इस तथ्य से सभी सहमत हैं कि 'आल्हा लोकगाथा बुंदेली की रचना है और उसका जन्म बुंदेली भाषी भूमि में ही हुआ था। इस लोकगाथा की मुख्य घटना का केन्द्र महोत्सव नगर या महोबा था, जो चंदेलों की राजधानी थी और जहाँ 'आल्हा गाथा के नायक आल्हा ऊदल का निवास था। चंदेल नरेश परमर्दिदेव जो कि गाथा में 'परमाल' नाम से लोकप्रसिद्ध रहे हैं, महोबा में रहकर विशाल राज्य पर शासन करते थे। सभी इतिहासकारों ने चंदेल राज्य को उत्तर भारत का एक शक्तिशाली, समृद्ध और सुसंस्कृत राज्य कहा है। सिद्ध है कि इस गाथात्मक महाकाव्य की रचना का संबंध महोबा से रहा है। गाथा के प्रारंभिक रूप का रचनाकार महोबा में या महोबा के निकट रहता था और चंदेलों के सही इतिहास से परिचित था।
लोकपरम्परा का सत्य है कि 'आल्हा गाथा की रचना जगनिक भाट ने की थी। जगनिक का विशिष्ट परिचय आगे दिया जायेगा, लेकिन यहाँ स्पष्ट करना जरूरी है कि कवि जगनिक को विभिन्न विद्वानों द्वारा राजस्थान, चंदेरी, जगनेर (तहसील खैरागढ़, जिला-आगरा, उ. प्र.) आदि का निवासी बताया गया है, लेकिन 'आल्हा' गाथा की भाषा से वह 'बनाफरी उपबोली की सीमाओं के भीतरी स्थान का निवासी सिद्ध होता है। इतना निश्चित है कि जगनिक 12वीं शती के उत्तरार्द्ध में महोबा में निवास करता रहा।
आल्हा-गायिकी के विभिन्न रूप समूचे बुन्देलखण्ड में लोकप्रचलित रहे हैं। प्रमुखतः दतिया-गायिकी, पुछी-करगवां गायिकी, सागर-गायिकी और महोबा-गायिकी के इन चार प्रकारों को लोक ने महत्त्व देकर अपनाया है। इनमें सबसे प्राचीन महोबा-गायिकी है। महोबा गायिकी आल्हा गाथा के नायक आल्हा ऊदल की अदम्य वीरता की तरह ही ओजस्विनी है, जबकि अन्य उपक्षेत्रों की गायिकी में वह ओजस्विता नहीं है। महोबा-गायिकी का क्षेत्र महोबा को केन्द्र में रखकर चारों ओर प्रसारित है। उत्तर में पतारा, दक्षिण में घटहरी (जिला छतरपुर), पूर्व में बाँदा जिला और पश्चिम में जालौन जिला तक का क्षेत्र उसमें उसका प्रभाव विस्तार उत्तर में लगभग समस्त उत्तर भारत अर्थात् बंगाल से लेकर कश्मीर में सिंधु तक में फैला था। आल्हा गाथा में इन आक्रमणों का कोई संकेत नहीं है। प्रश्न उठता है कि 12 वीं शती में ऐसी कौन-सी राजनीतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक, साहित्यिक आदि परिस्थितियाँ थीं, जिन्होंने ऐसी गाथा रचे जाने की प्रेरणा दी। क्या इस सीमित क्षेत्र की कोई विशिष्ट स्थिति गाथा के जन्म के लिए जिम्मेदार है अथवा सम्पूर्ण देश की कोई संकटपूर्ण घटना ?
यह सही है कि रचनाकार विशिष्ट परिस्थिति में ही विशिष्ट रचना करता है। रचना का उद्देश्य भले ही व्यापक हो और उसकी संवेदना भी एक बड़े क्षेत्र को प्रभावित करती हो, लेकिन रचना के सृजन में जन्मभूमि की कोई विशिष्ट परिस्थिति ही प्रेरक बनकर आती है। आशय यह है कि रचना, रचनाकार और रचना की जन्मभूमि में एक अन्तर्क्रिया निरंतर चलती रहती है। जमीन से जुड़ने वाला रचनाकार तो जमीन से पूरा जुड़ाव रखता है। लोककाव्य की रचना तभी हो पाती है, जब रचनाकार उस जनपद के लोक से पूरी तरह परिचित ही नहीं हो, वरन् उससे संबद्ध हो। उस लोक के अनुभवों अर्थात् लोकानुभावों से रचनाकार की लोकानुभूति बनती है और लोक की सीधी-सादी और सहज अभिव्यक्ति से लोकाभिव्यक्ति। दोनों के सहज संयोग से ही लोकरचना उद्भूत होती है। आशय यह है कि लोककृति का संबंध उस देश के तत्कालीन लोक अर्थात् लोक की तत्कालीन विभिन्न परिस्थितियों से होता है और इसीलिए लोककृति की जन्मभूमि और जन्मतिथि की खोज जरूरी है।
चंदेल नरेशों की राजधानी 'महोत्सवनगर' (महोबा) का संबंध चंदेलों की धार्मिक राजधानी 'खजुराहो और सैनिक राजधानी 'कालिंजर से था। इतने विशाल राज्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ भी 'महोबा' का अंग थीं, यहाँ तक कि देश के प्रमुख राज्यों और राजवंशों की प्रमुख परिस्थितियों और घटनाओं की सूचनाएँ 'महोबा' की विदेश नीति का आधार बनती थीं। इन सबसे उस लोककवि का परिचय सहज स्वाभाविक था, जो राजधानी में आल्हा ऊदल के आश्रय अथवा चंदेलनरेश परमर्दिदेव के दरबार में अपना स्थान बनाये हुए था। यही कारण है कि इस लोकगाथा में हर युद्ध का विवरण मिलता है। दूसरे वह लोककवि लोक का अध्ययन भी रुचिपूर्वक करता था, तभी तो वह विवाह के लोकसंस्कार, लोकव्यवहार आदि से ही नहीं, लोकमूल्यों, लोकधर्म और लोकादर्शों से भी परिचित था। तात्पर्य यह है कि महोबा की तत्कालीन राजसी और लोक की परिस्थितियों की जानकारी अपेक्षित है, ताकि लोकगाथा की सही पृष्ठभूमि सामने आ सके।
प्रभावशील परिस्थितियाँ
बुन्देलखण्ड प्रदेश महाराज यशोवर्मन (लगभग 930 ई.) से वीरवर्मन (लगभग 1286 ई) तक स्वतंत्रता, शक्ति और संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। चंदेलराज उत्तर में यमुना नदी से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक और पूर्व में टोंस नदी से लेकर पश्चिम में चम्बल नदी तक फैला हुआ था, परंतु उसका प्रभाव-विस्तार उत्तर में लगभग समस्त उत्तर भारत अर्थात् बंगाल से लेकर कश्मीर में सिंधु के उद्गम तक तथा दक्षिण में चेदि से लेकर नर्मदा और चम्बल नदियों के तटीय क्षेत्र पर था। यशोवर्मन (930-950 ई) इतना शक्तिशाली था कि कौशल, क्रथ, सिंहल तथा कुंतल उसके निर्देश का पालन करते थे। गौड़, खस, कश्मीर, मिथिला, मालवा, चेदि, कुरू, गुर्जर आदि देशों पर उसका प्रभाव था। शक्ति में महाराज गंडदेव (950-1002 ई.) की तुलना शक्तिशाली हम्मीर से की गई है। गंडदेव (1003-1025 ई.) को तत्कालीन मुसलमान इतिहासकारों ने अपने समय का सर्वशक्तिशाली शासक माना है। विद्याधर ने मुसलमानों के विरुद्ध ऐसा शौर्य दिखलाया था कि दो शताब्दियों तक मुसलमानों ने आक्रमण करने का साहस नहीं किया। कीर्तिवर्मन (1060-1100 ई.) ने भारतीय नैपोलियन चेदिनरेश कर्णदेव को पराजित किया। मदनवर्मन (1128-1164 ई.) ने प्रसिद्ध वीर जयसिंह सिद्धराज (1093-1143 ई.) को भी संधि करने के लिये विवश कर दिया और परमर्दिदेव (1165-1203 ई.) ने भी धारा, गढ़ा, अन्तर्वेदि, मालवा तथा पंजाब का कुछ भाग जीत लिया था। इससे प्रकट है कि चंदेल राज्य राजनीतिक दृष्टि से शक्ति का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। मुसलमान आक्रमणकारियों से जहाँ भी उनका युद्ध हुआ, वहाँ मुसलमानों को चंदेलों का लोहा मानना पड़ा और वे उनकी गरिमा को डिगा नहीं सके।
राजनीतिक परिस्थिति
चंदेलों की शक्ति राजनीतिक दूरदृष्टि का प्रतिफल थी। उनकी राजनीति में गृहशासन-व्यवस्था की दृढ़ता और विदेशी नीति में राष्ट्रीय एकता का वैशिष्ट्य था। उस समय राजपूत राज्य की सत्ता राजतंत्र पर आधारित थी. लेकिन राज्य का गठन विश्रखलित था। राज्य की शक्ति मूलतया सामंतों और उनके द्वारा नियुक्त सेना पर निर्भर थी, जिससे सामंती अहम् के घायल होने अथवा महत्त्वाकांक्षा का मोती चमकने से राजभक्ति छू-मंतर हो जाती थी। लेकिन चंदेलों की शासन व्यवस्था में राज्य की सेना और सैन्य नीति पर अधिक ध्यान दिया जाता था। उसके लिये अलग से सैनिक व्यवस्था थी, जिसके अंतर्गत राज्य की स्थायी सेना और उसके पदाधिकारी तथा नगर की स्थायी सेना एवं अधिकारीगण आते थे। बड़े युद्धों में सामंतों को अपनी सेना के साथ आकर लड़ना पड़ता था। तात्पर्य यह है कि सामंत का विरोध राज्य के लिये कोई खतरा उत्पन्न नहीं कर पाता था। दूसरी प्रमुख बात यह थी कि चंदेल सेना में राजभक्ति के साथ राष्ट्रभक्ति की भावना प्रचुरता से भरी थी।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist