अपने पर हँसना कोई सहज कार्य नहीं है। गोपाल चतुर्वेदी सरकारी तन्त्र के अंग रहे हैं और अपने और अपने तन्त्र पर हँसने का कठिन कार्य उन्होंने फ़ाइल पढ़ि-पढ़ि में बखूबी किया है।
जनतन्त्र में सरकारी तन्त्र के तिलिस्म को तोड़ना जायज ही नहीं जरूरी भी है। बिना किसी कटुता और लाग-लपेट के स्थितियों और पात्रों के चित्रण द्वारा गोपाल चतुर्वेदी ने इस काम को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। इसीलिए फ़ाइल पढ़ि-पढ़ि सरकारी अजायबघरों-जैसे दफ़्तर का एक रोचक व प्रामाणिक दस्तावेज़ बन गया है। इसके पन्नों में चपरासी, दफ़्तरी, बाबू, अफ़सर सब जी उठे हैं। वे निकम्मे हैं, नियम की वजह से या सहज काहिली से, पर सब इसी देश, काल और समाज के पात्र हैं। गोपाल चतुर्वेदी के व्यंग्य की यही विशिष्ट कुशलता है कि उन्होंने आम आदमी के साथ व्यवस्था की जड़ता और संवेदनहीनता से सामान्य कर्मचारी की त्रासदी को भी जोड़ा है। दफ़्तर में इन्सान ही नहीं, चूहों, कबूतरों और मक्खियों-जैसों का भी वास है। फ़ाइल पढ़ि-पढ़ि में इनका इस्तेमाल सशक्त प्रतीकों के रूप में हुआ है, जो इस व्यंग्य की एक और विशिष्टता उजागर करता है। वास्तव में स्थितियों का रोचक और वस्तुनिष्ठ चित्रण, 'विट' का सहज प्रयोग, विरोधाभासों की स्वाभाविक अभिव्यक्ति जहाँ गोपाल चतुर्वेदी के व्यंग्य के प्रहार को तेज़ धार देती है, वहीं करुणा का समावेश उसे सशक्त बनाता है। और शायद अपने समकालीनों से अलग यही उनकी पहचान भी है।
- तो आप भी खोलिए 'फ़ाइल' को और कोशिश कीजिए कि बिना पूरी 'पदि' बन्द कर दें। लगता नहीं कि कर पाएँगे !
15 अगस्त, 1942 को लखनऊ में जनमे गोपाल चतुर्वेदी की शिक्षा ग्वालियर, भोपाल तथा इलाहाबाद में हुई जहाँ से उन्होंने अँग्रेजी में एम.ए. किया। भारतीय प्रशासनिक तथा अन्य केन्द्रीय सेवाओं की परीक्षा के माध्यम से 1966 में उन्होंने भारतीय रेल की लेखा-सेवा में प्रवेश किया। रेल, गृह, नागर विमानन और पर्यटन मन्त्रालयों में उच्च पदों पर सेवा के उपरान्त 1993 से 1998 तक राज्य व्यापार निगम में निदेशक (वित्त) के पद पर काम किया।
पढ़ाई के दिनों से पठन-पाठन और लेखन में रुचि रही है। छात्र-जीवन से ही कविता और लेख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। पिछले दो दशकों से व्यंग्य-लेखन में सक्रिय हैं।
सारिका, इण्डिया टुडे (हिन्दी), राष्ट्रीय सहारा में वर्षों व्यंग्य कॉलम लिखे। आजकल नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, दैनिक भास्कर और साहित्य अमृत में नियमित व्यंग्य कॉलम लिख रहे हैं। कुछ तो हो और धूप की तलाश दो काव्य-संग्रह तथा अफ़सर की मौत, दुम की वापसी, खम्भों के खेल, फाइल पढ़ि-पढ़ि, आज़ाद भारत में कालू, दाँत में फँसी कुरसी, गंगा से गटर तक, राम झरोखे बैठके आदि व्यंग्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। भारत के प्रथम सांस्कृतिक समारोह 'अपना उत्सव' के आशय गान 'जय देश, भारत-भारती' के पुरस्कार और व्यंग्य-लेखन में उल्लेखनीय योगदान के लिए हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा साहित्यकार सम्मान तथा हिन्दी भवन, दिल्ली द्वारा 'व्यंग्य-श्री' सम्मान के अलावा गोपाल चतुर्वेदी अन्य कई सम्मान पुरस्कारों से भी नवाजे जा चुके हैं।
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