णमोकार महामन्त्र की गरिमा सर्वविदित है। इसके उच्च्चारण की भी महिमा है। साथ ही यह आराधना, साधना और अनुभूति का विषय है। श्रद्धा और निष्ठा होने पर यह आत्म-कल्याण और लौकिक अभ्युदय दोनों का मार्ग प्रशस्त करता है।
यह कृति इस मंगलमन्त्र का मात्र स्तवन नहीं है, न ही उसकी व्याख्या या कुछ विशेष दृष्टिकोण से उसकी विवेचना-भर प्रस्तुत करती है; यहाँ तो उसके कुछ ऐसे निगूढ़ पक्षों का भी उद्घाटन किया गया है जो इसे एक खोजपूर्ण और मौलिक कृति ही बना देते हैं। क्योंकि जो अपेक्षित है वह सब ता इसमें दिया ही गया; साथ में समुचित रूप से यह भी दरसाया गया है कि णमोकार मन्त्र ही समस्त द्वादशांग जिनवाणी का सार है, इसी महामन्त्र से समस्त मन्त्रशास्त्र की उत्पति हुई है, और यह कि इसी में समस्त मन्त्रों की मूलभूत मातृकाएँ वर्तमान हैं।
इसके अतिरिक्त इसमें इस अनादि मूलमन्त्र का अन्य शास्त्रों-यथा मनोविज्ञान, गणित, योग, आचार, आगम आदि से सम्बन्ध स्पष्ट करते हुए एक तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है; और साधारण पाठक की अभिरुचि तथा आवश्यकता को समझकर इस मन्त्र से सम्बद्ध अनेक कथा-आख्यान भी यथास्थान दिये गये हैं।
प्रस्तुत पुस्तक जितनी विद्वानों और जिज्ञासुओं के लिए महत्त्वपूर्ण है उतनी ही साधकों और श्रावक-गृहस्थों के लिए भी उपयोगी है।
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