| Specifications |
| Publisher: Vani Prakashan | |
| Author Ashapurna Devi | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 272 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9.0x5.5 Inch | |
| Weight 460 gm | |
| Edition: 2025 | |
| ISBN: 9789355189462 | |
| HBR026 |
| Delivery and Return Policies |
| Usually ships in 3 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
आशापूर्णा देवी
(1909-1995) बंकिमचन्द्र, रवीन्द्रनाथ और शरत्चन्द्र के बाद बांग्ला साहित्य-लोक में
आशापूर्णा देवी का ही एक ऐसा सुपरिचित नाम है, जिनकी हर कृति पिछले पचास सालों से बंगाल
और उसके बाहर भी एक नयी अपेक्षा के साथ पढ़ी जाती रही है और जो पाठक को एक नये अनुभव
के आलोक-वृत्त में ले जाती है। आशापूर्णा देवी का लेखन-संसार उनका अपना या निजी संसार
नहीं, वह हम सबके घर-संसार का विस्तार है। हम सबकी मानसिकता को शायद ही इतने सुन्दर,
सजीव ढंग से कोई चित्रित कर सका हो। उनकी लेखनी का स्पर्श पाते ही कैसा भी पात्र हो,
कोई चरित्र हो, जीवन्त होकर सम्मुख खड़ा हो जाता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार, कलकत्ता विश्वविद्यालय
के 'भुवन मोहिनी स्मृति पदक' और 'रवीन्द्र पुरस्कार' से सम्मानित आशापूर्णा जी अपनी
एक सौ सत्तर से भी अधिक औपन्यासिक एवं कथापरक कृतियों द्वारा सर्वभारतीय स्वरूप को
निरन्तर परिष्कृत एवं गौरवान्वित करती हुई आजीवन संलग्न रहीं।
दृश्य से दृश्यान्तर
'ज्ञानपीठ पुरस्कार
से सम्मानित तया बांग्ला की सर्वाधिक लोकप्रिय लेखिका आशापूर्णा देवी ने अपने उपन्यासों
में समय के साथ बदलते हुए मूल्यों के फलस्वरूप समाज और परिवार के व्यक्ति और व्यक्ति
के, पुरुष और नारी के सम्बन्धों का जितना सहज और सूक्ष्म मनोविश्लेषण किया है वह सचमुच
ही अद्भुत है। दृश्य से दृश्यान्तर भी इसी तरह का एक रोचक उपन्यास है।
इस उपन्यास
के कथानक का परिवेश उस काल का है जब बड़े-बड़े नगरों के आसपास के इलाकों में भी विद्युत्
नहीं पहुंची थी। तब की एक नन्ही-सी बालिका के बचपन का-उसके जाने कितने कितने नातेदार
और पड़ोसी, सभी के रहन-सहन और आपसी व्यवहार का चित्रण (अधिकतर बालिका के मुख से ही)
इसमें किया गया है। बाल्यावस्था पार कर धीरे-धीरे कैशोर्य का स्पर्श, माता-पिता के
आपसी तनाव, उल्लास और उदासी और कुछेक मार्मिक घटनाओं का अकस्मात् घटित हो जाना, उस
बालिका के जीवन को एक ऐसे मोड़ पर पहुँचा देते हैं जहाँ से उसकी आँख इस छद्मवेशी दुनिया
को भलीभाँति देख-परख सकती है। बहुत सम्भव है, यह अनोखी कथा आपकी अपनी कथा हो, आपकी
अपनी ही समस्या हो, उसके पात्र आपके अपने ही सगे सम्बन्धी जान पड़ें।... प्रस्तुत है
आशापूर्णा जी के पाठकों के लिए उनका यह एक और अत्यन्त रोचक महत्त्वपूर्ण उपन्यास दृश्य
से दृश्यान्तर।
Send as free online greeting card
Visual Search