वारिस शाह को उसकी काव्य कुशलता के कारण पंजाबी का एक महान कवि कहा जाता है । वारिस की रचना में चनाब की लहरों का शोर, उसके शे रों में खजूरों की मिठास, गन्नों का रस, कच्चे दूध का स्वाद तथा सांदल बार का हुलार मिलता है । इस तरह हम कह सकते हैं कि उसकी समूची रचना में पंजाब की आवाज़ सुनाई पड़ती है । वारिस शाह की कृति के बारे में इतिहासकारों की अलग अलग तये हैं । हीर के अतिरिक्त किस्सा सस्सी पुन्नू सीहरफी लाहौर, चूहड़ेटड़ीनामा, मिअराजनामा, असतरनामा तथा दोहड़े आदि रचनाएँ भी मिलती हैं ।
हीर रांझा की प्रेम कहानी पंजाब की सर्वश्रेष्ठ लोक कथा है । हीर रांझा पंजाबियों के अति प्रिय नायक कहलाते हैं । पंजाब से बाहर भी यह प्रेमकथा बहुत प्रसिद्ध है । जैसे कि उर्दू के शायर इंशा लिखते हैं
सुनाया रात को किस्सा जो हीर रांझा का
तो अहले दर्द को पंजाबियों ने लूट लिया ।
इस तरह कहा जा सकता है कि कवियों को इससे बढ़कर और कोई दर्द भरी कहानी नहीं मिली । समाज ने हरि राझा को बड़ी बेरहमी से मार तो डाला, मगर वारिस ने उन्हें पुन जीवित कर दिया ।
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज की स्थापना न 1990 में पंजाबी जीवन की सजीवता तथा साहित्य को उन्नत करने के पहलू से की गई थी । कुछ समय उपरांत पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ द्वारा इसको उच्चतर शिक्षा के सेंटर की मान्यता दे दी गई । शोध के अतिरिक्त इंस्टीट्यूट लेक्चरों, सेमिनारों और कॉस्फेंसों का आयोजन भी करता है । कुछ कॉन्फ्रेंसों का आयोजन मल्टीकल्चरल एजुकेशन विभाग, लंदन यूनिवर्सिटी, साउथ एशियन स्टडीज विभाग, मिशीगन यूनिवर्सिटी और सेंटर कार ग्लोबल स्टडीज, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सेंटा बारबरा के सहयोग से किया गया है । स्वतंत्रता के पचास वर्ष के अवसर पर इंस्टीट्यूट ने 1999 में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली के सहयोग से एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार बँटवारा तथा अतीतदर्शी का आयोजन किया । महाराजा रणजीत सिंह पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन दिसंबर 2001 में किया गया । 1999 में खालसा पंथ के स्थापना की तीसरी शताब्दी पर्व के अवसर पर इस संस्थान ने एक बड़ी योजना शुरू की जिसके अंतर्गत खोज टीम ने निर्देशक के नेतृत्व में भारत, पाकिस्तान तथा इंग्लैंड आदि देशों में घूम घूमकर सिख स्मृति चिह्नों की एक सूची तैयार की । ये चिह्न सिख गुरुओं व अन्य ऐतिहासिक व्यक्तियों से संबंधित हैं जिन्होंने खालसा पंथ को सही रूप से चलाने में सराहनीय योगदान दिया है ।
हमारी खोज की उपलब्धियों को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए और उन अनमोल वस्तुओं को सँभालने के प्रति जागृति पैदा करने हेतु इंस्टीट्यूट द्वारा चार सचित्र पुस्तकें गोल्डन टेंपल, आनदंपुर, हमेकुंट तथा महाराजा रणजीत सिहं पंजाब हेरिटेज सीरीज के अंतर्गत प्रकाशित की गई । इन पुस्तकों का पिछले साल गुरु नानक देव जयंती पर राष्ट्रपति भवन में विमोचन किया गया ।
दूसरे पड़ाव में इंस्टीट्यूट ने पंजाबी परंपरागत साहित्य पर आधारित पुस्तकें हीर, सोहणी महींवाल, बुल्लशोह की काफियाँ तथा बाबा फरीद को देवनागरी लिपि में प्रकाशित किया है ताकि वह जनसमूह जो पंजाबी भाषा से परिचित नहीं है, पंजाब के इस धरोहर से परिचित हो सके । इसके अतिरिक्त पंजाब के इतिहास और संस्कृति पर अनमोल मूल साहित्य का अनुवाद भी कराया जा रहा है ।
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज इस समूचे कार्य की संपूर्णता तथा प्रकाशन के लिए संस्कति विभाग, भारत सरकार तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सरकार की वित्तीय सहायता के प्रति आभार प्रकट करता है । इंस्टीट्यूट की कार्यकारी समिति तथा स्टाफ के सक्रिय सहयोग के बिना इन पुस्तकों का प्रकाशन संभव नहीं था जिसके लिए मैं उनका भी आभारी हूँ ।
Hindu (हिंदू धर्म) (13447)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (715)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2074)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1544)
Yoga (योग) (1154)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24553)
History (इतिहास) (8927)
Philosophy (दर्शन) (3592)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist