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भारतीय नारियों के पद-चिह्न- Footprints of Indian Women

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Specifications
Publisher: Hindi Sahitya Academy, Gujarat
Author Ranjana Harish
Language: Hindi
Pages: 144
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 250 gm
Edition: 2006
HBX918
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Book Description

प्रस्तावना

उस समय मेरी उम्र छह या सात साल के लगभग रही होगी (ऐसा मेरा अनुमान है, जिसकी सच्चाई मुझे बाद में समझ में आई) जब शायद मैंने एक बच्ची के अपनेपन की खोज की खुशी से अभिभूत होकर और सद्यः प्राप्त अक्षर-ज्ञान की खुशी जताने के लिए अपना नाम बड़े और छितराए अक्षरों में एक सार्वजनिक स्थान पर लिख दिया था । जब लोगों को मेरी इस हरकत का पता चला तो मुझे आपराधिक नजरों और निन्दनात्मक शब्दों का सामना करना पड़ा और यह सच भी था कि जो कुछ लिखा गया था, उसे पढ़ने के लिए लोगों को ठहरते हुए देखा भी गया था और तब मुझे चेताया गया था कि मैंने अपनी हदें पार कर ली है। यह जानने में मुझे वर्षों का समय लगा कि मेरा अपराध क्या था ? मैं एक लड़की थी, जिसने इस सत्य को सार्वजनिक रूप से उ‌द्घोषित किया था।

पारंपरिक भयों एवं दबावों से जन्मे अंधविश्वास हम पर इतने शक्तिशाली ढंग से प्रभाव डालते रहे हैं कि आज भी हमारी आत्माभिव्यक्ति को बगावत की नज़र से देखा जाता है ? और सदियों से बरदाश्त की जानेवाली इस परंपरा के कारण इस शताब्दी की अन्नपूर्णा देवी जैसी लेखिका को भी निजी सत्य और सामाजिक सत्य के बीच भेद बनाए रखना पड़ा है। वह कहती हैं कि परवर्ती को कह पाना अपेक्षाकृत आसान है, इसलिए कहानी या कविता लिखनेवाली किसी महिला को स्वयं को अपने पात्रों के पीछे छिपाने की सदा ही आंशिक रूप में ही सही, सुविधा रहती है।

वर्जीनिया वूल्फ के शब्दों में फिर भी स्त्री "दुनिया में सबसे ज्यादा चर्चित प्राणी है।" हाँ वह सदा से ऐसा विषय या माध्यम रही है, जिसके बारे में सबसे ज्यादा लिखा जाता रहा है, किन्तु अब जैसा कि हो रहा है, हम अपना इतिहास जानना चाहते हैं और यदि हमें स्वयं को जानना है तो हमें यह जानना ही चाहिए कि औरतें क्या सोचती थीं, क्या महसूस करती थीं? दूसरे शब्दों में हम यह जानना चाहते हैं कि उन्होंने स्वयं को किस रूप में देखा था ?

"और उनका इतिहास क्या था ?"

"एक रिक्तता, मेरे आका", 'द ट्वेल्थ नाइट' में वायला, ड्यूक से कहती है।

क्या यह वही रिक्तता है, जिससे हमें संतुष्ट होना पड़ेगा ?

सूसन गृबर अपने लेख "कोरा पृष्ठ और नारी रचनाधर्मिता" में आईसक डिनीसेन की कहानी 'द ब्लैन्क पेज' की चर्चा करती है। 'द ब्लैन्क पेज' बिना नाम की चादर के बारे में एक कहानी है, जो उस कान्वेन्ट में टॅगी है, जहाँ राजघरानों से, क्वाँरियों की सुहागरात की खून के धब्बों से सनी चादरें भेजी जाती थीं। खून के दाग राजघराने की बहुओं की चारित्रिक पवित्रता की उद्घोषणा करते थे। गूबर की दृष्टि में इन खून से सनी चादरों के बीच यह एक धवल चादर (एक औरत के विद्रोही स्वभाव को दर्शाती थी जिसके लिए उसे या तो अपने जीवन से या अपने मान-सम्मान से हाथ धोकर उसका मूल्य चुकाना पड़ता था) वास्तव में एक विध्वंसकारी या उल्लंघनकारी या विरोधात्मक कृत्य है और साहित्यिक स्तर पर हमें ऐसे विभिन्न उल्लेख देखने को मिलते हैं। स्त्री मीमांसा ने ऐसे तमाम सत्यों को हम पर उजागर किया है। रिक्तताओं को आकृतियों से जीवन्त किया गया है, निस्तब्धता को आवाजों से भरा गया है और शब्दखंडों के बीच की रिक्तता को शब्दों से। आत्माभिव्यक्ति को कभी भी पूर्णरूप से बाँधा नहीं जा सकता, वह अपने लिए विभिन्न रास्ते खोज ही लेती है। वह हज़ारों धाराओं में बहकर फूट निकलती है। गूबर कहती है "स्त्रियों में रचनात्मकता शिक्षा से पूर्व ही होती है", अतः वह मौखिक कथाओं, गीतों, मिथकों, प्राचीन कथाओं में यहाँ तक कि धार्मिक संस्कारों में प्रतिबिंबित होती है।

स्त्री के लिए अपने जीवन के बारे में खुलकर लिखना कहीं ज्यादा मुश्किल-लगभग असंभव था और है, यह बात कोई भी समझ सकता है। "पुरुषों के पास अपनी बात कहने की हर सुविधा उपलब्ध थी, उनके हाथों में सदा से कलम रही है" 'परसुएशन' में जेन आस्टिन की भोली-भाली ऐन इलीयट ऐसा कहती है। यह सत्य है कि औरतें पूरी तरह से सुविधा से वंचित रखी गयी है शिक्षा उनके लिए निषिद्ध थी, उनके लिए अपनी बात मनवाना गलत समझा जाता था और आत्मसम्मान के लिए उनके जीवन में कोई गुंजायश न थी। तुम क्या लिखोगी, जब तुम्हारी अपनी कोई उपलब्धियाँ ही नहीं है ? तुम अपने बारे में लिखना कैसे शुरू कर सकती हो, जब तुम यह सोचती ही नहीं हो कि तुम्हारा कोई मूल्य है? "स्त्री लेखिकाओं ने अपने बारे में लिखा है, परन्तु उनका लेखन मात्रा में कम है" जेनेट स्टर्नबर्ग 'द राइटर आन हर वर्क' की अपनी प्रस्तावना में लिखती है। हमें अब यह पता चल रहा है कि उन्होंने भी लिखा है। एक भारतीय महिला वहिनाबाई ने १७०० में अपनी आत्मकथा लिखी थी। पिछली शताब्दी में एक महिला रससुन्दरी देवी ने - जिन्होंने रसोई की धुँए से काली दीवारों पर खुरच करके लिखना सीखा था, अपनी कहानी लिखी थी।

इसी पृष्ठभूमि में रंजना हरीश ने अपनी पूर्व पुस्तक 'इन्डियन वीमेन्स आटोबायोग्राफीज' १९९३ में प्रस्तुत की थी और इसी क्रम में अब वह 'द फीमेल फूटप्रिंट्स' प्रस्तुत करती है। अपनी विद्वत्तापूर्ण अन्तर्दृष्टि और समीक्षा-प्रवणता से वह हमें पंक्तियों के बीच छुपे सत्यों, उप-संदर्भों को पढ़ने में हमारी मदद करती हैं और हम यह देख सकते हैं कि इन स्त्रियों के लिए लेखन का कृत्य विरोध प्रदर्शन का कृत्य था। और हम देखते हैं कि इन महिलाओं में अपने जीवन के प्रति निश्चित ही आदर का भाव था, जिसने उन्हें समाज के सम्मुख स्वयं के प्रकाशन के कृत्य के लिए प्रेरित किया था। आत्मकथा लेखन में, लेखक कथ्य पर भारी नियंत्रण रखते हैं और वे जानबूझकर वैसा ही चित्र प्रस्तुत करते हैं, जैसा कि वे चाहते हैं। स्त्रियों के लिए स्वयं के बारे में तथ्यों पर कठोर नियंत्रण रखना कहीं ज्यादा आवश्यक होता है। उन्हें अपने अस्तित्व को बचाए रखने की आवश्यकता के कारण वही सब लिखना होता है जो समाज को स्वीकार्य हो। पर अब हम यह देख रहे हैं कि उन्होंने इस कमजोरी से मुक्त होने के तरीके खोज लिए हैं ये तरीके लेखक के समय एवं परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग रहे हैं। मेरी माँ ने मेरे पिता की मृत्यु के बाद अपनी आत्माभिव्यक्ति के लिए बहुत कठिनाइयों के साथ अपना मार्ग निर्मित किया था और मेरे प्रस्ताव को कि वह अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में लिखें, जो ऐसे समय और शहर में जिया गया था जो तमाम उत्तेजनापूर्ण घटनाओं और उथल-पुथल से भरा था, अपने को पूरी तरह से पृष्ठभूमि में रखते हुए, जैसा ठीक समझा, लिखा। मुझे इस बात से जरा भी तकलीफ नहीं हुई, क्योंकि मैं जानती हूँ कि उस समय की औरत के पास ऐसा करने के सिवाय और कोई दूसरा रास्ता नहीं था। यह हमारी कहानी का वैसा ही अविभाज्य हिस्सा है जैसा कि दूसरे माध्यम, मौन एवं रिक्तताएँ ।

रंजना हरीश की यह पुस्तक उस परियोजना का अंश है, जिसमें स्त्रियों ने अपने जीवन, अपनी परंपराओं (सैन्डरा गिलबर्ट) का कठोर और विश्वस्त विवेचन किया है और जो हम पाठकों के लिए तत्काल चिंतन का विषय है। यह हमें हमारे अतीत से जोड़ता है, हमारी माँ और दादियों से जोड़ता है। "हम स्त्रियाँ अतीत को अपनी माँ के माध्यम से देखती हैं" वर्जीनिया वूल्फ कहती है। और हम भी वैसा ही करती हैं। ऐसी रचनाओं के माध्यम से हमें साहस एवं दृढ़ चरित्रवाली जीवनियों को समझने का अवसर मिलता है तथा उन गुणों को, जो सामान्यतः महिलाओं के साथ संयुक्त नहीं किए जाते। हम देखते हैं कि जिस सदी में 'इन छह स्त्रियों ने जीवन जिया है, वह उनके खुद के शब्दों में, उन महिलाओं के लिए क्या अर्थ रखती थी ? अब हमें पुरुष चेतना के माध्यम से आनेवाले तथ्यों को देखने की आवश्यकता नहीं है, जिसका अर्थ है कि हम उन पदचिह्नों को उन उपयुक्त स्थानों में रख सकते हैं, जहाँ वे होने चाहिए मानवीय पद चिह्नों की लंबी अन्तहीन कतार के साथ ।

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