य मुकुन्दी लाल द्विवेदी तथा वैद्य शिव कुमार मित्र जी के निर्देशन में आयुर्वेद के प्रत्येक विषय पर विश्वस्वैप स्तर का साहित्य संकलन किया। इसका एक भाग पंचकर्म चिकित्सा पौसम्भा से प्रकाशित हो चुका है। इन्होंने अपने अध्यापन काल में आयुर्वेद का इतिहास', 'पदार्थ विज्ञान', 'शरीर रचना', किया शरीर', 'इव्य गुण', रस शास्त्र, शल्य विज्ञान ओठशाङ्ग चिकित्सा विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर पाठ्यक्रमानुसार पुस्तकें लिखी है एवम् संस्कृत विषय पर संस्कृत ज्ञान मंजरी', जायुर्वेदीय सुभाषित एवं कुमारसम्भव का अनुवाद किया है। इन्होंने केन्द्रीय आयुर्वेद विज्ञान अनुसंधान परिषद् (CCRAS) के पाँच मूल ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया जिनमें अभिनय चिन्तामणि (चक्रपाणि दास कृत) का अनुवाद विशेष है। 'बृहद् योग तरविणी, भावप्रकता निघण्टु' एवं आंष्टाङ्ग हृदय की टीका की जा रही है
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