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कथक दिग्दर्शन- Kathak Digdarshan: Form Creation: Growth, Prosperity and Adornment

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Includes any tariffs and taxes
Specifications
Publisher: Sangeet Natak Akademi
Author Birju Maharaj
Language: Hindi
Pages: 244 (With Color Illustrations)
Cover: HARDCOVER
11.5x9 inch
Weight 1.57 kg
Edition: 2025
ISBN: 9788194860020
HBP716
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Book Description

प्रस्तावना

कथक का प्राचीन रूप पुरुष प्रधान रहा है, जिसमें कथा वाचक पहले मंदिरों से जुड़े, फिर राज दरबारों में आश्रय पाया। सौभाग्य से एक कथका परिवार में मेरा जन्म हुआ और आज भी मेरे मानम-पटल पर पूर्वजों के सुरम्य मनोहाती नृत्यमय चित्र अंकित हैं। मेरे पिता अच्छन महाराज जी की कठिन लयकारी में निहित सौंदर्य की अविस्मरणीय छवि, मंझले चाचा लच्छू महाराज जी के अद्भुत बेजोड़ मिसाल के भाव, छोटे चाचा शंभू महाराज जी की नजर का ठहराव और अभिव्यक्ति की गहराई।

एक समय था जब इन कथक कलाकारों के विलक्षण गुणों और नृत्य के प्रति सम्पूर्ण समर्पण से राजा, नवाब, दरबारी और जन साधारण सभी प्रभावित होते थे। समय-काल और बदलते परिवेश के कारण, कथक में तेजी, तैयारी और होड़ दिखने लगी और इन सभी पक्षों का अप्रतिम समन्वय क्रमशः क्षीण होने लगा। इस स्थिति को देख, मैंने निश्चय किया कि निजी प्रयास से, कथक को सौंदर्यमय बना कर भक्तिभाव द्वारा आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाले पुरातन रूप का पुनरुत्थान करना होगा।

दिल्ली में संस्थागत परिवेश में कथक प्रशिक्षण का कार्य आरम्भ करने पर, कथक के स्वरूप में परिवर्तन लाने की कठिन राह पर चलने का एक साधन मिला। सर्वप्रथम अंग-संचालन के शुद्धीकरण की आवश्यकता थी, जिस दिशा में किए गए अथक प्रयास का परिणाम धरि-धीर दिखने लगा। समय के साथ विषय बदले, नये तरीके अपनाए गए, हर परिस्थिति और परिवेश में, कथक को सफलता से प्रस्तुत करने पर गहन विचार किया गया। मंदिरों, दरवारों के सीमित दायरे से आज के विस्तृत औपचारिक रंगमंच पर आने तक, एकल नृत्य में सौंदर्य-वृद्धि हुई, समूह नृत्य और संरचनाओं के सम्मिलित होने से समृद्धि आई। कथक के स्वरूप का अलंकरण होता गया और वैश्विक स्तर पर प्रसिद्धि मिलती गई।

इस शोध में कथक के सौंदर्य की समृद्धि हेतु संपन्न समस्त कार्यों की चर्चा, कथक के बस्तुक्रम का क्रमिक विकास, स्वरचित साहित्य में निहित दार्शनिकता का निरीक्षण परीक्षण किया गया है। लखनऊ घराने के कथक के विशिष्ट अंग, कुछ नवीन अवधारणाएँ और उनके प्रायोगिक पक्षों का विवरण तथा भावी शिष्यों और शिक्षकों के लिए विशेष आवश्यक दिशानिर्देश इसमें हैं। पाठक से सरलता से जुड़ने का प्रयास है, उसी तरह जैसे कथक सहजता, सुंदरता और आत्मीयता के साथ कलाकारों और दर्शकों से जुड़ता रहा है।

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा, संगीत नाटक अकादेमी (नोडल) के अंतर्गत प्रदत्त टैगोर फेलोशिप ने मुझे अपने अनुभवों को एकत्रित कर समकालीन परिवेश में प्रस्तुत करने का एक अप्रतिम अवसर दिया, जिसके लिए में आभारी हूँ।

नृत्य अनादि अनंत है और कथक उसी श्रृंखला की एक कड़ी है। गुरुओं की कथक परंपरा समस्त संसार को ज्योतिर्मय करे, ईश्वर से यही प्रार्थना-कामना करते हुए.

प्रकाशकीय

पंडित बिरजू महाराज और कथक एक-दूसरे का पर्याय है। वैसे तो बिरजू महाराज ने असंख्य प्रस्तुतियाँ देश-विदेश में की हैं, लेकिन पुस्तक के रूप में 'कथक दिग्दर्शन' कथक नृत्य प्रेमियों के लिए एक चिर निधि होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा टैगोर फेलोशिप के लिए संगीत नाटक अकादेमी को नोडल संस्था बनाया गया। पंडित बिरजू महाराज को यह टैगोर फेलोशिप दी गई थी जिसके अंतर्गत यही शोध प्रबंध अब कथक दिग्दर्शन' के रूप में आपके सामने है। 'कथक दिग्दर्शन' पंडित बिरजू महाराज का शोध परक आख्यान है जिसमें उनका अनुभव और ज्ञान, दोनों ही समाहित है। यह एक कथक गुरु का अमूल्य दस्तावेज भी है जो कथक कलाकारों, शोधार्थियों का सदैव मार्गदर्शन करता रहेगा।

'कथक दिग्दर्शन' में केवल शब्द ही नहीं हैं, चित्र भी हैं। विभिन्न भावाभिव्यक्तियों को पाठकों तक सहज सम्प्रेषित करने के उद्देश्य से महाराज जी ने चित्रों का उपयोग किया है। इस प्रकार, पुस्तक और अधिक रोचक बन गई है। इसका एक लाभ तो यही है कि कथक की शब्दावली से अपरिचित पाठक भी चित्रों के माध्यम से विभिन्न शब्दों के अर्थ सहज ही समझ सकेंगे और दूसरा लाभ यह कि महाराज जी किस प्रकार कथक के किसी विशेष अंग को बरतते थे, कथक के युवा कलाकार उन चित्रों के माध्यम से उसको देख-समझ सकेंगे।

पुस्तक में साक्षात्कार, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, कथक की शब्दावली, दुर्लभ परन, ग्रंथ आदि का उल्लेख तो है ही, इससे भी अच्छी बात यह है कि पुस्तक सरस और सुबोध शैली में लिखी गई, जो निश्चित रूप से शोधार्थियों, विद्वानों और कथक कलाकारों के लिए पुस्तक को पठनीय बनाती है। आशा है कि यह पुस्तक न केवल कथक कलाकारों, अपितु विद्वानों और शोधकर्ताओं को भी चिरकाल तक कथक का दिग्दर्शन कराती रहेगी।

पंडित बिरजू महाराज अब इस संसार में नहीं हैं लेकिन कथक नृत्य में उनका योगदान, और उनकी यशः काया इस पुस्तक के माध्यम से सदैव जीवित रहेगी।

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