| Specifications |
| Publisher: KANISHKA PUBLISHERS | |
| Author Edited By Madhu Rani Shukla | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 658 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9.00x6.00 inch | |
| Weight 1.03 kg | |
| Edition: 2025 | |
| ISBN: 9789386556066 | |
| HAH172 |
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भारतीय सिनेमा अपनी समृद्ध परम्परा के कारण समस्त विश्व में सम्मानित स्थान रखता है कथा वस्तु, तकनीकी, अभिनय, गीत संगीत के कारण विश्व के अनेक देशों में लोकप्रिय है। यहाँ के अभिनेता, अभिनेत्री, गीत, संगीत तो लोगों के जुबान पर है। अनेक देशों के लोग जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति, भाषा व गीत संगीत से परिचित नहीं भी हैं तथापि फिल्मों और फिल्म संगीत से परिचित है। प्रस्तुत पुस्तक 'भारतीय सिनेमा की विकास यात्रा' संकलन है ऐसे लेखों का जिनमें भारतीय सिनेमा से जुड़े विभिन्न पक्षों पर स्वतंत्र दृष्टियों से विचार किया गया है। यद्यपि भारतीय सिनेमा अत्यंत व्यापक है अतः इसके समस्त तथ्यों को कुछ पन्नों में उजागर करना कठिन कार्य है किन्तु यथासम्भव समस्त तथ्यों को समेटने की कोशिश की गई है। मैं इस पुस्तक के समस्त विद्वान लेखकों के प्रति आभार व्यक्त करतीं हूँ। पुस्तक की भूमिका लिखने के लिए पं० विजय शंकर मिश्र जी का हृदय से आभार व्यक्त करतीं हूँ। इस पुस्तकं के सुन्दर मुद्रण हेतु कनिष्क पब्लिशिंग हाऊस तथा सहजता के साथ पुस्तक प्रकाशित करने में सहयोग प्रदान करने हेतु श्री चैतन्य सचेदवा जी का धन्यवाद ज्ञापित करतीं हूँ। इस पुस्तक को पूर्ण करने में सुश्री शाम्भवी शुक्ला तथा सुश्री तोमोका मुशीगा ने जो सहयोग किया उसके लिए में उन्हें आर्शीवाद देती हूँ व उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ। पुस्तक में कुछ त्रुटियाँ जरूर होंगी उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
हमारे जीवन में जितने रंग हैं, फिल्मों में उससे कहीं ज्यादा रंग हैं। कारण यह है कि फिल्में सिर्फ हमारी कहानी नहीं कहती है बल्कि हम सबकी कहानियाँ कहती हैं।
फिल्मों को आमतौर पर व्यवसाय और उद्योग के रूप में देखा जाता है. जबकि मैं इसे एक कला मानता हूँ-ऐसी कला जिसमें कई तरह की कलाएं एक साथ देखी जा सकती हैं। इसमें अभिनय भी है, छायांकन भी है, दृश्यांकन भी है, कहानी है, कविता और गीत हैं, संगीत और नृत्य है, सम्पादन है और न जाने क्या क्या है। शायद इतनी ढेर सारी कलाओं से जुड़ जाने के कारण ही फिल्म जगत को व्यवसाय और उद्योग माना जाने लगा, क्योंकि इस घोर भौतिकतावादी युग में-'एक सच यह भी है कि जो कला अपने कलाकार को दो वक्त की रोटी न दे सके एक सुविधा संपन्न जीवन न दे सके उसे कोई क्यों अपनाए?"
मैं एक अति साधारण, आम फिल्मी दर्शक हूँ। फिल्मों के विषय में मुझे कोई भी जानकारी नहीं है मेरा ज्ञान शून्य है। लेकिन, किसी डायलॉग को बोलते समय अभिनेता के आवाज की उतार चढ़ाव और चेहरे की भाव भंगिमा को देखकर यह अक्सर कह देता हूं कि वाह! क्या गजब का अभिनय है। यह अलग बात है कि हिंदी फिल्मों के भीष्म पितामह दादा साहेब फाल्के से लेकर दिलीप कुमार, राजकपूर, गुरुदत्त, प्राण, बलराज साहनी, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, परेश रावल, अनिल कपूर, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, अमरीश पुरी, शाहरुख खान, आमिर खान सलमान खान, अनुपम खेर और इन जैसे अनेक अभिनेताओं ने- मुझे मालूम है कि इनमें कई महत्वपूर्ण नाम छूट गए है-ने अभिनय को अलग-अलग आयाम दिया है।
इसी तरह सुरैया, नरगिस, वैजयंती माला, मीना कुमारी, नूतन, वहीदा रहमान, पद्मिनी, हेमा मालिनी, रेखा, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, मीनाक्षी शेषाद्रि, माधुरी दीक्षित, और काजोल आदि अभिनेत्रियों में भी अभिनय की विविधता देखी जा रही है।
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