भाषा किसी भी देश की संस्कृति की पहचान और भावनात्मक एकता की प्रतीक होती है। राष्ट्रीय एकता, पारस्परिक सद्भाव और आपसी संबंधों को मजबूत करने में भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। हिंदी हमारे देश की ऐसी भाषा है जिसे देश के अधिकांश लोग बोलते और समझते हैं। इसीलिए भारत के संविधान निर्माताओं ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में अंगीकृत किया था। संविधान के अनुच्छेद 343 में यह उल्लेख किया गया है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संविधान में प्रावधान के बावजूद वास्तव में संघ सरकार के कार्यालयों में अधिकांश कार्य अभी भी सामान्य तौर पर अंग्रेजी में ही किया जाता है। हिंदी मात्र अनुवाद की भाषा के रूप में - सह राजभाषा के रूप में ही प्रयोग में लाई जाती है। स्वतंत्रता के 67 वर्ष बाद भी हिंदी केन्द्र सरकार के कार्यालयों में मुख्य राजभाषा के रूप में स्थापित नहीं हो सकी है। इसके कई कारण हैं जिनमें एक मुख्य कारण है सरकारी कार्मिकों को हिंदी में काम करने का समुचित प्रशिक्षण न दिया जाना।
भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार राजभाषा हिंदी के प्रति सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों में जागरूकता उत्पन्न करने, हिंदी में अपना सरकारी काम करने में होने वाली झिझक को दूर करने, उनकी मनोवृत्ति बदलने के लिए और राजभाषा नीति की व्यापक जानकारी देने के लिए, यह आवश्यक है कि हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले सभी कार्मिकों को नियमित रूप से हिंदी कार्यशालाओं में प्रशिक्षित किया जाए।
सरकारी निर्देशों के अनुसार सभी स्तर के अधिकारियों व कर्मचारियों को हिंदी में काम करने की झिझक दूर करने के लिए वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य हिंदी कार्यशाला में प्रशिक्षित किया जाए। इन निर्देशों के अनुपालन में प्रत्येक कार्यालय में हिंदी कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं। इन कार्यशालाओं की कोई स्पष्ट रूप रेखा और निर्धारित प्रशिक्षण सामग्री न होने के कारण इन कार्यशालाओं के आयोजन में न तो एकरूपता है और न ही ये बहुत अधिक उपयोगी और प्रभावी रूप में आयोजित की जाती है।
कुछ संस्थाओं/कार्यालयों ने इस दिशा में प्रयास किए हैं किन्तु राजमाषा हिंदी की महत्ता और उसके स्वरूप की व्यापकता को देखते हुए एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता थी जिसमें हिंदी कार्यशाला के सभी पहलुओं को व्यापक रूप में प्रस्तुत करने के साथ-साथ कार्मिकों को हिंदी में काम करने के लिए अपेक्षित सभी जानकारी दी गई हो।
इस पुस्तक में उन सभी विषयों को समाहित करने का प्रयास किया गया है-प्रत्येक कार्मिकों को हिंदी में काम करने के लिए जिसकी जानकारी जरूरी है। पुस्तक के पहले अध्याय में हिंदी कार्यशालाओं में प्रशिक्षण प्रविधि प्रस्तुत की गई है। सरकारी कार्यालयों में समस्त कार्य हिंदी में करना सांविधिक अपेक्षा है इसलिए यह बहुत जरूरी है कि कर्मिकों को हिंदी में काम करने का प्रशिक्षण प्रभावी तरीके में दिया जाए। इस अध्याय में कार्यशाला प्रशिक्षण प्रविधि को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। भारत सरकार की राजभाषा नीति पर दो पाठ शामिल किए हैं क्योंकि प्रत्येक कार्मिक को भारत सरकार की राजभाषा नीति और उसके विभिन्न प्रावधानों के साथ-साथ उसके राजभाषा बनने की पृष्ठभूमि की भी जानकारी दी जानी अपेक्षित है।
प्रायः यह देखा गया है कि जिन कार्मिकों की मातृभाषा हिंदी है और जिन्होंने दसवीं कक्षा या उससे उच्च स्तर तक हिंदी पढ़ी है, उन्हें भी देवनागरी लिपि और मानक हिंदी वर्तनी का समुचित ज्ञान नहीं है। इसलिए यह आवश्यक है कि हिंदी कार्यशाला में कार्मिकों को मानक देवनागरी लिपि और हिंदी वर्तनी की भी जानकारी दी जाए। हिंदी को संविधान में राजभाषा के रूप में स्वीकार करने के 65 वर्ष बीत जाने के बाद भी हिंद. अनुवाद की भाषा बनी हुई है। साथ ही राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(3) के अनुसार कुछ निर्दिष्ट दस्तावेजों को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में जारी करना जरूरी है इसलिए यह आवश्यक है कि कार्मिकों को अनुवाद के मूल सिद्धान्तों और प्रक्रिया का ज्ञान हो।
सामान्य भाषा और कार्यालयीन भाषा के मुख्य अन्तर पारिभाषिक और तकनीकी शब्दावली का ही होता है। इसलिए कार्मिकों को पारिभाषिक शब्दावली की जानकारी होना बहुत जरूरी है ताकि वह सही और सटीक शब्दावली का प्रयोग अपनी भाषा में कर सके।
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