पुस्तक परिचय
किसने कहा रात डरावनी होती है। कुछ के लिए वह सुकूनभरी होती है। एक लम्बे दिखावटी दिन के बाद एक रात आती है, जिसमें यह रूह थक जाने के बाद वो बन जाती है जो वो असल में है। जैसे दिखावट की परत धूल जाती हो इन चाँद की किरणों से । ज़िम्मेदारियों और समाज को कुछ समय के लिए भूल कर वो अपने दिल की बात खुद से कर लेती है। और यह बात सिर्फ वही सुन पाते हो, जो खुद उस घड़ी जाग रहे होते हो ! क्यों न हम भी एक चांदनी रात उस बाज़ार में निकल जाएँ, जहाँ एक खूबसूरत सी खामोशी होती है, बात आँखों ही आँखों में होती हो। अनजान कहानियां, अपनी सी लगने लगती हो। क्यों न हम भी उन्हें एक बार सुन लें, समझ लें। क्यूंकि सुनना ही कभी-कभी सबसे बड़ा सहारा देना होता है।
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