पिछले दस वर्षों में इस निर्देशिका को जितना स्नेह और सम्मान मिला है, वह बड़ी बड़ी किताबों के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकता है। अनेक संस्थाओं ने इसमें लिखी बातों को उत्साह के साथ अपनाया है, बहुतों ने आजमाकर देखा है, और कौतूहल दिखाने वालों की तो गिनती करना भी कठिन है। इधर के चार-पांच वर्षों में अनुपलब्ध रहने से इस किताब के प्रति लोगों का कौतूहल बढ़ा ही है, घटा नहीं है। संशोधित रूप में किताब के स्वतंत्र प्रकाशन की अनुमति देने के लिए मैं यूनिसेफ का आभारी हूं।
एक लेखक के रूप में इस छोटी-सी किताब की रचना की याद मेरे लिए वक्त बीतने के साथ साथ और मधुर होती गई है। टीकमगढ़ के बाल साहित्य केंद्र में आनेवाले वे बच्चे, जिनके बीच इस पुस्तक में दी गई गतिविधियां पहले-पहल कराई गई थीं, अब बड़े हो चुके हैं। इधर के वर्षों में बाल साहित्य केंद्र की एक नई परियोजना के अंतर्गत चन्द्र प्रकाश और उनके युवा साथियों ने इन गतिविधियों को एक समग्र पाठ्यक्रम की शक्ल देने का सुंदर प्रयास किया है। प्राथमिक शिक्षा की बृहत्तर दुनिया भी इस दिशा में आगे बढ़े और स्कूली बच्चों के दैनिक जीवन की जकड़न दूर करने का निश्चय करे, यही इस किताब की अंतिम सफलता होगी।
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