| Specifications |
| Publisher: Sri Aurobindo Ashram | |
| Author Surendranath Jauhar Fakir | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 162 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 210 gm | |
| Edition: 2011 | |
| ISBN: 8188847380 | |
| HBO407 |
| Delivery and Return Policies |
| Ships in 1-3 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
मैं सदा आश्चर्य करती थी कि भला कैसे पूज्य चाचाजी का एक ही बार में- एक ही 'विज़िट' में, एक ही 'दर्शन' में श्रीमाँ के प्रति ऐसा पूर्ण समर्पण हो गया कि अपना सारा कुछ, जीवन, परिवार, उपलब्धियाँ और आगे के स्वप्न व कार्य-कलाप। मानों पूरी नियति ही समर्पित कर बैठे ! यहाँ तक कि परिवार व मित्रगण ही नहीं हर संपर्क में आनेवाले की जीवन-दिशा को उसी ओर मोड़ने का दिन-रात, क्षण-प्रतिक्षण का आयोजन भी कर दिया ! आश्रम ही बना दिया। वह भी भारतमाता के केंद्र-हृदय-क्षेत्र दिल्ली की 'उबलती भूमि पर !
आज तो उसके उबाल से दूर दूर तक 'भगवान् की दाल' गल रही है। पर तब यह हुआ कैसे?
धीरे धीरे रहस्य खुला। कि यह कोई एक दिन में नहीं होता। हो नहीं सकता ! उसकी 'तैयारी' कब से हो रही थी! शायद 'जन्म' से भी पहले से ! जब इस आत्मा-विशेष का बीज उस 'परिवार' समाज व प्रदेश-विशेष की भूमि-विशेष में पड़ा। वातावरण-विशेष की खाद-पानी से पोषित हुआ ! - जिसमें व्यक्तियों का स्नेह उत्सित प्रेरणा वाक्यों का स्पंदन-संचरण जीवन-प्रवाह में 'सटीक रूप' से समय-समय पर होता रहा। तभी तो वह यंत्र इतना सचेत सक्रिय व गतिमान हो अपने अस्तित्त्व-बिन्दु से युग पत चेतना को नई दिशा देने का गतिवाहक दिव्य यंत्र बन सका !
आज हम इन कहावतों के रूप में 'राम-बाण' की अचूक व अक्षय शक्ति का अनुभव कर सकते हैं। यह तो जन-भाषा में सत्य-वेद का अनहद नाद-घोष है जिसकी गूँज अनुगूँज में धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष का सजीव-सशक्त संदेश मुखरित है जो जन जन के हृदय-आकाश को चिरंतन आशा-विश्वास से भर कर 'नवीन मानवता' में जन्म लेने की शक्ति से संपन्न करता रहा है व भविष्य में भी करता रहेगा !
इसी आशा व विश्वास के साथ इन 'अक्खावणाँ......... 'कहावताँ' के संग्रह को जन जन को सौंपते हुए संग्रहकर्त्ता 'युग-जौहरी' श्रीयुत् सुरेंद्रनाथ जौहर 'फकीर' को श्रद्धावनत नमन अर्पित करती हूँ।
दिव्य यज्ञ - इसमें कितने ही 'हाथ' लगे हैं! उनका आभार शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। किन्तु उनके नाम स्मरण में ही गहरी सुखानुभूति जो है उससे लगता है कि वही भगवान् का कार्य करने वाले के प्रति प्रार्थना में ढली जा रही है कि शायद वह अपने साथ परम प्रभु व परमेश्वरी की कृपा-वर्षा से उनके जीवन के कन-कन को हरीतिमा से पुष्पित व फलित करेगी। 'कृतार्थ' व कृतकृत्य कर देगी।
हमारे श्रीयुत अनिल भाई, स्नेहल तारा दीदी, अपनी इन्दु दीदी, प्रिय प्राज्जल, श्री आनन्द मोहन नरुला जी, बहन अरुणा गुप्ता, आनन्द भास्कर राव, प्रिय रंगम्मा दीदी, जोन सुरीली अलिकॉट, श्रीमती प्रभजोत कुलकर्णी - इन सबका सहयोग अविस्मरणीय है।
दीपांकित रचनाएँ रंगम्माजी की कलम-रस-निःसृत हैं।
इस पूरे कार्य में अपने अथक प्रयास से कहावतों को पुस्तकाकार देने में श्री भूपेंद्रनाथ अरोरा का सहकार सराहनीय है।
Send as free online greeting card