संत परम्परा के अनुसार गुरू का ज्ञान उसके शिष्यों के द्वारा निरंतर प्रवाहित होता रहता है। यह ज्ञान सत्संगों में प्रवाहित होता है और उसके बाद उस ज्ञान को किताबों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। किसी भी पुस्तक में दो भाग, तीन भाग या इससे अधिक भाग होना साधारण सी बात है, लेकिन इस पुस्तक में तीन भाग रखने का कारण मालिक की विशेष मौज है। वास्तव में हमें तीन-तीन संत-सद्गुरूओं के चरणों में बैठने का अवसर मिला है, अतः हमने उनके अनुभवों को अलग-अलग भाग में लिखा है। हमारे अनुभवों को प्रस्तुत करने में हमें भी तीन आचार्यों ने जो स्वयं हमारे उन तीन गुरूओं की शिक्षा से अपने समय पर लाभान्वित हुये हैं, अपने-अपने विचारों से प्रेरित किया है। अतः उनके विचार भी हम ने उन विभागों के प्रारम्भमें प्रस्तावना के रूप में दे दिये हैं।
यह भी अनोखा संयोग है कि इस प्रस्तुतिकरण में हमें लीक से हटकर तीनों भागों की भूमिका अलग-अलग करके देनी पड़ रही है, ताकी उसकी प्रासंगिकता बनी रहे। यह सब करने कराने वाला तो सद्गुरू-मालिक ही है, जो भले ही अलग-अलग रूपों में कार्य कर रहा है लेकिन मूल रूप में तो वह एक ही है। जिन तीन गुरूओं का अवलम्बन हम ने किया है, वे भी वास्तव में एक ही हैं। कहने-सुनने के लिये भले ही अलग-अलग हैं, लेकिन मूल में सब एक ही हैं।
हुजूर मानव दयाल जी महाराज का नाम ईश्वर चन्द्र शर्मा था। एक दिन हमारे एक पत्र के उत्तर में उन्होंने हमें लिखा कि राजेश का 'राज' खत्म हो गया और 'ईश' ईश में समा गया। उसके लगभग एक दशक बाद हुजूर शब्दानन्द जी महाराज ने हमारे एक पत्र के उत्तर में लिखा कि आज से हम राजेश को 'मानवेश' कहेंगे। उसके लगभग एक दशक बाद हुजूर पुष्कर नाथ जी ने हमें कहा कि अब राजेश और पुष्कर नाथ एक हो गये हैं, अब राजेश पुष्करमय है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist