बाबा फरीद (1173-1265) भारत में हुए सबसे महान सूफ़ी दरवेशों में से हैं। विद्वानों ने बाबा फरीद को पंजाबी भाषा में वाणी की रचना करनेवाले पहले सूफ़ी दरवेश कहा है। आपको दरवेशों के दरवेश, सूफियों के सूफ़ी और शायरों के शायर का दर्जा दिया जाता है क्योंकि आपके बाद हुए पंजाबी के हर सूफ़ी दरवेश और शायर पर आपकी शख़्सीयत और कलाम का गहरा असर दिखाई देता है। जब यह बात सामने रखते हैं कि बाबा फरीद ने अपनी वाणी संसार के महान सूफ़ी सन्त मौलाना रूम (1207-1273) से भी पहले कही थी और उस वाणी को गुरु नानक साहिब (1469-1539) ने बाबा फरीद की गद्दी के बारहवें उत्तराधिकारी शेख इब्राहिम से लेकर अपने उत्तराधिकारियों को सौंपा और गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु साहिबान, सन्त नामदेव, गुरु रविदास, सन्त कबीर आदि सन्तों की वाणी के साथ इसे 'आदि ग्रन्थ' में शामिल किया, तो इसकी बड़ाई खुद-ब-खुद प्रमाणित हो जाती है।
पंजाब में निर्गुणधारा के पूरी तरह स्थापित होने से पूर्व ही बाबा फ़रीद को एक महान सन्त के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। अपनी बेमिसाल शख़्सीयत, भक्ति, नम्रता, लोक सेवा और ईश्वरीय ज्ञान के अमृत से भरपूर शहद जैसी मीठी वाणी के कारण लोगों के हृदय में आपके लिये स्नेहपूर्ण आदर के भाव पैदा हो गये। समय के साथ-साथ लोकमानस से आप की निकटता बढ़ती चली गई। 'आदि ग्रन्थ' में दर्ज होने के कारण, पंजाब में आपकी वाणी का प्रचार और प्रसार हमेशा जारी रहा। वर्तमान युग में तो आपकी वाणी स्कूलों, कालेजों एवं विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बन कर हमारे जीवन और चिन्तन के और भी निकट आ गई है।
बाबा फरीद की वाणी सदियों से खोज और विचार का विषय बनी रही है। टीकाकारों ने इस वाणी पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। बाबा फरीद के जीवन और उपदेश के बारे में सैंकड़ों शोध-पत्र और पुस्तकें लिखी गई हैं। सन् 1973 में बाबा फरीद के आठसौवें प्रकाशोत्सव के अवसर पर आपके जीवन और उपदेश के सम्बन्ध में अनेक गोष्ठियाँ हुईं, अनेक नई पुस्तकें लिखी गई, अनगिनत नये लेख समाचार-पत्रों और पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए, मानो बाबा फरीद के सम्बन्ध में जानकारी की बाढ़ आ गई हो। वास्तव में बाबा फ़रीद के जीवन, उनकी रचना और उनकी विचारधारा के बारे में इतना कुछ लिखा और कहा जा चुका है कि कुछ और लिखने की जरूरत महसूस नहीं होती। लेकिन जब अब तक लिखी गई रचनाओं को सामने रखते हैं तो दो बातें सामने आती हैं- पहली यह कि बाबा फरीद से सम्बन्धित अधिकतर रचनाएँ एक ही पक्ष पर टिकी हैं। कुछ रचनाएँ केवल उनके जीवन-वृत्तान्त को मुख्य रख कर और कुछ उन्हें एक महान साहित्यकार के रूप में मुख्य रख कर लिखी गई हैं। दूसरी बात यह है कि अधिकतर रचनाएँ स्कूलों, कालेजों एवं विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों और अध्यापकों के लिये लिखी गई हैं। इनमें विचारों की प्रस्तुति का ढंग इतना विद्वत्तापूर्ण है कि साधारण पाठक इनसे पूरा लाभ नहीं उठा सकता।
इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य न तो नई ऐतिहासिक सामग्री की खोज करना है, न बाबा फरीद की लम्बी एवं पूर्ण जीवनी प्रस्तुत करना है और न ही उनके जीवन एवं उपदेश के साथ जुड़ी घटनाओं या मान्यताओं के सम्बन्ध में किसी प्रकार के विवाद में पड़ना है। लेखक का उद्देश्य उनके जीवन और उपदेश के सम्बन्ध में अब तक प्राप्त सामग्री का आलोचनात्मक विवेचन या उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं अथवा साखियों की ऐतिहासिक प्रामाणिकता के बारे में खोज करना भी नहीं है। असल उद्देश्य बाबा फरीद के जीवन का संक्षिप्त विवरण देते हुए आपकी वाणी में प्राप्त आध्यात्मिक तत्त्व को वर्तमान मुहावरे में सरल एवं क्रमबद्ध रूप में पेश करना है ताकि आज का साधारण से साधारण पाठक भी आपके उपदेश के रूहानी पहलू को आसानी से समझकर इससे पूरा लाभ उठा सके। जो भी सामग्री, घटना या साखी बाबा फ़रीद के जीवन या उपदेश के किसी पहलू को समझने में सहायता देती है, उसे पुस्तक में शामिल कर लिया गया है।
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