पुस्तक परिचय
भारतीय जीवन में रामकथा की महत्ता और लोकप्रियता अपरिमित है और समय-समय पर रामकथा के सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, नैतिक और साहित्यिक उपयोगिता को रेखांकित किया गया है। भगवान सम ने अपने निजी जीवन, पारिवारिक जीवन और राजकीय जीवन में सर्वोत्तम आदशों की स्थापना की। भारत में ही नहीं, अपितु इंडोनेशिया, कोडिया, थाईलैंड और म्यांमार में भी रामकथा का प्रचुर विषण किया जाता है जो भौगोलिक व सांस्कृतिक दृष्टि से एकसूत्र में बांधता है। गांधीजी के जीवन-दर्शन में भी धर्मगत अध्ययन और चिंतन का गहरा प्रभाव था। भगवान राम की रीति-नीति देश-काल के अनुरूष थी और इसी के आलोक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आजादी का स्वप्न देखा और राम का जीवन-चरित्र ही उनका रामराज्य का रास्ता बना। यही कारण है कि गांधीजी राममय हो गए थे और उन्होंने स्वराज्यसंधर्ष को राममय बना दिया था। उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल से राम को अपने सत्याग्रह, असहयोग, निष्क्रिय विरोध, सविनय अवज्ञा, तपोबल, प्राकृतिक उपचार, भजन-कीर्तन-प्रार्थना आदि अनेक विषयों से जोड़ दिया और देश की जनता को एक विश्वसनीय आधार दिया। गांधीजी ने कहा था कि सीताजी अपने चरखे पर सूत कातती थी और स्वनिर्मित वस्त्र पहनती थी। सीता जैसी आदर्शवादी स्त्रियों के सहयोग से निश्चित्त ही हम स्वराज्य प्राप्त कर सकते हैं। इसीलिए गांधीजी ने पुरुष-केंदित आंदोलनों में स्वियों की भागीदारी सुनिश्चित करके उन्हें पुरुष-स्त्री का संयुक्त मोर्चा बना दिया और सीता के उदाहरण से उनमें हीनताबोध के भाव को समाप्त कर दिया।
यह पुस्तक महात्मा गांधी के धर्म-अधर्म, सत्य, सत्यताह, अहिंसा, ईश्वर, आत्मा, शस्त्रवत, आत्मा की आवाज आदि अनेक दार्शनिक शब्दों को उनके गांधी-दर्शन के रूप में परिभाषित करती है और उनके स्वराज्य संघर्ष को राम के संवर्ष से तथा रामकथा के प्रसंगों, संदभों व उपलब्धियों से स-थ-रू कराती है। महात्मा गांधी अपने उद्द्योधन, लेखन ही नहीं अपने व्यक्तिगत जीवन में भी हर समय राम को याद करते रहे और यह पुस्तक गांधी के राममय होने का लेखा जोखा है।
लेखक परिचय
डॉ. कमल किशोर गोवनका (11 अक्तूबर, 1938, बुलंदशहर) 'प्रेमचंद स्कॉलर' के रूप में विख्यात हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए., एम.फिल., प्रेमचंद पर पीएच.डी. एवं डी.लिट्. दिल्ली के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से अवकाश प्राप्त भारत के एकमात्र शोधार्थी हैं। वे केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के उपाध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी अनुसंधान परिषद के आजीवन सदस्य हैं। उनकी सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। ये हिंदी अकादमी (दिल्ली), भारतीय भाषा परिषद (कोलकाता), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा), व्यास सम्मान, हिंदी प्रचारिणी सभा (मॉरिशस) से पुरस्कृत होने के साथ ही प्रेमचंद शताब्दी वर्ष 1980 से अब तक विभिन्न विश्वविद्यालयों, अकादमियों, साहित्यिक संस्थाओं में सम्मानित हैं।
भूमिका
भारत के राष्ट्रीय जीवन में रामकथा का अस्तित्व तथा उसकी लोकप्रियता का प्रामाणिक इतिहास बताना असंभव-सा कार्य है, लेकिन वर्तमान समय में जब कल रामानंद सागर के 'रामायण' धारावाहिक की अंतिम किस्त का प्रसारण हुआ तो मीडिया ने बताया कि 'रामायण' धारावाहिक विश्व का सर्वाधिक देखा जाने वाला धारावाहिक है। इस बार 'रामायण' को विश्व में देखने वालों की संख्या 7 करोड़, 70 लाख है जो एक रिकॉर्ड है। रामानंद सागर के 'रामायण' धारावाहिक का पहला प्रसारण 25 जनवरी, 1987 से 31 जुलाई, 1988 तक हुआ था और इसकी कुल 78 कड़ियाँ दूरदर्शन द्वारा प्रसारित की गई थीं। उस समय देश के सभी क्षेत्रों की दुनिया सिमट कर घर में बंद हो जाती थी। सड़कों पर सर्वत्र सन्नाटा और कर्फ्यू जैसा माहौल इसकी लोकप्रियता का प्रमाण था। उस समय राम बने अरुण गोविल तथा सीता बनी दीपिका की वास्तविक राम और सीता के रूप में पूजा होने लगी थी और उनके चित्र लोगों ने अपने घरों में लगा लिए थे। अब जब दोबारा प्रसारण हुआ है तो कोरोना के लॉकडाउन के कारण कर्फ्यू जैसा ही वातावरण है और देश में ही नहीं, विदेश में भी करोड़ों लोग 'रामायण' देख रहे हैं। यह रामकथा की लोकप्रियता की वैश्विक स्वीकृति है और यही हजारों वर्षों से भारतीय लोकमानस में सजीव बने रहने और उसे बार-बार स्मरण करने तथा उसके अनुरूप जीवन जीने की आकांक्षा का प्रमाण है। विश्व में ऐसी कोई अवतारी कथा या महापुरुष की कथा हजारों वर्षों तक निरंतर लोकमानस में उसकी स्मृति का अंग नहीं रही है और कथा के साथ एकरूपता, उसे जीवन में उतारने तथा बार-बार देखने तथा आने वाली पीढ़ियों को सौंपने की अदम्य इच्छा भी नहीं रही है।