| Specifications |
| Publisher: Ananda Sangha Publications, Gurgaon | |
| Author Swami Kriyananda | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 275 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 310 gm | |
| Edition: 2021 | |
| ISBN: 9788189430825 | |
| HBH439 |
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मैं परमहंस योगानंद के साथ उनके जीवन के अंतिम साढे तीन वर्ष में शिष्य के रूप में रहा। उनके साथ रहते हुए डेढ़ वर्ष बीतने के बाद, उन्होंने मुझे अनौपचारिक बातचीत के दौरान उन बातों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जो वे कह रहे थे। हम उनके रेगिस्तानी आश्रम में थे, जहाँ वे भगवद्गीता पर अपनी टिप्पणियाँ पूरी कर रहे थे।
शुरू में, मैंने स्वयं को कुछ मुश्किल में पाया। मैं शार्ट-हैंड नहीं जानता था, और मेरी लिखाई, मेरे लिए भी, पढ़ने में कठिन थी।
हालांकि, अपने स्वयं के शिक्षण के प्रति सच्चे कि व्यक्ति को अंधकार की अपेक्षा प्रकाश पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, गुरुजी ऐसी तुच्छ बाधाओं पर ध्यान नहीं देते थे। वे मुझे प्रोत्साहित करते रहे। "मैं अक्सर ज्ञान (अवैयक्तिक ज्ञान) के स्तर से नहीं बोलता,"
उन्होंने कहा। उनका स्वभाव प्रायः दिव्य प्रेम के रूप में अभिव्यक्त होता था। मेरा उत्साह बढ़ने लगा जब मुझे अहसास हुआ कि मैंने कहीं भी ऐसी शिक्षाएँ न तो पढ़ी और न ही सुनी थीं जो इतनी गहरी, इतनी स्पष्ट और इतनी विश्वास करने योग्य थीं।
"वह लिख लो !" बाद के वर्षों में, संन्यासियों के साथ या आगंतुकों के साथ वार्तालापों के दौरान, वे अक्सर मुझे याद कराते थे। कभी कभी, स्पष्टीकरण में, वे साथ ही यह कहते, "मैंने वह पहले कभी नहीं कहा था।"
हंस शुष्क भूमि और जल दोनों में समान रूप से सहजता से रहता है। सच्चा संत या परमहंस भी, इसी प्रकार, पदार्थ के और आत्मा के दोनों क्षेत्रों में आराम से रहता है।
भारतीय परम्परा के अनुसार, हंस भी, जल से दूध को अलग करने में समर्थ होता है। शब्दशः, शायद इसका अर्थ यह है कि हंस की चोंच से ऐसा पदार्थ निकलता है जिससे दूध फट जाता है, अतः वह छाछ में से दही को अलग कर लेता है। जैव-वैज्ञानिक तथ्य जो भी हों, भारत में हंस आत्म-बोध प्राप्त गुरु की भ्रम की अवास्तविकता से सत्य के ठोस सार को अलग करने की क्षमता का प्रतीक है।
अन्ततः और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, हंस दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ है "मैं वह हूँ" या "मैं आत्मा हूँ।" अतः परमहंस वह है जो परमात्मा के साथ अपने एकत्व की घोषणा करने की अवस्था में है-सर्वोच्च रूप से, क्योंकि वह इसकी केवल मान. सिक रूप से पुष्टि नहीं करता, बल्कि उसने इस सत्य का अपने आन्तरिक स्व में बोध कर लिया है।
संस्कृत विद्वानों के अनुसार परमहंस (paramhansa') अधिक शुद्ध रूप में परमाहंस (paramahansa') के बीच के अतिरिक्त 'a' के साथ लिखा जाता है। यद्यपि, विद्वानों का यथार्थ सामान्य लोगों की समझ के साथ सदा मेल नहीं खाता।
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