'मंजर' 'अहसास' 'ये खुशबू का सफर' 'ये लम्हों का सफर' 'ये जिंदगी का सफर' के बाद ग़ज़ल लेखन का सफ़र अब 'एक जमाना कागज़ पर' तक आ पहुंचा है। इस दौरान दोस्तों, पाठकों का भरपूर प्यार मिला हैउसी का नतीजा है कि ये सिलसिला निरन्तर जारी है।
वक़्त की फ़ितरत है कि ये निरन्तर बदलता रहता है विचारधाराएं, मान्यताएं, परम्पराएं भी इससे अछूती नहीं रही हैं।
बदलते वक़्त के मंज़र को पाठकों तक पहुंचाने की हसरत हमेशा से रही है उसी का परिणाम है ये एक जमाना कागज़ पर।
सियासत प्रिय विषय रहा है जिंदगी के विविध रंग सदैव अपनी ओर खींचते रहते हैं इन सबको आधार बनाकर जो ग़ज़लें रची गई हैं वो निश्चय ही वक़्त की दहलीज पर पुख्ता निशान हैं। बरसों बाद भी जब इन्हें पढा जाएगा तो लगेगा जैसे समकालीन परिवेश का चित्र सामने आ गया हो। ग़ज़लें कितनी अच्छी हैं कितनी कामयाब हैं इसका फैसला तो वक़्त अपने आप वक़्त पे कर देगा बस पाठकों का दोस्तों का भरपूर प्यार बना रहे।
इसी संदर्भ में आदरणीय श्री देवेंद्र मांझी सर को याद न किया जाए तो नाइंसाफी होगी। आपका आशीर्वाद, मार्गदर्शन वरदहस्त सदैव रहा है। आपने इन ग़ज़लों पर अपनी अमूल्य सम्मति देकर कृतार्थ किया है।
श्री सी.ए. सुमेर सिंह शेखावत जी ने भी अपने विचार प्रकट किए हैं आभारी हूँ।
ज्यादा कुछ न कहते हुए अपना ग़ज़लों का ये खजाना दोस्तों पाठकों को समर्पित करता हूँ।
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