आज पर्यावरणीय संकट के कारण विश्व अनिश्चित भविष्य से जूझ रहा है। यह कोई आम संकट नहीं है। इस समय हम आपदाओं और त्रासदियों की चपेट में आ रहे हैं तथा आने वाले समय में भी आते रहेंगे। आज विश्व भर में हमारे चारों ओर पर्यावरणीय समस्याओं का अंबार लगता जा रहा है तथा इसके कारण भयंकर आपात स्थिति उत्पन्न हो गई है। वर्तमान समय में पर्यावरणीय समस्याओं पर तत्काल ध्यान देना नितांत आवश्यक है तथा इस प्रयोजनार्थ अनिवार्य है कि प्रत्येक व्यक्ति इस पर विचार करे तथा इनके समाधान में भरसक योगदान दे। इस पुस्तक में पाठकों को यह जानकारी देने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार से पर्यावरणीय नैतिकता और भारतीय दृष्टिकोण से पर्यावरण के प्रति जनसाधारण का रवैया बदलने में मदद मिल सकती है।
मेरा विश्वास है कि हम जिसे मूल्यवान, महत्वपूर्ण समझते हैं, उसे संजोकर रखते हैं, उसे बचाकर रखते हैं। जिसकी हमारी नज़रों में कद्र नहीं होती, उसकी उपेक्षा कर देते हैं। दुर्भाग्यवश, हम कभी-कभी समझौता कर लेते हैं तथा अमूल्य प्रकृति की भी कद्र नहीं करते क्योंकि हम अपने स्वार्थवश कुछ भी नहीं देख पाते। इस पुस्तक में दिन प्रति दिन के जीवन में पर्यावरणीय नैतिक मूल्यों के समावेशन को महत्व दिया गया है ताकि हम कर्म करके इस पृथ्वी और पर्यावरण का मान सम्मान करना शुरू कर दें। इस पुस्तक में यह चित्रित करने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार से पर्यावरणीय नैतिक मूल्य स्थायी आधार पर पर्यावरण के संरक्षण एवं परिरक्षण की रणनीति के भाग रूप में प्राचीन भारतीय विचारधारा एवं दृष्टिकोण में समाहित हैं।
यह पुस्तक 13 अध्यायों में विभाजित है। इसमें आज के विश्व में पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में भारतीय दृष्टिकोण के महत्व के साथ पर्यावरणीय नैतिक मूल्यों की प्रासंगिकता का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस पुस्तक का केंद्रबिंदु प्रकृक्ति के महत्व को उजागर करना तथा यह दर्शाना है कि किस प्रकार से भारत में आज भी निरंतर इसे महत्व दिया जा रहा है तथा कैसे वेदों, भगवद् गीता, मनुस्मृति, उपनिषद आदि में भारतीय बौद्धिक संपदा को व्यावहारिक जीवन में उतारा गया है तथा साथ ही कुछ प्रमुख भारतीयों के विचार पर्यावरणीय संकट के लिए दवा के रूप में क्रियाशील हो सकते हैं।
मानव जाति का मन-मस्तिष्क पर्यावरणीय ह्रास, पृथ्वी के संसाधनों के संरक्षण एवं वास्तव में पर्यावरणीय समस्याओं को सुलझाने जैसे वैश्विक मुद्दों में निर्णायक तत्व हैं। लोग यह तर्क दे सकते हैं कि ये मुद्दे व्यक्ति की क्षमता, सामर्थ्य शक्ति से परे हैं। लेकिन, मैं इस समस्या के कारण पर विचार करता हूं तथा हमें सबसे पहले इसका हल अपने भीतर ढूंढना होगा। हमें आत्मविश्लेषण (introspect) करना होगा। हमें पर्यावरण के प्रति नैतिक दृष्टि से सक्रिय होना पड़ेगा। अतएव, बाहरी हालात को बदलने के लिए हमें सबसे पहले प्रकृति के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। पर्यावरण के प्रति पारंपरिक भारतीय दृष्टिकोण अपनाकर यह कार्य आसानी से किया जा सकता है।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि समसामयिक पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान इसमें निहित है कि पर्यावरण को जीविका के अविभाज्य भाग रूप में माना जाए। विश्व को भारतीय प्राचीन ज्ञान के भंडार से पर्यावरणीय समस्याओं के निवारण में मदद मिल सकती है। प्राचीन भारतीय मनीषियों के संदेश की सही अर्थों में व्याख्या करके तथा व्यवहार में उतारकर पर्यावरण संबंधी समस्याएं हल की जा सकती हैं।
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