प्रस्तुत विषय जो आज तक प्रायः उपेक्षित रही है इस पर स्वतंत्र रूप से कोई कार्य नहीं किया। भारतीय हाथी दाँत पर कार्य करने वाले विद्वान ने इसका उल्लेख संक्षेप में किये हैं। अतः ऐसे विषय पर पुस्तक लिखने में मुझे बड़ा ही हर्ष का अनुभव हो रहा है।
मानव के अतीत की अज्ञातनामा संस्कृतियों का सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन अवशिष्ट पुरावशेषों एवं पुरानिधियों के आधार पर किया जाता है, जो विगत मानव समुदायों की रीति-प्रथाओं, परम्पराओं आदि को समझने के लिए एक नयी दृष्टि प्रदान करती है। अलंकरण, प्रसाधन, सौन्दर्य के प्रस्फुटीकरण और अभिर्वधन का एक मुख्य उपाय ही नहीं बल्कि यह कहें की सौन्दर्य की समग्रता अलंकरण से ही होता है। सौन्दर्य प्रसाधन में मस्तक के केशों को निखारने एवं सुरक्षित रखने में कंघी का बहुत बड़ा योगदान है।
सम्पूर्ण पुस्तक को मैंने बारह अध्यायों में विभाजित किया है। प्रथम अध्याय में कंघी की परिचय एवं महत्व। द्वितीय अध्याय में अध्ययन के स्रोत । तृतीय अध्याय में कंधी निर्माण की तकनीक। चतुर्थ अध्याय में नवपाषाण काल में कंधी। पंचम अध्याय में सिन्धु घाटी सभ्यता में कंघी। छठे अध्याय में ताम्रपाषाण काल में कंघी। सातवें अध्याय में महापाषाण काल में कंघी। आठवें अध्याय में चित्रित धुसर पात्र-परंपरा में कंधी। नवें अध्याय में उतरी काली चमकीली पात्र-परंपरा में कंघी। दसवें अध्याय में पूर्व ऐतिहासीक काल में कंधी। ग्यारहवें अध्याय में गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल में कंघी। बारहवें अध्याय में उपसंहार।
प्रस्तुत विषय पर पुस्तक लिखने के लिए मैं कुलपति डॉ० उपेन्द्र प्रसाद सिंह, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय पटना, पूर्व निदेशक डॉ० अमरेन्द्र नाथ, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली, पूर्व प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष डॉ० अरूण कुमार सिंह, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग, पटना, विश्वविद्यालय पटना एवं प्राचार्य डॉ० महेश प्रसाद सिंह, सरदार पटेल मेमोरियल कॉलेज, बिहार शरीफ का हृदय से आभारी हूँ। जिन्होंने ऐसे रूचिकर विषय पर कार्य करने का अवसर न केवल उपलब्ध करवाये बल्कि समय-समय पर दिशा निर्देश प्रदान कर इस कार्य को शीघ्र पूरा करने की प्रेरणा दिये।
गुरूजनों और अनेक पुरातत्वविदों से प्राप्त प्रेरणा एवं प्रोत्साहन के फलस्वरूप यह पुस्तक लिखना सम्भव हुआ। मैं उन विदानों का विशेष आभारी हूँ जिनके विचार एवं मार्गदर्शन प्रस्तुत कृति की रचना में उपयोगी सिद्ध हुए है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक स्वर्गीय जे० पी० जोशी जो हमारे प्रेरणा के स्रोत रहे उनके लिए मैं सादर नतमस्तक हूँ। वी० पी० द्विवेदी द्वारा रचित पुस्तक भारतीय हॉथी दाँत और स्वर्गीय अमलानन्द घोष द्वारा रचित पुस्तक एन सायक्लोपेडिया के लेखक का अत्यंत आभारी हूँ जिन्होने प्रस्तुत पुस्तक की रूपरेखा के परिस्कार के विषय में अत्यंत उपयोगी सुझाव दिये हैं। उन सुझावों का अनुपालन करते हुए प्रतिपाद्य विषय वस्तु को बोधगम्य बनाने के लिए इस पुस्तक में यथेष्ठ संख्या में रेखाचित्र तथा छायाचित्र दिये गए है वे ज्यादातर भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, 24 तिलक मार्ग, नई दिल्ली से प्राप्त हुए है। इस पुस्तक को लिखने एवं आगे बढ़ाने में मुझे मित्रों का भी सहयोग मिला, अतः उनका भी आभारी हूँ और मेरे यथेष्ठ प्रयास के बाद भी जो त्रुटियाँ रह गई हैं उनके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।
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