केरल की प्राचीन लोक नृत्य-नाट्य कला कथकलि का समालोचनात्मक अध्ययन कर गायनाचार्य अविनाश चन्द्र पाण्डेय ने इस महत्वपूर्ण एवं अपूर्व पुस्तक की रचना की है। मुझे खुशी के साथ गर्व भी है कि इस पुस्तक के बारे में मुझे दो शब्द कहने का अबसर दिया गया है ।
मेरे विचार से भारतीय संगीत और नृत्य के इस प्रकाण्ड पण्डित के अतिरिक्त और किसी भी लेखक ने, प्रस्तुत विषय पर किसी भी भाषा में कोई ऐसी पुस्तक अभी तक नहीं लिखी है जो कि इतनी विस्तृत और क्रमबद्ध हो । लेखक ने कथकलि कला की बारीकियों को भी ऐसी रोचक और सरल भाषा में प्रस्तुत किया है कि यह पुस्तक कथकलि- साहित्य में प्रथम कही जायेगी । इसमें जो जानकारी दी गई है, वह आज ही नहीं, सदैव इस कला के शिक्षार्थियों, उपासकों और कलाकारों का पथ प्रदर्शन करती रहेगी ।
पुस्तक द्वारा कथकलि के प्रचलन, इसके नृत्य में निहित कला-रस साज-सज्जा व अङ्ग-संचालन और मुद्राओं के बारे में बतलाया गया है। मुद्राओं के उद्भव तथा परिवर्तन व विलय के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया गया है; और साज-सज्जा पर लिखे गये रोचक अध्याय से यह स्पष्टतः पता चलता है कि यह कला २०० वर्ष से कुछ ही अधिक वर्षों के विकास काल में किस प्रकार सर्वाङ्ग-सुन्दर हो गई है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13471)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (716)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2080)
Chaukhamba | चौखंबा (3183)
Jyotish (ज्योतिष) (1542)
Yoga (योग) (1154)
Ramayana (रामायण) (1337)
Gita Press (गीता प्रेस) (724)
Sahitya (साहित्य) (24603)
History (इतिहास) (8956)
Philosophy (दर्शन) (3600)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (115)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Visual Search
Manage Wishlist