पुस्तक परिचय
श्रीमद्भगवद् गीता किसी परिचय का मुंहताज नहीं है। यह सहस्त्राब्दियों से विश्व पटल पर चमकनेवाला वह सूर्य है, जो संसार के समस्त दर्शन व जीवन जीने की स्वस्थ शैली को प्रकाशित करता है, ऊर्जावान बनाता है और जीवन देता है। यह किसी मत -पंथ का बंध नहीं है, प्रत्युत सम्पूर्ण मानव समाज का मार्गदर्शक बंध है। महाभारत युद्ध के आरम्भ में अवसाद ग्रसित अर्जुन हाहाकार करते हुए कहता है - शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् (गीता 2. 7)। अर्थात् 'हे प्रभु! मैं आपका शिष्य और शरणागत हूं। कृपया मुझे मार्ग दिखलाएं।' हताशा और निराशा से घिरे अर्जुन को श्री कृष्ण ने ज्ञानमृत की वह घुटी पिलाई कि अर्जुन हताशा और अवसाद की दलदल से निकलकर परम प्रमुदितता के साथ आत्मविश्वास से परिपूरित होकर कह उठा - नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत । स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।। (गीता 18.73) अर्थात् 'मेरा मोह (अवसाद) नष्ट हो गया है। मैं पुनः आत्मस्मृति को उपलब्ध हो गया हूं। आपकी आज्ञा पालन हेतु मैं तत्पर हूं।' विषाद ग्रसित मानव समाज हेतु वही शाश्वत अमृतधारा श्रीमद् भगवद्गीता में प्रतिस्थापित है। आएं, हम सभी इस देव दुर्लभ अमृत का पान कर नैराश्य की दलदल से मुक्त होकर परम आनंद व परम शांति को उपलब्ध हों। <p>
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist