पुस्तक परिचय
माँ!
समकालीन क्वार्थ को समग्रता और यकता के साथ कथा-साहित्य में उपस्थित करने वाले रचनाकारों में बन्द्रकिशोर जायसवाल की एक मौलिक तथा प्रखर पहचान है। देशज सच्चाइयों की रचनात्मक पड़ताल और नवीन परिवर्तनों के घमासान की कलात्मक समीक्षा ने उन्हें हमारे समय के महत्वपूर्ण कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित किया है। हिन्दी कहानी में अपनी जातीय अस्मिता और लोक संस्कृति से संवलित चन्द्रकिशोर जायसवाल की कहानियों ऐसा संसार रचती हैं, जिसमें आत्मीयता की ऊष्मा है, जहाँ का सब कुछ एकदम परिचित है, फिर भी हमारे अब तक के अनुभवों को समृद्धि मिलती है। उनकी रचनाएँ पाठकों को एक नए समाजशास्त्र के अलक्षित व अव्याख्यायित पक्षों से परिचित कराती हैं। चन्द्रकिशोर जायसवाल अपने समय और समाज में चल रहे विमशों के प्रति अत्यन्त सजग और सतर्क कथाकार हैं। आंचलिकता की सघन प्रस्तुति एवं व्यापक राष्ट्रीय सरोकारों के पक्ष में उसका अतिक्रमण चन्द्रकिशोर जायसवाल की सर्जनात्मक शक्ति को रेखांकित करता है। उपभोक्तावाद, नव पूंजीवाद, सत्तामूलक कदाचार की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं से उनका बहुआयामी संवाद सम्भव हुआ है और आवश्यकतानुसार सक्रिय प्रतिरोध भी अंकित हुआ है। इस क्रम में उन्होंने भाषा से अद्भुत काम लिया है। भाषा के रचाव से जिस कथारस की सृष्टि हुई है, उससे संप्रेषणीयता का पर्याप्त संवर्द्धन हुआ है। परम्परा और आधुनिकता का सहभाग चन्द्रकिशोर जायसवाल के रचना संसार की दीप्तिमान विशेषता है आयातित मुहावरों के स्थान पर अपनी जमीन में उफ वास्तव का कलात्मक विश्लेषण जायसवाल और सम्माननीय बनाता है। चन्द्रकिशोर जायसवाल के अपने समय के बीहड़ यथार्थ के बीच है। इसमें जीवन का व्यापक यथार्थ-बोध और अदम्य आशावाद है। जीवन की निरन्तरता की खोज में उन्होंने हिन्दी साहित्य को अनेक कालजयी कहानियों दी हैं।
लेखक परिचय
चन्द्रकिशोर जायसवाल शिक्षा : 1940, विहारीगंज (मधेपुरा) : एम.ए. (अर्थशास्त्र) कृतियाँ उपन्यास : गवाह गैरहाजिर, जीवछ का बेटा बुद्ध, शीर्षक, चिरंजीव, दाह, पलटनिया। कहानी-संग्रह में नहिं माखन खायो, मर गया दीपनाय, हिंगवा घाट में पानी रे।, जंग, दुखिया दास कबीर, किताब में लिखा है, नकवेसर कागा ले भागा, तर्पण, आघातपुष्प । नाटक : सिंहासन, श्रृंगार । नाट्य रूपान्तरण : आखिरी ईट, विदाईकांड, जंग आदि कहानियों का नाट्य रूपान्तरण एवं मंचन । पुरस्कार व सम्मान (क) पहली कहानी 'एक वृत्त का अन्त' 'कहानी' (मासिक) द्वारा पुरस्कृत । (ख) रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान (हजारीबाग), बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान (आरा), आनन्द सागर कथाक्रम सम्मान (लखनऊ), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, बिहार द्वारा 'साहित्य साधना' सम्मान । फिल्म : उपन्यास 'गबाह गैरहाजिर' पर राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा 'रूई का बोझ' शीर्षक फिल्म का निर्माण। नेशनल फिल्म फेस्टिवल पैनोरमा (1998) के लिए 'रूई का बोझ' का चयन। अनेक अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में फिल्म प्रदर्शित और प्रशंसित । सम्प्रति : सेवानिवृत्त प्राध्यापक, मानविकी, भागलपुर अभियंत्रणा महाविद्यालय, भागलपुर (बिहार)।
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