| Specifications |
| Publisher: Hind Yugm, Delhi | |
| Author: अंजु (अनु ) चौधरी और मुकेश कुमार सिन्हा (Anju Chaudhry and Mukesh Kumar Sinha) | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 191 | |
| Cover: Hardcover | |
| 9.0 inch X 5.5 inch | |
| Weight 370 gm | |
| Edition: 2012 | |
| ISBN: 9789381394144 | |
| NZE317 |
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'कस्तूरी' की अनजानी महक जो अपने भीतर के उन विचारों की तरह है जिससे हम अक्सर अनजान रहते हैं, पर हमेशा प्रभावित और आकर्षित जरूर होते हैं! इन विचारों और भावों को शब्द-रूप देकर ही आत्मिक संतुष्टि मिलती है! एक रचनाकार के लिए उसकी रचना का सृजन कुछ इसी तरह होता है!
'कस्तूरी' संग्रह मात्र किसी के विचार नहीं हैं-एक खुशबू है, एक श्रृंखला है, कुछ ख्वाब हैं अपनों के, जहाँ इसने विचारों में, उनके संग बर्फ की बारिश हैं, सागर के किनारे हैं, तो कहीं हसीन वादियाँ के सपने हैं! कुछ बाते हैं प्यार की, जुदाई की, सुकून है दिल का, मस्ती है अल्हड़पन की, नर्म एहसास है! वही उनके विचारों में जित्र है माँ का, रिश्तों की गरिमा है, बेटी होने की तड़प है और साथ-ही-साथ अपने हर रिश्ते को सहेजकर रखने की क्षमता भी है!'कस्तूरी' के कवियों के मन के विचार आसमाँ से ऊँचे और समंदर से गहरे हैं! पन्ने-दर-पन्ने उन्हें मोहब्बत के शब्दों से सुसज्जित किया गया है! हर शब्द को बहुत प्यार से उसकी खुसबू में डुबोकर लिखने की मात्र कोशिश भर है ये 'कस्तूरी'! विविधता को लिए हमने सबके विचारों को समान रूप से स्थान देते हुए, आदरणीय का दर्जा दिया है! जब-जब मन में शब्द उमड़ते हैं, तो वो खेलने लगते हैं अपने ही विचारों से और उस वक़्त के विचार कभी, श्रृंगार रस में तो कभी हास्य रस, वियोग रस तो कभी,जब कभी आँखों में आँसू हो तो वो कविता करुण रस से भीगी-भीगी नजर आती है, तो कभी-कभी अपना हृदय भी प्रेम रस में डूब, वैसे ही लेखनी को शब्दों में ढाल देता है! कहीं कवि समाज में फैली कुरीतियों को वीभत्स रस में लिखने का प्रयास करता नजर आता है! अद्भुत है ये शब्दों का संसार! जहाँ तक नजर जाती है, वहाँ सबके विचार-ही-विचार नजर आते हैं! हर कवि अपने गुस्से का इजहार रौद्र रस में करता प्रतीत से होता हैं! शब्द-शब्द को जोड़कर, ये सब अपनी रंगोली में रंग भरते हुए एक काफिले के रूप में इस कस्तूरी के साथ जुड़े हैं! इस संग्रह में भक्ति भी है, शक्ति भी है, है मौसम की हर बहार, परंपरा की धरा संग, आधुनिकता का लिबास भी है, विश्र्वास है, है इंतजार किसी अपने को लौट के आने का, तो कहीं सिर्फ वियोग-ही-वियोग की छाया भी है, दर्द है खुद के टूटने का, तो आत्मविश्वास से लबालब तेज धारा भी है खुद के विचारों की!
हमें विश्र्वास है कि हमारा प्रयास, हमारी कोशिश, हमारा सम्मलित प्रयास आपके कुछ पलों का मित्र बन पायेगा, जब ये 'कस्तूरी' आपके हाथों में होगी!


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