Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.

भारतीयता की ओर संस्कृति और अस्मिता की अधूरी क्रांति: Bharatiyata Ki aur Sanskriti aur Asmita ki Adhuri Kranti

$18.23
$27
10% + 25% off
Includes any tariffs and taxes
Express Shipping
Express Shipping
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Specifications
Publisher: Penguin Books India Pvt. Ltd.
Author Pavan K. Varma
Language: Hindi
Pages: 287
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 Inch
Weight 240 gm
Edition: 2010
ISBN: 9780143415039
HBR021
Delivery and Return Policies
Ships in 1-3 days
Returns and Exchanges accepted within 7 days
Free Delivery
Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.
Book Description

भूमिका

     

 

कुछ दशक पहले तक विश्व साम्राज्यों में बंटा हुआ था जिसमें सबसे बड़े साम्राज्य ब्रिटेन, फ्रांस, डच, पुर्तगाल स्पेन के थे। 20वीं शताब्दी के मध्य में इन साम्राज्यों से स्वाधीन देशों का जन्म हुआ। 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को भारत की स्वतंत्रता ने पूरे महाद्वीप में उपनिवेशवाद की समाप्ति की प्रक्रिया को तेज कर दिया। दुनिया ने उपनिवेशवाद को खत्म होते और समानता पर आधारित राष्ट्रों को जन्म लेते देखा। राजनीतिक रूप से उपनिवेशवाद के अंत से ही उसके सांस्कृतिक प्रभाव परिणामों के अंत के संकेत नहीं मिलते हैं। यह लगभग किसी उत्सवी मनोदशा के साथ माना जाता है कि यूनियन जैक के स्थान पर जब तिरंगा लहराने लगा तो पुरानी चीजों को विस्थापित कर इतिहास पूर्णतया निर्णायक रूप से नए दौर में प्रवेश कर गया। यह राजनीतिक धारणा थी, पर संस्कृति विचारों के क्षेत्र में इतिहास ऐसे अलग-अलग खानों में विभाजित नहीं होता है। पुरानी चीजें पीछा नहीं छोड़ती हैं और उनकी विरासत पर प्रश्न खड़े करना या उन्हें खत्म करने का काम बाकी रह जाता है। साम्राज्यों के बाद यह अधूरा काम बचा रहता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि अतीत के साम्राज्य लोगों पर सिर्फ शारीरिक नियंत्रण नहीं कायम करते। उनकी असली शक्ति लोगों के दिमाग के औपनिवेशीकरण में निहित होती है। इसलिए राजनीतिक स्वतंत्रता पर भले ही हम उत्सव मनाते रहें, पर अपेक्षाकृत हाल में स्वतंत्र हुए देशों की संस्कृति व रचनात्मकता पर साम्राज्यों के प्रभाव का विश्लेषण करना भी उतना ही आवश्यक होता है। अध्ययन के क्षेत्र में यह काफी उपेक्षित विषय है। उपनिवेशवाद का अध्ययन करने के लिए इसके राजनीतिक व आर्थिक प्रभाव को केंद्र में अधिक रखा जाता है, पर इसके सांस्कृतिक व विचारधारात्मक प्रभाव की पड़ताल कम ही की जाती है जो कि लोगों के दिमाग को नियंत्रित करते हैं। अतीत की विरासत का अविश्वसनीय रूप से गहन प्रभाव पड़ता है। वह विरासत मैकड़ों रूप से मीजद रहती है: हमारी भाषा, विचारों, व्यवहार, आत्मसम्मान, रचनात्मक अभिव्यक्तियों, राजनीति व रोजाना के संबंधों को प्रभावित करती है। लोग नहीं देख पाते हैं कि किस तरह से औपनिवेशिक अनुभव हमारी संस्कृति को तार-तार कर देते हैं। जो लोग इतिहास में कभी गुलाम नहीं बनाए गए, वे कभी नहीं जान सकते कि उपनिवेशवाद किस तरह से लोगों के दिलो-दिमाग पर असर डालता है। जो लोग इसे पहचानते हैं, वे भी इस बारे में सचेत नहीं रहते हैं या स्वीकार नहीं करना चाहते-कि किस सीमा तक उन्हें समझौता करने के लिए विवश कर दिया गया है। अपनी खोई हुए सांस्कृतिक जमीन को फिर से हासिल करना इसलिए हमारे दौर का सबसे जरूरी लक्ष्य बन चुका है। पर यह काम कठिन है क्योंकि हम एक ओर अतीत के औपनिवेशिक प्रभावों से लड़ना चाह रहे हैं तो दूसरी ओर भूमंडलीकरण के कारण फिर से नए तरह का उपनिवेशवाद पैदा हो रहा है। भूमंडलीकरण अपरिवर्तनीय प्रक्रिया है और कई मामलों में इसके लाभ भी हैं। पर कला, संस्कृति तथा पहचान के क्षेत्र में यह कोई तटस्थ प्रक्रिया नहीं है। अतीत के शासकों को फिर से एक नया अवसर मिला है अपनी वर्चस्वशाली संस्कृति हमारे ऊपर लादने के लिए और अपने संदेशों के प्रचार के लिए उनके पास धन-दौलत व तकनीक भी पहले की तरह प्रचुर मात्रा में है। कुछ मामलों में तो यह ज्यादा सशक्त साम्राज्य है क्योंकि प्रत्यक्ष राजनीतिक प्रभुत्व न होने के कारण अधिक व्यापक, हस्तक्षेपकारी तथा निर्वाध शक्तियों से लैस है। परिणामस्वरूप जो लोग अपने औपनिवेशिक अतीत के प्रभावों से खुद को मुक्त नहीं कर सके हैं वे वर्तमान की विषमताओं के शिकार बन सकते हैं।

 

पुस्तक परिचय

     

 

उभरती हुई विश्व-ताकत होने के दावों के बावजूद सचाई यही है कि हम एंग्लो-सैक्सन दुनिया की आलोचना और तारीफ दोनों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं और उसकी स्वीकृति पाने के लिए सालायित हैं। आजाद भारत के गृह मंत्रालय के नॉर्थ ब्लॉक स्थित मुख्यालय के बाहर औपनिवेशिक शासकों द्वारा अंग्रेजी में लिखी इन पंक्तियों को कोई भी पढ़ सकता है-

Liberty will not descend to a people. a people must raise themselves to liberty.

महज कुछ दशक पहले तक विश्व भिन्न-भिन्न साम्राज्यों में बंटा हुआ था। 20वीं सदी के मध्य में इन साम्राज्यों से स्वाधीन देशों का जन्म हुआ, पर उनकी राजनीतिक स्वतंत्रता के बावजूद भारत जैसे उपनिवेशवाद के शिकार रहे देशों के लिए सांस्कृतिक स्वतंत्रता एक स्वप्न जैसी रह गई है। द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास, बीइंग इंडियन जैसी बहुचर्चित पुस्तकों के लेखक पवन वर्मा ने इस महत्वपूर्ण पुस्तक में भारतीयों की मानसिक बनावट पर साम्राज्य के प्रभावों का विश्लेषण किया है। आधुनिक भारतीय इतिहास, समकालीन घटनाओं और निजी अनुभवों के आधार पर वे इस बात की पड़ताल करते हैं कि किस प्रकार उपनिवेशवाद से जुड़ी चीज़ों का असर आज भी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर छाया हुआ है। पूरे भावावेग, अंतर्दृष्टि और अकाट्य तर्कशक्ति के साथ पवन वर्मा दिखाते हैं कि क्यों भारत और अन्य गुलाम रह चुके देश सही मायनों में कभी स्वतंत्र नहीं हो सकते और न ही कभी विश्व का नेतृत्व करने की हालत में हो पाएंगे, जब तक कि वे अपनी सांस्कृतिक पहचान को फिर से हासिल नहीं कर लेते।

 

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories