Work awarded with Bharatiya Jnanpith's 'Murtidevi Award'
पुस्तक परिचय
उपन्यास 'मुक्तिदूत' एक महाकाव्यात्मक इयत्ता की कथा-कृति है। अंजना-पवनंजय की पुराणकथा पर आधारित यह अपने ढंग की अनोखी कृति है। क्लासिकल और रोमानी सृजनात्मकता का इसमें एक अनूठा समन्वय हुआ है। इस उपन्यास में चरम सत्ता के परिप्रेक्ष्य में, उससे प्रवाहित जीवन को देखने, समझने और समझाने का एक हार्दिक प्रयास है। इसमें अनुभूति ही अनायास चिन्तन बन गयी है।
लेखक परिचय
प्रथम महायुद्ध के दिनों मन्दसौर में जनमे तथा इन्दौर में एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त की, वहीं साहित्यिक जीवन का आरम्भ हुआ।
प्रमुख कृतियाँ : उपन्यास 'अनुत्तर योगी तीर्थंकर महावीर' (चार खंडों में), 'मुक्तिदूत'; पुराकथा संग्रह 'एक और नीलांजना'; कविता-संग्रह 'शून्य पुरुष और वस्तुएँ', 'अनागता की आँखें', 'कहीं और'; निवन्ध-संग्रह- प्रकाश की खोज में'; कहानी-संग्रह- 'शेषदान'।
भारतीय ज्ञानपीठ के 'मूर्तिदेवी पुरस्कार' सहित अनेक संस्थानों द्वारा विशिष्ट पुरस्कारों से सम्मानित।
सन् 1996 में मुम्बई में देहावसान।
प्रस्तावना
अंजना और पवनंजय की प्रेम-कथा एक प्रसिद्ध पौराणिक आख्यान है। 'मुक्तिदूत' की रचना उसी आख्यान की भूमिका पर हुई है-आधुनिक उपन्यास के रूप में। पर लेखक ने इसका उपशीर्षक दिया है-'एक पौराणिक रोमांस'। लगता है न कुछ विचित्र-सा! बात यह है कि अँगरेजी शब्द 'रोमांस' में आख्यान का जो एक विशेष प्रकार, कथानायक की महत्त्वाकांक्षा, नायिका की प्रेमाकुलता और घटनाओं के चमत्कार का सहज आभास मिलता है, वह 'आख्यान', 'कथा' या 'उपन्यास' शब्द में नहीं। फिर भी, 'मुक्तिदूत' पश्चिमी ढंग का रोमांस नहीं है। इसमें 'रोमांस' (अथवा रोमांचकता) की अपेक्षा पौराणिकता ही प्रधान है वह जो शाश्वत, उन्नत और चिरनवीन है।
लेखक ने कथा की पौराणिकता की भी एक सीमा बाँध ली है। उसके बाद उसने वातावरण की अक्षुण्णता में कल्पना को मुक्त रखा है। ऐतिहासिक शोध-खोज और भूगोल की सीमाओं का उल्लंघन यदि कथा कहीं करती है, तो किया करे। उड़ान की रोक लेखक को इष्ट नहीं। उसके लिए तो पुराण का कल्पनामूलक इतिहास और भूगोल अपने आप में ही पर्याप्त है। कल्पना की गहराइयों में आकर जिस चीज को लेखक ने खोजा है, वह बेशक 'तथ्य' न हो, पर वह 'सत्य की प्रतीति' अवश्य है। और यही श्री वीरेन्द्र कुमार की साहित्यिक सर्जना एवं लोकजीवन के नवनिर्माण का देवदूत बनकर प्रकट हुआ है। आज की विकल मानवता के लिए 'मुक्तिदूत' स्वयं मुक्तिदूत है, इस रूप में पुस्तक का समर्पण सर्वया सार्थक है।