यो नाटक महाकवि कालिदास रो वणायो थको है। कालिदास कदी व्हिया, ने कठा रा रेवासी हा, या विवाद री बात है। पण कालिदास, दो हजार वर्षा पेलो राजा विक्रमादित्य री सभा रा पंडित हा, ने मालवा रा रेवासी हा, या म्हां मानां हां ।
यो नाटक कालिदास रो पेलो नाटक है। अणी में विदिशा रा राजा अग्निमित्र रे साथै विदर्भ रा राजा माधवसेन री छोटी बहन रे विवाह ध्हेवा रो प्रसंग है।
राजा अग्निमित्र है एक धारिणी पटराणी ही, ने दूजी इरावती ही। माधवसेन आपरी बहन रो विवाह अग्निमित्र रे साथ करणो चावतो हो । माधवसेन रे काकारो बेटो यज्ञसेन अग्निमित्र सू' वैर राखतो हो, नै माधवसेन नै हटाय ने खुद राजा वण बेठो हो। माधवसेन रे मंत्री सुमति आपणे मालिक री इच्छा र अनुसार मालविका नै आपणी बहन कौशिकी रै साथ अग्निमित्र र पास पहुंचाय देणो चावतो हो, सो दोयां ने लेय नै विदिशा जावा वाला संघ में मिल गयो। भाग्य री बात। मार्ग में डाकुवां डाको न्हायो, नै संघ रा लोग तितर बितर व्हे गया। बठे डाकुबां सू' जूझतो थको सुमति मार्यो गयो, नै कौशिकी मूच्छित व्हे गई। जदी वीने चेत आयो, तो पास में मालविका ने नी देखी। भाई सुमति ने जलाय ने कौशिकी मालविका ने ढूंढती ढूंढती विदिशा में पहुंची, नै निराश व्हेय ने बठे हीज साधपणो लेय लीधो । संयोगवश वा अग्निमित्र रा जनाना में पहुंच गई, नै महाराणी धारिणी री विश्वास पात्र वण गई ।
अठीने मालविका डाकुवां रा फंदा में फंस गई। डाकुवां वणीने ले जाय ने सीमाडा री रखवाळी करवा वाळा, महाराणी धारिणी रा भाई वीरसेन र पास भेज नै केवायो, कै ईरी गावा वजावा नाचवा में अधिक रुचि है, सो प्रबंध कर दीज्यो। मैं मालविका भी धीरे धीरे राजा अग्निमित्र रा जनाना में पहुंच गई। कौशिकी मालविका नै बठे पहचाण तो लोधी, पण वण्यो वणायो काम बिगड़ जावा रा भय सू वा कुछ बोली नी। अठा केडे नाटक रो आरम्भ व्हे है।
धारिणी, मालविका ने भणावा खातर गणदास नै हरदत्त नै नियत कर दीधा । राजा अग्निमित्र मालविका ने चित्राम में देखने मोहित व्हे गयो । धारिणी या जाणने राजा री नजर सू बचावा रो प्रबंध कर दीघो । पण राजा रो मित्र प्रपंच कर ने राजा ने वीने प्रत्यक्ष देखाय दीधी। देखतां ही राजा बीने पावा रो प्रयत्न करवा लागो। या जाण ने राणी बींने कैद कर दीधी पण मित्र प्रपंच करने वींने छोडाय लीधी नै थोड़ा दिर्ता पर्छ आपस में विवाह कराय दीघो। अठे नाटक पूरो व्हे जाय है।
यो नाटक संस्कृत में है। मातु भाषा री सेवा समझ ने म्हे अणी रो मेवाड़ी में अनुवाद कीधो है। अणी में मेवाड़ी बोली रा मुहावरा लावा में घणी सावधानी बरती है, नै अनुवाद व्हेवा री पडांख नी पड़ जाय, अणी रो पूरो ध्यान राख्यो है। पण अनुवाद तो अनुवाद हीज व्हे है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist