मनुष्य की उन उपलब्धियों का, जिनसे उसका आन्तरिक विकास तथा व्यावहारिक एवं नैतिक प्रगति होती है, नाम संस्कृति है। संस्कृति का स्वरूप एक-दो महीने अथवा वर्षों में नहीं बनता। उसके निर्माण के लिए एक लम्बी अवधि की आवश्यकता होती है। स्थान तथा परिवेश किसी संस्कृति की संरचना में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक जाति और दूसरी जाति तथा एक समाज एवं दूसरे समाज में जो अन्तर दिखाई पड़ता है, उसका कारण संस्कृति ही है। संस्कृति की व्यापकता में मानव की सभी सामाजिक विरासत तथा सम्पूर्ण उपलब्धियाँ समायी रहती हैं। संस्कृति की दृष्टि से भारत की महानता अकाट्य है। बहुत से विद्वान तो भारतीय संस्कृति को सर्वाधिक प्राचीन तथा सर्वोत्कृष्ट मानते हैं। प्राचीनता, संग्रहशीलता, निरन्तरता, सहिष्णुता और अनेकता में एकता आदि भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
उपुर्युक्त विशेषताओं के बावजूद आज अपनी संस्कृति के प्रति भारतीयों की रुझान कम होती जा रही है। इसका मुख्य कारण अपनी संस्कृति से सम्बन्धित जानकारी का अभाव है। ऐसी परिस्थिति में इस बात की आवश्यकता थी कि भारतीय संस्कृति के इतिहास और उसकी विशेषताओं को लोगों तक पहुँचाया जाय तथा उसके प्रति उनमें गहरी रुचि पैदा की जाय। पं. हीरालाल मिश्र 'मधुकर' ने इस पुस्तक के माध्यम से यही कार्य किया है।
'मधुकर' जी भारतीय इतिहास, काव्य, पुराण, अध्यात्म तथा ललित कलाओं के अच्छे ज्ञाता हैं। अपने ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने इस पुस्तक में प्रश्नोत्तर शैली का सहारा लिया है। प्रश्न बनाते समय उन्होंने न तो विषय के महत्व को विस्मृत किया है और न ही सटीकता तथा संक्षिप्तता की उपेक्षा की है। अतएव मुझे पूरा विश्वास है कि भारतीय संस्कृति से रू-ब-रू होने की कामना रखने वालों तथा विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के अभिलाषी प्रतियोगिओं के लिए यह पुस्तक बेहद उपयोगी तथा ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी।
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