सूरज, चाँद, तारे, आकाश के प्रति बच्चों के मन में विशेष आकर्षण होता है। चाँद को तो वे निहारते रहते हैं। चाँद तारों की कहानियों-कविताओं में उनकी दिलचस्पी होती है। श्रीकृष्ण ने भी बचपन में अपनी माँ यशोदा से 'चंद-खिलौना' माँगा था।
सदियों से हमारे यहाँ और दुनिया भर में चाँद तारों के बारे में अनेक धार्मिक कथाएँ और लोककथाएँ प्रचलित हैं। सूर्य, चन्द्रमा और तारों की पूजा भी की जाती है।
अधिकांशतः कहानियाँ कल्पना की उपज होती है। मनोरंजन के लिये होती है। चन्द्रमा और तारों के सम्बन्ध में अनेक रोचक कहानियाँ, कविताएँ प्रचलित हैं। वे छोटे बच्चों को तो अच्छी लगती हैं, पर जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, वह सूर्य, चन्द्रमा, तारे, आकाश, दिन-रात, ग्रहण आदि के बारे में अधिक-से-अधिक जानने को उत्सुक रहता है। उसकी उत्सुकता, उसकी जिज्ञासा को सम्मान देना, समाधान करना हर शिक्षक, माता-पिता, बुजुर्ग का प्रथम कर्त्तव्य होता है। बाल साहित्य को भी शिक्षक, माता-पिता, पथ प्रदर्शक की भूमिका निभानी होती है। बच्चे को स्वस्थ मनोरंजन देना भी उसका उद्देश्य होता है।
मनोरंजन और सीख देना ही बाल साहित्य की रचना में मेरा उद्देश्य रहा है। बाल साहित्य या कहिये बालकथा साहित्य की अब तक मेरी चालीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मेरी रचनाओं को जहाँ बालपाठकों ने पसंद किया है, बड़ों ने भी मुझे इसके लिए सम्मान दिया है। बाल पाठकों और बड़ों का यह स्नेह ही मेरी पूँजी है। अब तक मैंने बाल कहानियों की रचना की है। इनमें से कुछेक को छोड़कर शेष कल्पना की उपज है, जो वास्तविकता के काफी निकट है। पहली बार इस पुस्तक के माध्यम से 'अंतरिक्ष' पर कलम चलाई है।
प्रकाशन संस्था साहित्यागार के संस्थापक स्वर्गीय श्री रमेश चन्द वर्मा का दशकों तक मुझ पर स्नेह रहा है. उन्होंने मुझे यथेष्ट सम्मान दिया। उनके सुझाव पर मैंने कई पुस्तकों का सृजन किया। उन्होंने उन्हें प्रकाशित कर मुझे ख्याति दिलवाई।
उन्हीं के द्वारा स्थापित परंपराओं का अनुसरण कर रहे हैं उनके सुपुत्र श्री हिमांशु वर्मा। श्री हिमांश वर्मा के सुझाव पर ही मैंने 'दादाजी की अंतरिक्ष यात्रा' की रचना की है। इसमें अंतरिक्ष में स्थित अनेक ग्रह-उपग्रहों के बारे में परिचय कथात्मक शैली में देने का प्रयास किया गया है। निःसंदेह मेरे लिये यह नया विषय है। लेकिन विभिन्न रचनाकारों द्वारा सृजित अनेकानेक पुस्तकों में, पत्रिकाओं में मनचाहा 'ज्ञान' भरा पड़ा है। मैं कभी नासा, इसरो या अंतरिक्ष में नहीं गया, जो भी सीखा पुस्तकों को पढ़ने से ही सीखा। तथापि यह रचना अंतरिक्ष यान के द्वार पर दस्तक मात्र है। क्योंकि अंतरिक्ष ज्ञान अंतरिक्ष की तरह ही अनन्त है, असीम है।
कहाँ तक सीख पाया हूँ, कितना सीखा हूँ इसका निर्णय तो बालपाठक, पाठक और विषय-विशेषज्ञ ही करेंगे। मैंने अपनी ओर से कोई कसर न रहने देने का प्रयास किया है। तथापि कहीं कोई भूल-चूक हो सकती है। उसको सुधारने का दायित्व आप सब निभाएँगे, ऐसा मेरा विश्वास है। कोई कमी है तो आप निःसंकोच बताएँ, मैं खुले दिल से स्वीकार करूँगा। आपका यह स्नेह मुझे इस तरह की जानकारी की रचनाएँ करने के लिये प्रेरणा देगा। मैं अब भी अपने आपको एक विद्यार्थी ही समझता हूँ। 'मुझे संपूर्ण ज्ञान है' यह वहम मुझे कभी नहीं था
और होगा भी नहीं। इसलिए मैं एक बार फिर निवेदन करता हूँ इस पुस्तक में दिये गये विवरण, आँकड़ों, तथ्यों की आप अपने स्रोतों से पुष्टि भी करें।
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